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This Article is From Jan 07, 2016

अभिज्ञान का प्वाइंट : महबूबा के सामने कश्मीरियत और भारतीयता की साझा विरासत संभालने की चुनौती

Abhigyan Prakash
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 07, 2016 21:16 pm IST
    • Published On जनवरी 07, 2016 21:09 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 07, 2016 21:16 pm IST
मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन से जम्मू-कश्मीर की राजनीति का एक अध्याय खत्म हो गया। मुफ्ती वह शख्स थे जिन्होंने सत्तर के दशक में घाटी में शेख अब्दुल्ला के बेहद मजबूत किले में दरार पैदा की और कांग्रेस के लिए जगह बनाई। हालांकि यह मलाल उनके भीतर रहा कि कांग्रेस ने कभी उनको वह हक नहीं दिया जो मिलना चाहिए था। भले ही आगे चलकर वे वीपी सिंह की सरकार में देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री बने।

मुफ्ती के गृह मंत्री रहते हुए उनकी बेटी रुबैया सईद का अपहरण एक बड़ा सवाल बना और बदले में आतंकियों की रिहाई उनके राजनीतिक करिअर पर एक दाग रहा। इसके बावजूद मुफ्ती वह शख्स थे जो कश्मीर के भीतर अपने दम पर खड़े होने की हैसियत रखते थे। उन जैसा नेता ही हो सकता था जो 2014 में बीजेपी के साथ मिलकर जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने के बावजूद टिका रहा। कश्मीरियत और भारतीयता की यह साझा विरासत वह चुनौती है जो उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती को आने वाले दिनों में उठानी होगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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