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This Article is From Mar 10, 2020

सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के पीछे की कहानी...

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    March 10, 2020 20:26 IST
    • Published On March 10, 2020 20:26 IST
    • Last Updated On March 10, 2020 20:26 IST

यह एक राजनीतिक संकट काल है. कांग्रेस ने मंगलवार की सुबह ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया के इस्‍तीफे के साथ ही मध्‍यप्रदेश में अपनी सरकार को भी अलविदा कह दिया. सिंधिया बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के रंगों से भरी राजनीतिक होली हो गई क्‍योंकि पार्टी को महाराष्‍ट्र में सत्ता से दूर रखने वाली कांग्रेस से एक तरह से हिसाब चुकता कर लिया गया. सिंधिया ने 24 घंटे पहले ही कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी के नाम इस्‍तीफा लिखकर कांग्रेस छोड़ दी थी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ औपचारिक बैठक के लिए वह अपनी लैंड रोवर लेकर अमित शाह को लेने पहुंचे. इस बैठक ने मध्‍यप्रदेश में 73 वर्षीय कमलनाथ के नेतृत्‍व वाली सरकार का अंत सुनिश्चित कर दिया.

राहुल गांधी के सबसे करीबी सिपहसालारों में से एक होने के बावजूद अविश्‍वसनीय रूप से कांग्रेस और उसकी फर्स्‍ट फैमिली ने उन्‍हें कांग्रेस से बीजेपी में जाने से रोकने के लिए कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि पार्टी के 20 विधायकों के रिसॉर्ट पॉलिटिक्‍स के केंद्र माने जाने वाले बेंगलुरू जाने के बाद मध्‍य प्रदेश सरकार के खतरे में होने के बावजूद पार्टी नहीं जगी.

तो सिंधिया आखिर चाहते क्‍या थे? उनके करीबी सूत्र कहते हैं कि 2019 में अपनी परंपरागत सीट गुना से चुनाव हारने के बाद सिंधिया को मध्‍यप्रदेश में पार्टी से संबंधित निर्णय लेने से अलग कर दिया गया था जबकि उनके दो विरोधी, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह - जिन्‍हें सुपर सीएम भी कहा जाता है - उनके खिलाफ एकजुट हो रहे थे. सिंधिया ने कई मौकों पर खुलेआम अपनी नाराजगी जाहिर की थी. हाल ही में उन्‍होंने कहा था कि अगर राज्‍य सरकार शिक्षकों को मुआवजा देने का वादे पूरे करने में असमर्थ रहती है तो वो सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे. कमलनाथ ने इसके जवाब में कहा था - वो करें.

सिंधिया ने देखा कि उनके खुद के राज्‍य में उनका कद कम हो रहा है क्‍योंकि कांग्रेस हाईकमान - यानी गांधी परिवार - ने इसमें दखल देने से इनकार कर दिया. सिंधिया मध्‍यप्रदेश कांग्रेस के प्रमुख (जो पद कमलनाथ के पास था) बनना चाहते थे और साथ ही मध्‍यप्रदेश से राज्‍यसभा जाना चाहते थे. कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने इसे खारिज करने की पूरी कोशिश की. दिग्विजय सिंह के मार्गदर्शन में कमलनाथ ने प्रियंका गांधी वाड्रा को राज्‍यसभा सीट की पेशकश कर अचूक 'गांधी परिवार कार्ड' खेला. प्रियंका गांधी संसद सदस्‍य के रूप में लुटियंस के बंगले में रहने में सक्षम होंगी. फिलहाल अब चूंकि उन्‍हें एसपीजी सुरक्षा नहीं मिली हुई है, तो उनके पास उस बंगले में रहने का कोई आधार नहीं है.

सूत्र बताते हैं कि सिंधिया ने पूरी कोशिश की कि सोनिया गांधी इस मामले में कोई सुनवाई करें लेकिन ये हो न सका और तब बीजेपी उनके लिए वास्‍तविक विकल्‍प बनकर उभरी. पिछले दो वर्षों से, मोदी और शाह सिंधिया को लुभा रहे थे जिन्‍हें दिवंगत अरुण जेटली ने 'भारत के सबसे होनहार नेता' के रूप में पीएम मोदी से मिलवाया था. एक प्रमुख उद्योगपति जो इन तीनों के करीब हैं, ने भी इसमें महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई.

सोनिया गांधी की तरफ से माकूल प्रतिक्रिया नहीं मिलने और राज्‍यसभा के लिए नामांकण की तारीख करीब आने के साथ ही सिंधिया ने तय कर लिया. उनके करीबी सूत्र बताते हैं कि यह स्‍पष्‍ट रूप से एक राज्‍यसभा सीट से ज्‍यादा बड़ी बात है. ऐसी खबरें हैं कि उन्‍हें कैबिनेट में जगह की पेशकश की गई है. उनके करीबी एक नेता ने कहा, 'यह एक अस्तित्‍व की लड़ाई है.' जब तक सिंधिया ने पीएम मोदी को निजी रूप से वादा नहीं कर दिया, तब बीजेपी शांत बैठी रही क्‍योंकि उन्‍हें राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता था. एक बीजेपी नेता ने कहा, 'ये भाई अजित पवार तो नहीं कर रहा.' उनका इशारा महाराष्‍ट्र में शरद पवार के भांजे के साथ हुए अल्‍पकालिक गठबंधन की ओर था.

सिंधिया ने कांग्रेस के जख्‍म को सामने लाकर रख दिया है और वह है पार्टी में नेतृत्‍व शून्‍यता. गांधी परिवार के तीन सदस्‍यों के सक्रीय राजनीति में होने के बावजूद पार्टी विचारधारा और निर्णय लेने की क्षमता के मामले में पंगु नजर आती है. इससे भी बुरी बात यह है कि सिंधिया का जाना पार्टी के अन्‍य युवा नेता भी देख रहे हैं जो गांधी परिवार को घेरे 'दरबार' के साथ पार्टी की अंतर्कलह से और पार्टी के पुनरुद्धार की कोई रणनीति नहीं होने से क्षुब्‍ध हैं.

सूत्र कहते हैं कि सभी युवा नेता जिनका जनाधार है, उनको राहुल गांधी के लिए खतरे के रूप में देखा जाता है. कांग्रेस गांधी परिवार के नेतृत्‍व में दो लोकसभा चुनाव हार चुकी है. और इसकी कोई जवाबदेही तय नहीं की गई. राहुल की वापसी राग बदस्‍तूर बजता रहता है पर इसे सुनने वाला कोई नहीं.

एक अन्‍य युवा नेता जो पार्टी छोड़ने का मन बना रहे हैं, ने मुझे बताया, 'वे हमें पार्टी से बाहर करना चाहते हैं. यह नुकसान पूरी तरह से स्व-प्रेरित है. यह दिल तोड़ने वाला है लेकिन अगर आपके पास कोई सार्वजनिक या चुनावी पूंजी है, तो आप अब गांधी परिवार के लिए खतरा हैं.'

कांग्रेस की प्रतिक्रिया से बहुत कुछ उजागर हो गया. सिंधिया के खिलाफ निजी हमले शुरू हो गए. अशोक गहलोत जिनके बारे में सभी जानते हैं कि उनकी अपने उपमुख्‍यमंत्री सचिन पायलट से नहीं बनती, ने सिंधिया को महत्‍वाकांक्ष्‍ी बताया. एक युवा कांग्रेस नेता ने जवाबी हमला करते हुए कहा, 'गहलोत से कह दें कि वो पहले खुद को देखें. कांग्रेस के ट्विटर हैंडल पर सिंधिया के गुना से चुनाव हारने का जिक्र किया गया. ऐसा लगता है वो अमेठी से राहुल गांधी की हार भूल गए हैं जो गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है.

मध्‍यप्रदेश में सरकार का जाना केवल एकमात्र नुकसान नहीं होगा. कांग्रेस को कम से कम दो और युवा और जाने माने नेताओं को खो देगी और साथ ही एक अन्‍य राज्‍य की सरकार जो गिरने की कगार पर है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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