क्या राम मंदिर को लेकर BJP-RSS में कोई खिचड़ी पक रही है?

क्या अयोध्या में राम मंदिर को लेकर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष स्तर पर कोई खिचड़ी पक रही है? या फिर सिर्फ चुनाव नजदीक देख कर एक बार फिर बयानों की गर्मी दिख रही है?

क्या राम मंदिर को लेकर BJP-RSS में कोई खिचड़ी पक रही है?

क्या अयोध्या में राम मंदिर को लेकर बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शीर्ष स्तर पर कोई खिचड़ी पक रही है? या फिर सिर्फ चुनाव नजदीक देख कर एक बार फिर बयानों की गर्मी दिख रही है? वैसे तो यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और बीजेपी कहती आई है कि वो राम मंदिर बनाने के पक्ष में है, लेकिन ऐसा या तो सभी पक्षों की आपसी सहमति से या फिर अदालत के आदेश के बाद ही होगा. लेकिन सोमवार को अयोध्या में हुए संत सम्मेलन में भगवा वस्त्रधारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संत समाज से राम मंदिर के निर्माण में हो रही देरी को लेकर कड़वी बातें सुननी पड़ी है.

उसके बाद आज वे सिर्फ संघ के शीर्ष नेतृत्व से मिलने के लिए दिल्ली आए. वे संघ महासचिव भैय्याजी जोशी और वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल से मिले और उसके बाद लखनऊ वापस चले गए. वहां भी उनकी मुख्यमंत्री निवास पर संघ नेताओं से चर्चा हुई. माना जा रहा है कि संघ नेताओं के साथ योगी की बैठक में मंदिर निर्माण में देरी को लेकर संत समाज की नाराजगी का जिक्र भी हुआ होगा. हालांकि योगी फिलहाल तो इस देरी को साजिश बता कर इसके लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल का नाम लिए बिना उनकी ओर इशारा कर रहे हैं. 

अयोध्या के इस संत सम्मेलन में हिस्सा लेने आए कई साधु-संत मंदिर निर्माण में हुई देरी से नाराज दिखे. इनमें से कई पूछते भी हैं कि जब केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की अपनी बहुमत की सरकार है तो मंदिर बनाने में देरी क्यों हो रही है? बीजेपी सांसद रह चुके और रामजन्मभूमि न्यास के सदस्य रामविलास वेदांती ने तो योगी की मौजूदगी में ही कह दिया कि 2019 के चुनाव से पहले राम मंदिर बन कर रहेगा. इन संतों को साधने का जिम्मा विश्व हिंदू परिषद पर रहता है. उसकी कार्यकारी परिषद की दिल्ली में हुई बैठक में भी राम मंदिर का मुद्दा छाया रहा. बैठक में उम्मीद जताई गई कि अदालत जल्द ही फैसला सुनाएगी. लेकिन यह वही वीएचपी है जो बीजेपी के विपक्ष में रहने पर राम मंदिर के मुद्दे पर सबसे ज्यादा आक्रामक होती है. यही वीएचपी इस मुद्दे पर संसद के कानून या फिर अध्यादेश की बात करती थी. बीजेपी के सत्ता में आने पर मौन हो गई. जैसे संघ परिवार में सभी को कह दिया गया हो कि राम मंदिर के मुद्दे को तूल देकर मोदी सरकार को परेशानी में न डाला जाए. 

रही बात सुप्रीम कोर्ट की तो, आपको बता दें कि पिछले आठ साल से यह मामला वहां चल रहा है. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अयोध्या में विवादित जमीन का तीन पक्षों में बंटवारा कर दिया जाए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई. बीजेपी उम्मीद कर रही है कि शायद इस साल सुप्रीम कोर्ट का फैसला आए. बीजेपी का मिशन 2019 इस फैसले पर काफी हद तक निर्भर है. कई बीजेपी नेता मानते हैं कि अगर मंदिर के पक्ष में फैसला आए तो इससे यूपी समेत की राज्यों में माहौल बदलने में मदद मिलेगी. यूपी बीजेपी के लिए फिलहाल बड़ा सिरदर्द है. पिछले चुनाव में 80 में से 73 सीटें जीतीं, लेकिन राज्य में सरकार बनने के एक साल के भीतर ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की सीटें ही हार गए. रही सही कसर सपा-बसपा के साथ आने से पूरी हो गई, जिन्होंने कैराना में भी बीजेपी को धूल चटाकर विपक्षी एकता की बड़ी तस्वीर सामने रख दी.

अब बीजेपी के मिशन 2019 के रास्ते में यह विपक्षी एकता चट्टान बन कर खड़ी है. योगी को कमान हिंदुत्व का मुद्दा गर्माने के लिए दी गई. मगर फिलहाल वे बेअसर नजर आ रहे हैं. शायद संघ नेताओं से उनकी मुलाकात में उन्हें कुछ घुट्टी भी पिलाई गई हो. बहरहाल सवाल यही है कि क्या राम मंदिर के बहाने हिंदुत्व का मुद्दा उछाल कर बीजेपी विपक्षी एकता की दीवार को फांद पाएगी? क्या मोदी-योगी और शाह की तिकड़ी यूपी में बीजेपी के लिए 2014 का करिश्मा दोहरा पाने में कामयाब होगी ?

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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