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This Article is From Apr 15, 2015

बाबा की कलम से : जनता परिवार यानी मजबूरी में नया परिवार

Manoranjan Bharti
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  • Updated:
    अप्रैल 15, 2015 19:30 pm IST
    • Published On अप्रैल 15, 2015 19:22 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 15, 2015 19:30 pm IST

नया जनता परिवार बना है बीजेपी को टक्कर देने के लिए। मुलायम, लालू, नीतीश, चौटाला, देवगौड़ा सभी एक हुए हैं और इनकी अगुवाई करेंगे मुलायम सिंह यादव।

देखा जाय तो यह पिछड़ों की नुमाईंदगी करने वालों की पार्टी है मगर इस परिवार का एक साथ रहना ही इनकी चुनौती है। ये इकट्ठा ही होते हैं बिखरने के लिए। अब देखते हैं इसका असर बिहार में क्या होगा। लालू और नीतीश का मिलना कागज पर तो मजबूत दिखता है यदि वोट के लिहाज से देखें तो मगर वह हकीकत नहीं है।

लालू का पिछले दिनों जीतन राम मांझी को लगातार शह देते रहना किसी से छुपा नहीं है। मांझी के साथ आरजेडी के सांसद पप्पू यादव भी हैं। मांझी बीजेपी के नेताओं से मिल रहे हैं मगर बात नहीं बन रही है।

मांझी के विवादित बयानों की वजह से बीजेपी उन्हें छूना नहीं चाहती, इसके बजाए बीजेपी चाहती है कि मांझी नई पार्टी बनाएं जिसमें पप्पू यादव भी हों और उनकी पार्टी को बीजेपी पीछे से मदद करे ताकि मांझी पूरे बिहार में प्रचार करें और महादलित वोट बैंक में सेंध लगे। उधर लालू यादव की चिंता है कि इस नए जनता परिवार में उनके परिवार के लिए क्या है।

खुद तो चुनाव नहीं लड़ सकते मगर राबड़ी, मीसा और दोनों बेटों के भविष्य का सवाल है। सीटों का गठबंधन कैसे होगा। अभी जेडीयू के पास 115 सीट है और आरजेडी के पास केवल 22। ऐसे में सीटों के बंटवारे में मतभेद होना लाजमी है। अभी तक जेडीयू 141 और बीजेपी 102 सीटें लड़तीं थी। कांग्रेस भी इसमें अपना हिस्सा मांगेगी। जेडीयू में भी असंतुष्ट नेताओं का एक गुट है जो चुनाव के वक्त बीजेपी में जाने की ताक में है। बीजेपी के पास भी 141 सीटों पर उतने मजबूत उम्मीदवार नहीं हैं क्योंकि उन्होंने इन सीटों पर कभी चुनाव नहीं लड़ा। ये सीटें जेडीयू लड़ती थी।

नीतीश की मजबूरी है कि मांझी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होंने जो राजनीतिक दांव खेला वो उल्टा पड़ गया। मांझी ने जो नुकसान किया है नीतीश की छवि का, उसकी भरपाई करने में वक्त लग रहा है और इससे नीतीश कुमार के आत्मविश्वास पर भी असर पड़ा होगा। साथ ही लोकसभा चुनाव में बीजेपी का 22 सीटें जीत ले जाना भी उनकी मजबूरी है। यही वजह है कि लालू से हाथ मिला कर नीतीश कुमार अपना किला मजबूत कर लेना चाहते हैं।

बिहार में 15 फीसदी यादव, 17 फीसदी मुस्लिम और 7 फीसदी कुर्मी एक मजबूत वोट बैंक हैं। इसमें 23 फीसदी अति पिछड़ा एक ऐसा गठजोड़ हो सकता है जिसमें सेंध लगाना मुश्किल होगा। यही वजह है कि बीजेपी 16 फीसदी दलित वोटों पर नजर गराए हुए है। कुल मिला कर बिहार में सबकी अपनी-अपनी मजबूरी है जिसकी वजह से वे साथ आए हैं। राजनीति में कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता।

वैसे एक बार नीतीश कुमार ने कहा था कि लालू जी की पार्टी और हमारी पार्टी के लोग एक दूसरे दल में जाते हैं तो तुरंत सेट हो जाते हैं क्योंकि जेपी आंदोलन से अभी तक हम सब ने कभी न कभी साथ जरूर काम किया है। उम्मीद रहेगी कि ये फार्मूला इस बार काम कर जाए और यह नया जनता परिवार थोड़े दिनों तक टिक जाए कम से कम बिहार चुनाव तक।

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