एक वक्त था 26 साल की उम्र में इंग्लैंड के एलियेस्टर कुक को टेस्ट मैचों में सचिन के शतकों के रिकॉर्ड के लिए खतरा माना जा रहा था, मगर फिर एन्ड्यू स्ट्रॉस ने रिटायरमेंट ले ली और कुक को कप्तानी का चस्का लग गया।
विवादों के बीच केविन पीटरसन का टीम से बाहर जाने का मतलब था कि वनडे में भी कप्तानी का ताज कुक के सिर पर आ गया और वहीं से इस खिलाड़ी का पतन भी शुरु हो गया। फिर तो सीरीज-दर-सीरीज टेस्ट मैचों में इंग्लैंड हिट और वनडे में फ्लॉप साबित होने लगी।
टेस्ट में कप्तानी की अहमियत तकनीक से ज्यादा मानसिक होती है और एंडरसन-ब्रॉर्ड की जोड़ी कुक को जीत दिलाने में कामयाब रहती, लेकिन वनडे में कुक बतौर कप्तान और बतौर बल्लेबाज फेल होते नजर आए। 22 पारियों में कुक सिर्फ एक अर्धशतक ही बना पाए, जो उनके संघर्ष की कहानी बता रहा है।
इतना ही नहीं पिछली छह वनडे सीरीज में इंग्लैंड पांच में हारा है। इस दौरान कुक लगातार पारी की शुरुआत करते रहे और नाकाम होते रहे, लेकिन उन्हें कप्तानी और टीम से हटानी की हिम्मत कोई नहीं दिखा पाया।
यहां तक की जब विश्वकप के लिए 30 खिलाड़ियों का चयन हुआ, तो टीम इंग्लैंड की कप्तान कुक को ही दी गई। मगर श्रीलंका के खिलाफ सात वनडे मैचों की सीरीज में बल्लेबाज़ी के लिए माकूल हालात में भी कुक का बल्ला रनों को तरसता रहा और इंग्लैंड 5-2 से सीरीज हार गई।
चयनकर्ताओं का सब्र का बांध टूट गया और देर से ही सही कुक को टीम से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। वर्ल्ड कप से ठीक पहले इंग्लैंड का यह फैसला कइयों को चौंका सकता है, मगर यह सही फैसला है। इससे इंग्लैंड को दो फायदे होंगे। वनडे में अब एलेक्स हेल्स टीम की पारी की शुरुआत करेंगे और मॉर्गन के नेतृत्व में टीम नए उत्साह के साथ मैदान पर उतरेगी। वहीं कुक को भी मायूस होनी की जरूरत नहीं है औ यह मान लेना चाहिए कि हर कोई हर फॉर्मैट में हिट नहीं होता। वह टेस्ट के बेहतरीन खिलाड़ी हैं और सफेद कपड़ो में ही उन्हें अब खेल के विभिन्न रंग खोजने होंगे।