एक देश एक चुनाव की बहस एक दिलचस्प मुकाम पर पहुंच गई है. बीजेपी की ओर से यह संकेत मिलते ही कि अगले साल लोक सभा चुनावों के साथ ग्यारह राज्यों के चुनाव भी कराए जा सकते हैं, राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. इस बात पर भी बहस हो रही है कि आखिर यह मुमकिन कैसे होगा? इस पूरी बहस के संवैधानिक, राजनीतिक, कानूनी पहलुओं के साथ यह आयाम भी है कि आखिर चुनाव आयोग इतने सारे राज्यों के चुनाव क्या लोक सभा के साथ करवा सकता है? चुनाव आयोग का कहना है कि ऐसा आराम से हो जाएगा.
लेकिन आयोग के मुताबिक सारे राज्यों के चुनाव एक साथ कराना मुमकिन नहीं है जब तक कि इसके लिए संवैधानिक और कानूनी प्रावधान नहीं किए जाते. बल्कि नीति आयोग की मानें तो ग्यारह राज्यों के चुनाव लोक सभा के साथ कराने के लिए भी संविधान में संशोधन करना जरूरी होगा. इसीलिए अब बीजेपी ने ग्यारह राज्यों के चुनाव लोक सभा के साथ कराने की बात को खारिज कर दिया है. बीजेपी का कहना है कि अमित शाह के विधि आयोग को लिखे पत्र में ग्यारह राज्यों के चुनाव लोक सभा के साथ कराए जाने की बात नहीं कही गई है.
वैसे भी यह कहना आसान है, करना मुश्किल. दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 83 (2) के तहत लोक सभा का और अनुच्छेद 172 (1) के तहत विधानसभा का कार्यकाल पांच साल के लिए होता है. आपातकाल को छोड़ कर कार्यकाल नहीं बढ़ाया जा सकता. हां, लोक सभा या विधानसभा को भंग कर कार्यकाल कम ज़रूर किया जा सकता है. जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत चुनाव आयोग को कार्यकाल समाप्त होने के पहले छह महीनों के भीतर चुनाव घोषित करने होते हैं. एक साथ चुनाव कराने के पीछे दलील दी जाती है कि इससे सरकार खजाने पर बोझ में कमी होगी. विकास कार्य नहीं रुकेंगे और नीतिगत फैसलों में निरंतरता बनी रहेगी.
दरअसल, चुनावों के दौरान लगने वाली आदर्श आचार संहिता के चलते सरकारी काम रुक जाते हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने विधि आयोग को लिखे पत्र में कहा है कि महाराष्ट्र में 2016-17 में साल के 365 में से 307 दिनों तक आदर्श आचार संहिता लगी थी. इसी तरह नीति आयोग के मुताबिक 2020 का साल छोड़ दें तो 2021 तक हर छह महीनों में दो से पांच विधानसभा चुनाव होंगे. यानी साल के चार महीने आदर्श आचार संहिता लगी रहेगी. चुनाव खर्च की बात करें तो 2009 में लोक सभा चुनाव कराने का खर्च 1115 करोड़ रुपये था जो 2014 में बढ़ कर 3870 करोड़ रुपये हो गया.
पिछले तीस साल में ऐसा कोई साल नहीं गया जब लोक सभा या विधानसभा का चुनाव न हुआ हो. नीति आयोग का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने का पहला मौका अगले साल है. तब कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ा कर और कुछ का घटा कर चौदह राज्यों के चुनाव लोक सभा के साथ ही कराए जा सकते हैं. लेकिन ऐसा तभी मुमकिन होगा जब संविधान में संशोधन कर कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया जाए और कुछ का घटाया जाए. दूसरा चरण अक्तूबर - नवंबर 2021 में हो सकता है जब 16 राज्यों के चुनाव एक साथ हो सकते हैं. लेकिन जब तक आम राय न बने, इस पर आगे बढ़ पाना मुमकिन नहीं.
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.
This Article is From Aug 14, 2018
दिलचस्प मुकाम पर पहुंची एक देश एक चुनाव की बहस
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
-
Updated:अगस्त 14, 2018 23:05 pm IST
-
Published On अगस्त 14, 2018 23:05 pm IST
-
Last Updated On अगस्त 14, 2018 23:05 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं