बीजेपी नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने राज्य सभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया है। अटकलें यह लगाई जा रही हैं कि सिद्धू बीजेपी से भी जल्द ही इस्तीफ़ा देकर अपनी राजनीतिक पारी की नई शुरुआत आम आदमी पार्टी से करेंगे जहां उन्हें अगले साल होने वाले पंजाब चुनाव के लिए मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जा सकता है। सिद्धू ने बीजेपी क्यूं छोड़ी और क्या सिद्धू का आप में जाने का फैसला सही है, आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
सिद्धू और बीजेपी में खींचतान की शुरुआत 2014 के लोक सभा चुनाव में हुई, जब उनके संसदीय क्षेत्र अमृतसर से उन्हें हटाकर अरुण जेटली को पार्टी ने चुनाव लड़वाया। सिद्धू 2004 से लेकर 2014 तक अमृतसर से सांसद रहे थे। वह उस दौरान पार्टी के फैसले से इतना नाराज़ हुए कि उन्होंने जेटली के लिए प्रचार करने से भी मना कर दिया था। अरुण जेटली को पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री व कांग्रेस उम्मीदवार अमरिंदर सिंह ने बुरी तरह हराया था।
पार्टी ने जेटली की हार का ज़िम्मा भी सिद्धू पर फोड़ा। पार्टी के कई बड़े नेताओं ने चुनाव के बाद सिद्धू पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने बतौर सांसद अपने लोक सभा क्षेत्र में कोई काम नहीं किया और ज्यादा समय टीवी कार्यक्रमों को होस्ट करने में बिताया। इसलिए जनता ने नाराज़ होकर बीजेपी के खिलाफ़ वोट डाले। जेटली की अमृतसर में हार के आरोप ने सिद्धू और बीजेपी के रिश्तों में आग में घी डालने का काम किया।
बीते दो सालों से सिद्धू और उनकी पत्नी व पूर्व बीजेपी विधायक नवजोत कौर ने कई बार पंजाब के मुख्यमंत्री व सरकार में अपने सहयोगी अकाली दल को निशाने पर लिया। सिद्धू दंपत्ति अकाली दल के कामकाज़ से नाखुश थे और कई बार बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं से इसकी शिकायत भी की लेकिन उनकी हर बात को पार्टी ने नज़रअंदाज़ किया। सिद्धू की पत्नी ने कुछ माह पूर्व एक स्टिंग कर अपनी ही सरकार में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर किया था।
उन्होंने अपनी सरकार पर गंभीर निशाना साधते हुए कहा था कि पंजाब में लाल बत्ती लगी गाड़ियां ड्रग्स सप्लाई का काम करती हैं। इसी वर्ष अप्रैल के महीने में नवजोत कौर ने फेसबुक पोस्ट के ज़रिये बीजेपी से अपने इस्तीफे का एलान भी कर दिया था। वहीं नवजोत सिद्धू ने कुछ समय पहले एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा था कि पंजाब का मुख्यमंत्री बनना उनका सबसे बड़ा सपना है। सिद्धू यह अच्छी तरह जानते हैं कि अकाली और बीजेपी के गठबंधन में उन्हें कभी सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किया जायेगा।
पंजाब में जनता का रोष झेल रही अकाली-बीजेपी सरकार की कठिनाइयां आम आदमी पार्टी के मैदान में उतरने के बाद और बढ़ गई हैं। आप की लोकप्रियता पंजाब में दिनों दिन बढ़ती जा रही है और सभी जगह यह चर्चा है कि पहली बार पंजाब में मैदान में उतर रही आप प्रदेश चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है। सिद्धू आप के सीएम उम्मीदवार के रूप में पंजाब चुनाव में मैदान में उतरकर अपने सपने को पूरा करना चाहते हैं।
वहीं पंजाब चुनाव के मद्देनज़र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर सिद्धू को पार्टी ने करीब ढाई माह पूर्व राज्य सभा सदस्य बनाया था। पीएम यह अच्छी तरह जानते थे कि पंजाब में अकाली-बीजेपी सरकार के खिलाफ़ लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है और अगर ऐसे में सिद्धू को किनारे किया तो स्थिति और खराब हो सकती है।
सिद्धू कुछ दिनों पूर्व स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण अस्पताल में भर्ती हुए थे तब भी प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट करके उनका हालचाल लिया था। राज्यसभा की सदस्यता के बाद अगर सिद्धू पार्टी से भी इस्तीफ़ा देते हैं तो यह पीएम के लिए एक बड़ा झटका होगा पर जिस तरह सिद्धू और बीजेपी के रिश्ते बिगड़ते चले जा रहे थे, उस लिहाज़ से इसे किसी हैरतअंगेज फैसले के रूप में नहीं देखा जा रहा है।
वहीं ड्रग्स के बढ़ते कारोबार और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केजरीवाल ने बुरी तरह पंजाब सरकार को घेर रखा है। पंजाब की जनता भी आम आदमी पार्टी पर भरोसा जताती नज़र आ रही है । दिल्ली में बीजेपी को धूल चटाने वाले केजरीवाल अब पंजाब में सरकार बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं पर केजरीवाल यह अच्छी तरह जानते हैं कि पार्टी के पास पंजाब में कोई भी ऐसा चेहरा नहीं हैं जो प्रकाश सिंह बादल एवं अमरिंदर सिंह जितना लोकप्रिय हो।
केजरीवाल जानते हैं कि सिद्धू बेहद लोकप्रिय हैं और बीजेपी के साथ उनके रिश्ते बेहद ख़राब हैं। इसलिए केजरीवाल सिद्धू पर पंजाब चुनाव में दांव खेलते नज़र आ रहे हैं। इसके लिए बीते कई महीनों से केजरीवाल और सिद्धू गुप्त रूप से एक दुसरे के संपर्क में भी थे। लेकिन राज्य सभा सदस्यता छोड़ने से बड़ा सवाल यह है कि क्या सिद्धू का बीजेपी छोड़कर आप में शामिल होने का फैसला सही है और क्या आप को उन्हें मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करने से फ़ायदा होगा या नुकसान ?
सिद्धू भले ही राजनीति में एक दशक से भी ज़्यादा समय से हों लेकिन इस दौरान सिद्धू ने राजनीति व जन सेवा से ज्यादा मनोरंजन की दुनिया को प्राथमिकता दी है। वह संसद में बहस करने से ज़्यादा टीवी कार्यक्रमों में ठहाके लगाते हुए ज़्यादा नज़र आए हैं। इसलिए कई बार अमृतसर के सांसद होने के दौरान जनता ने उनके लापता होने के पोस्टर लगाए हैं क्योंकि वह वहां बहुत कम ही देखे जाते थे।
इसके अलावा सिद्धू एक बेबाक़ नेता हैं और खुलकर अपने विचारों को प्रकट करते हैं। इसलिए शायद केजरीवाल से तालमेल बैठाने में उन्हें दिक्कत हो क्योंकि मोदी की तरह केजरीवाल भी पार्टी में अपने अलावा किसी और की चलने नहीं देते हैं। वहीं सिद्धू ने आने वाले कुछ सालों में कई टीवी शो और स्पोर्ट्स कार्यक्रमों के लिए करार कर रखा है तो क्या वह सीएम उम्मीदवार बनने के बाद अपने कार्यक्रमों को रद्द करेंगे ?
सिद्धू भले ही एक अच्छे वक्ता हों पर उनका इतिहास कहता है कि वह राजनीति के प्रति इतने गंभीर कभी नहीं दिखे कि उन पर जनता सीएम पद जैसी गम्भीर ज़िम्मेदारी के लिए भरोसा कर सके। आप भले ही सिद्धू के पार्टी में शामिल होने को बड़ी राजनीतिक क़ामयाबी माने पर ट्विटर पर प्रतिक्रिया देते हुए कई लोगों ने कहा कि सिद्धू प्रचार के दौरान वोट जुटाने के काम से ज़्यादा बेहतर जनता का मनोरंजन करने का काम करेंगे।
सिद्धू अगर आप की झाड़ू पकड़ कर अपने सीएम बनने के सपने को पूरा न कर पाए तो शायद वह अपनी राजनीतिक पारी में हमेशा के लिए क्लीन बोल्ड हो जायेंगे। इसलिए सिद्धू का बीजेपी छोड़ आप में जाना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
This Article is From Jul 19, 2016
सिद्धू के लिए बीजेपी छोड़ आप में जाना एक बड़ी चुनौती होगा
Nelanshu Shukla
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 19, 2016 05:22 am IST
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Published On जुलाई 19, 2016 05:22 am IST
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Last Updated On जुलाई 19, 2016 05:22 am IST
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