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This Article is From Nov 25, 2020

'अहमद भाई राजनेताओं के भी राजनेता थे'

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 25, 2020 14:34 pm IST
    • Published On नवंबर 25, 2020 14:15 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 25, 2020 14:34 pm IST

'द स्टेट्समैन' में एक नौसिखिए रिपोर्टर के रूप में, मैंने कांग्रेस पर एक राजनीतिक खबर लिखी थी. यह 1992 का समय था. मैं उस समय एक भी राजनेता को नहीं जानती थी. टेलीफोन डायरेक्टरी के मदद से तब मैंने कई कांग्रेस नेताओं को फोन घुमाया था, लेकिन एकमात्र नेता ने कॉलबैक किया था- और वह थे अहमद पटेल.

मैंने अपनी स्टोरी उन्हें उद्धृत (quoting) करते हुए पूरी की थी. उस अखबार के राजनीतिक ब्यूरो में मेरे एक वरिष्ठ भयभीत थे. उन्होंने कहा था- 'अहमद भाई ने मर्यादा लांघ दी है और आपने उसे उद्धृत नहीं किया', यह मेरे लिए पत्थर की लकीर थी जो मेरे सीनियर ने खींची थी.

बाद में, उसी दिन मैंने फिर से उन्हें (अहमद पटेल को) फोन किया था और दबी जुबान से उन्हें वस्तुस्थिति स्पष्ट करना चाह रही थी, तभी वो हंस पड़े और पूछा कि आप कितने दिनों से रिपोर्टिंग कर रही हैं? तब मेरे कुल छह महीने ही हुए थे, जिसमें से तीन महीने बतौर ट्रेनी का कार्यकाल था. उन्होंने तुरंत धीरे से कहा, "यह मेरी गलती है. मुझे आपसे कहना चाहिए था कि यह ऑफ दी रिकॉर्ड है."

कैबिनेट मंत्रियों से लेकर पत्रकारों और विपक्षी नेताओं और अपने संसदीय और पैतृक क्षेत्र भरूच, जहां उन्हेंने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत एक मेयर से शुरू की थी, तक सैकड़ों लोगों को अहमद पटेल तब कहा करते थे,' आप फिर आना.' 

अहमद पटेल सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद संकटमोचक थे, उनके राजनीतिक सचिव और एकमात्र कांग्रेसी नेता थे, जिन पर उन्होंने भरोसा किया था. वह गांधी परिवार के लिए 24x7 (चौबीसों घंटे, सातों दिन) उपलब्ध थे. उन्हें कभी भी बुलाया जा सकता था. पहली और दूसरी यूपीए सरकारें पूरी तरह से उनकी रचनाएँ थीं, हालाँकि वे कभी मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हुए. यहां तक ​​कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र की अप्रत्याशित महाविकास अघाड़ी सरकार भी पटेल और शरद पवार ने मिलकर बनवाई थी.

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वो अहमद पटेल ही थे जिन्होंने राजस्थान में युवा कांग्रेस नेता और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के मामले में हस्तक्षेप किया और उनसे उनका विद्रोह वापस करवाया. सचिन पायलट ने मुझे बताया था कि पटेल अक्सर उनकी मां रमा पायलट के बारे में पूछते थे और अक्सर उनके स्वर्गीय पिता राजेश पायलट के साथ दोस्ती के बारे में बातें करते थे, जो एक कट्टर कांग्रेसी थे.

पटेल कांग्रेस के पुराने नेताओं की फेहरिस्त में से एक थे - जिनके पास बड़ा दिल और व्यापक कंधा था, जो मामूली मुद्दों पर भी जरूरत पड़ने पर उलझने की क्षमता रखते थे भले ही उसके लिए सांठ-गाँठ, जैसे - जटिल राजनीतिक सूत्र और हथियार ही क्यों न अपनाने पड़ जाएं. पटेल  "राजनेताओं के भी राजनेता" थे, जिनके पास पार्टी लाइन से हटकर, कॉरपोरेट्स और मीडिया में  संपर्कों और निजी रिश्तों का एक विशाल नेटवर्क था. पर्दे के पीछे रहकर सफल रणनीति बनाने और व्यवस्थागत काम करने-कराने के वह न केवल जानकार थे बल्कि उसके घाघ थे.

पटेल उस कला के माहिर खिलाड़ी थे, जिसके जरिए वह सीधे तौर पर अपनी बॉस (सोनियां गांधी) के चेहरे के भावों को पढ़ लेते थे और उसके हिसाब से राजनीतिक दावा करते थे. वह रातभर बिना थके काम किया करते थे और सुबह सात बजे बेड पर सोने जाते थे. राज्यसभा चुनावों के दौरान अक्सर अहमद पटेल फोन कर कांग्रेस नेताओं को अहले सुबह जगाया करते थे और कहते थे उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकन करना है, इसलिए सभी कागजातों के साथ पार्टी दफ्तर पहुंचें. ये सभी काम वो सुबह में करते थे.

पटेल वास्तव में निडर थे और वे गर्व से साथ कहते थे कि उन्होंने गांधी परिवार की सभी पीढ़ियों के साथ काम किया है. शुरुआत उन्होंने इंदिरा गांधी के साथ की थी, जिन्होंने गुजरात में उन्हें परखा था और 1977 में पहली बार भरूच से लोकसभा चुनाव लड़वाया था. वहां से पटेल तीन बार सांसद रहे. इंदिरा के बाद पटेल राजीव गांधी के करीबी रहे. वो राजीव गांधी के संसदीय सचिव थे लेकिन सोनिया गांधी के भी काफी करीबी थे. वह उनके प्रति बेहद वफादार थे और हमेशा राजनीतिक मुद्दों पर बोलने वाले अंतिम व्यक्ति होते थे. यूपीए सरकार का गठन करते समय  सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और अहमद पटेल ने हर एक मंत्रालय के संभावित चेहरों पर फैसला किया था और पटेल ने ही चुने हुए लोगों को फोन किया था.

यूपीए सरकार-II के कार्यकाल में एक बार अहमद पटेल को एक राजनीतिक मुद्दे पर गहरी पीड़ा पहुंची थी और इसके बाद वह सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव के पद से इस्तीफा देना चाहते थे. तब सोनिया गांधी ने करीब पाँच घंटे तक अहमद पटेल को साथ रखकर समझाया था कि पार्टी में किसी अन्य नेता को कोई विशेषाधिकार नहीं दिया जाएगा.

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पटेल अक्सर अपने घर पर आने वाले अतिथियों का सत्कार गुजराती स्नैक्स से करवाते थे. मैंने कई मौकों पर कई लोगों का उनके घर पर ऐसा सत्कार होते देखा था. वह खुद लोगों के बीच जाकर स्नैक्स परोसते थे. हमेशा वहां आगंतुकों की एक कतार लगी रहती थी. मैंने उनसे इस बारे में एक बार पूछा  था कि आप कैसे इतने सारे आगंतुकों को एकसाथ संभालते हैं? और वह भी तब, जब आपकी बहू एक लाइलाज बीमारी से जूझ रही हैं. तब उन्होंने कहा था,  "ये कांग्रेस के लोग इतनी दूर से आते हैं, यहां पहुंचने के लिए इतना पैसा खर्च करते हैं. लाइन में लगकर प्रतीक्षा करते हैं. उन सभी की चाहत है कि कोई उन्हें सुने और उनके कंधों पर हाथ रखे. और ऐसा होगा तभी वो फिर से कांग्रेस की लड़ाई के लिए तैयार रहेंगे."

इसी तरह पटेल ने कांग्रेस पार्टी पर गांधी परिवार की पकड़ बनाए रखी. पटेल ने निजी तौर पर सिर्फ एक बार राहुल गांधी से खेद व्यक्त किया गया था. राहुल गांधी  वास्तव में उन्हें पसंद नहीं करते थे, बावजूद इसके साल 2018 में राहुल गांधी को 2019 के चुनावों से पहले पटेल को कोषाध्यक्ष नियुक्त करना पड़ा था क्योंकि पटेल ही पार्टी के लिए फंड मैनेज कर सकते थे.

आखिरी बार मेरी उनसे 10 महीने पहले मुलाकात हुई थी. तब उन्होंने कहा था, "अब रिटायर होने का वक्त आ गया है. मैं वापस भरूच जाना चाहता हूं." तब मैंने हंसते हुए कहा था, "अहमद भाई आपको कोई वापस जाने नहीं देगा, आपकी बॉस भी नहीं." तब वो मुस्कुरा पड़े थे.

पटेल बीजेपी और उसकी "प्रतिशोध की राजनीति" से परेशान थे, जैसा उन्होंने खुद 2017 में गुजरात में राज्यसभा चुनाव के समय देखा था और झेला था, बावजूद इसके अमित शाह की रणनीति को उन्होंने पछाड़ा था. पटेल के लिए विपक्ष एक विरोधी हो सकता है लेकिन कोई दुश्मन नहीं. उनके मुताबिक हर कोई एक संभावित सहयोगी होता है, बशर्ते कि वह उसे मना ले.

मेरी उनके साथ अंतिम बातचीत का अंश ये था, जिसमें उन्होंने कहा था, "मैं ही याद करता हूं. तुम नहीं, स्वाति." अहमद पटेल चुपके से एक डांट पिला दिया करते थे. तब, उन्होंने अपने चरित्रगत और चिर परिचित अंदाज में कहा था, "ये कोविड-19 खत्म हो जाए, फिर मिलेंगे. अपना ख्याल रखना." लेकिन वो कोविड-19 से कभी उबर ही नहीं सके.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)

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