हर हफ्ते जब समाचार चैनलों की टीआरपी आती है, तो मैं देखता हूं कि एनडीटीवी इंडिया हमेशा दो टीआरपी के आसपास ही मिलता है. मुझे आश्चर्य होता है कि जिस भी अधिकारी या नेता से बात करो, वह एनडीटीवी की स्टोरी का जिक्र करता है, तो फिर ऐसे में इसकी टीआरपी इतनी नीचे कैसे? हां यह बात और है कि रवीश कुमार हमेशा कहते हैं कि वह शून्य टीआरपी वाले एंकर हैं.
यह मेरी समझ से बाहर है कि टीआरपी के हिसाब से जिस चैनल को सिर्फ दो फ़ीसदी लोग ही देखते हो, उसे सरकार बैन कर रही है. याद नहीं आता कि भारतीय राजनीति में आयरन लेडी के नाम से शुमार इंदिरा गांधी के बाद कभी किसी और सरकार ने मीडिया पर इस तरह प्रतिबंध लगाया हो. मैंने इस बारे में गूगल पर सर्च भी किया, लेकिन ऐसी किसी कार्रवाई की जानकारी नहीं मिली.
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि मीडिया सरकार के खिलाफ लिखने वाली हो या फिर सरकार के पक्ष में, दोनों ही देश के लोकतंत्र के लिए अच्छा है. हालांकि इसके कुछ वर्षों बाद ही इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी और सारे मीडिया संस्थानों को अपने नियंत्रण में ले लिया. इसका परिणाम क्या हुआ? इंदिरा गांधी, संजय गांधी तो अपना चुनाव हारे ही, कांग्रेस पार्टी भी लगभग 200 सीटें हार गई. उस आपातकाल का दाग गांधी परिवार आज भी झेल रहा है.
मुझे आश्चर्य होता है कि उस दौर में जो लोग जेल गए, लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, मुरली मनोहर जोशी, रविशंकर प्रसाद के अलावा सरकार और बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता अपने भाषणों में उस दौर की चर्चा करना कभी नहीं भूलते. हालांकि आज सोच रहा हूं कि आने वाले दिनों में ये नेता अपने भाषणों में इमर्जेंसी का जिक्र किस तरह करेंगे. क्या सरकार यह कहेगी कि इंदिरा गांधी ने पूरे मीडिया पर निंयत्रण कर लिया था, हमने तो सिर्फ़ दो टीआरपी वाले एक चैनल को बैन किया. क्या सरकार यह स्वीकार करेगी कि जिस पठानकोट हमले की कवरेज के लिए उसने एनडीटीवी को बैन किया, उस हमले की जांच के लिए उसने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को पठानकोट बुलाया और एयरबेस तक ले गई.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को पत्रकारों को उनकी उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए रामनाथ गोयनका अवॉर्ड बांटते हुए कहा था कि आपातकाल को हमें नहीं भूलना चाहिए और उसके महज़ एक दिन बाद ही सरकार ने एनडीटीवी इंडिया को एक दिन के लिए बैन करने का फरमान जारी कर दिया.
लोकतांत्रिक भारत के इतिहास का वह काला अध्याय, जिसकी चर्चा होने पर आज भी कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं होता, ऐसे में सरकार को सोचना चाहिए कि वह अपनी इस कार्रवाई का कैसे और क्या जवाब देगी. एनडीटीवी इंडिया के खिलाफ कार्रवाई के फैसले से यह भी आश्चर्य हुआ कि जिन्होंने ख़ुद उस काले अध्याय को झेला हो, भला वो इस तरह किसी चैनल को बैन करने की सोच कैसे सकते हैं. एक भारतीय नागरिक होने के नाते मैं इस फ़ैसले की निंदा करता हूं.
आदेश रावल वरिष्ठ पत्रकार हैं.
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This Article is From Nov 05, 2016
दो टीआरपी वाले न्यूज़ चैनल से आखिर किसको ख़तरा है?
Aadesh Rawal
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 05, 2016 16:25 pm IST
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Published On नवंबर 05, 2016 15:55 pm IST
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Last Updated On नवंबर 05, 2016 16:25 pm IST
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