आज दोपहर देश के एक बड़े संस्थान के भारी-भरकम गेट से निकल ही रहा था कि वहां खड़े गार्ड समूह ने रोक लिया। उनके इशारे से मैंने भी कार बैक की और किनारे पार्क कर दी। शीशे के पास दो-तीन गार्ड आकर बात करने लगे। दिल्ली से लेकर देश की राजनीति पर। बात लंबी हुई, तो मैं उनसे विदा लेने की अनुमति मांगने लगा कि दफ्तर के लिए देर हो रही है। फिर भी मेन गार्ड ने दो मिनट कह कर रोक ही लिया। पहले तो सबने एक स्वर से पूछा कि आम आदमी पार्टी में क्या हुआ। इससे पहले कि कुछ बोलता सब अपनी बात कह चुके थे। उनका गुस्सा उन विश्लेषणों से अलग था कि आम आदमी बिल्कुल इससे प्रभावित नहीं है। कुछ भी कहिए साहब, दिल टूट गया, गार्ड साहब को यह बोलते वक्त काफी मुश्किल हुई, लेकिन आखिर में कह दिया कि अरविंद जी से ऐसी उम्मीद नहीं थी। खैर यह लेख आम आदमी पार्टी के प्रसंगों पर नहीं है। उनकी बातचीत से कुछ और भी निकला, जिसे जानकर मेरा दिमाग ही घूम गया।
मैंने ही कहा था कि कई लोग अखबारों में लिख रहे हैं कि जब आम आदमी की सरकार बहुत अच्छा काम करेगी, तब आप लोग यह सब भूल जायेंगे। अच्छे काम को ही याद रखेंगे। गार्ड साहब संतुष्ट नहीं हुए। गार्ड समूह ने ही पूछ दिया कि कौन सा काम। मैंने कहा कि लोग कह रहे हैं कि आप लोगों के लिए बिजली पानी का बिल कम कर दिल्ली सरकार ने वादा तो पूरा कर दिया है। इतने में गार्ड साहब ने अपना सीना फुला लिया और कहा कि मैं गार्ड इंस्पैक्टर हूं। आप तो जानते ही हैं कि हम सब बाहर वाले हैं। सब किरायेदार हैं। पूरी दिल्ली किरायेदार और मकान मालिक में बंटी हुई है। आप जानते हैं मकान मालिक कौन हैं? मतलब? मकान मालिक वो हैं जो बीजेपी को पसंद करते हैं। दिल्ली सरकार बीजेपी के वोटर को लाभ पहुंचा रही है। वोट हमने किया है। हम असली वोटर हैं आम आदमी पार्टी के, लेकिन हमें क्या मिला। ध्यान में रखियेगा कि यह बातचीत सिर्फ तीन लोगों के साथ हो रही थी, पर एक मतदाता सरकार के फैसले को किस-किस तरह से देखता है, इसकी एक दिलचस्प झलक मिलती है।
तब गार्ड साहब ने कहा कि बिजली पानी जो सस्ता किया है उससे मकान मालिकों को फायदा हुआ है। किरायदारों को नहीं। सरकार सारे पैसे इनकी सब्सिडी पर खर्च करेगी तो हमारे लिए क्या करेगी। मैं समझना चाह रहा था कि बिजली पानी का बिल कम किये जाने पर इनकी नाराज़गी क्या है। पूछा कि पर आप लोग तो इस वादे से खुश थे। बहुत लोग चाहते थे फिर क्यों फायदा नहीं है। यह फैसला तो शहरी ग़रीबों के हक में ही बताया जा रहा है।
देखिये साहब मैं संगम विहार में रहता हूं। पांच माले का मकान है। उसमें सारे किरायेदार है। मकान मालिक हमसे दस रुपये यूनिट लेता है। अब वो तो कम नहीं हुआ न। हम आज भी बतौर किरायेदार दस रुपया यूनिट ही बिजली ले रहे हैं। सरकार ने जो 400 यूनिट पर राहत दी है उसका फायदा तो मकान मालिक को मिल रहा है। पानी का जो बीस हज़ार लीटर का फायदा दिया है वो तो पूरे मकान के किरायेदारों में बंट जाता है। एक आदमी को थोड़े न मिलता है उतना लाभ। इसका लाभ भी तो यहां के मकान मालिकों को मिल रहा है। आप यह तो देखिये कि मकान मालिक एक है लेकिन उस एक मकान में पचास किरायेदार रहते हैं।
फिर मैंने कहा कि लेकिन झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों को लाभ मिल रहा होगा। गार्ड साहब तब भी अपनी बात पर अड़े रहे। कहने लगे कि एक दिन आप हमारे साथ आइयेगा लेकिन ऐसे कार से स्मार्ट बनकर नहीं। हम दिखायेंगे आपको कि कैसे ज्यादातर झुग्गियां किराये पर हैं। उनके मालिक फ्लैटों में रहते हैं। अब यह हो सकता है कि जनरल बात हो। गार्ड साहब इसे सामान्य बनाकर पेश कर रहे हों, लेकिन मैं बस उनकी बात सुनता जा रहा था। उन्होंने कहा वहां हम पंद्रह सौ रुपये किराया देकर रहते हैं। वहां जो बिजली और पानी पर लाभ है, उससे किरायेदार को कोई लाभ नहीं है।
अगर गार्ड साहब का नज़रिया सही है, तो जिस फैसले को गरीबों के हित में बताया जा रहा है उस पर दोबारा विचार तो करना ही चाहिए। मैंने भी कहीं दिल्ली को किरायेदार बनाम मालिक के रूप में नहीं देखा था। कभी देखता था जब खुद किरायेदार था, लेकिन जबसे अपने घर में रहने लगा हूं इस तरह से देखना बंद हो गया है। क्या पता गार्ड साहब जैसे ज्यादातर लोग किराये पर ही रहते होंगे। ऐसे लोग दिल्ली सरकार के इस कदम से राहत मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं, मगर किसी दूसरे को जाता देख उस फैसले की आलोचना करने लगे हैं, जिसे सरकार गरीबों के हित में लिया गया फैसला बता रही है।
हमने भी यही सोचा था और बल्कि अभी भी लगता है कि कमज़ोर तबके को ऐसी सब्सिडी मिलनी चाहिए। हर राज्य में मिल रही है। लेकिन यह ख्याल ही नहीं आया कि इसका लाभ भी वही ले जा रहे हैं जो गांवों में ज़मीन के मालिक के तौर पर सारी सब्सिडी ले जाते हैं। भूमिहीन को कुछ नहीं मिलता। उस तरह से महानगरों में किरायेदारों को नहीं मिलता, जबकि मतदान में उनका भी हिस्सा होता है।
हो सकता है कि यह पूरा सच न हो, लेकिन गार्ड साहब की बात अलग नज़रिया तो पेश करती ही है। दिल्ली सरकार को इसका मूल्यांकन करना चाहिए। अगर ऐसा है तो क्या सरकार के पास कोई ऐसा तरीका है, जिससे वो बिजली के बिल कम करने का लाभ किरायेदारों तक भी पहुंचा सकती है। अगर नहीं तो उसे इस सब्सिडी पर पुनर्विचार करना ही चाहिए। इस प्रक्रिया में क्या वो मकान मालिकों के इस वर्ग को नाराज़ करने का जोखिम उठा सकेगी। जो भी है गार्ड साहब से बात कर अच्छा लगा। किसी से कुछ भी अलग से देखने का शऊर मिल जाए वो हमेशा अच्छा होता है।
This Article is From Mar 31, 2015
क्या दिल्ली में बिजली-पानी पर सब्सिडी मकान मालिक हड़प रहे हैं - रवीश कुमार
Ravish Kumar
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Updated:मार्च 31, 2015 19:21 pm IST
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Published On मार्च 31, 2015 17:57 pm IST
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Last Updated On मार्च 31, 2015 19:21 pm IST
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