दुनिया की छत पर पहुंचने का मौका हर दिन नहीं मिलता, इसीलिए जब हमें यह मौका मिला, तो हमने फैसला किया कि जितना कुछ हो सके, इस मौके से हासिल कर लिया जाए।
भारत से सीधा तिब्बत तक पहुंचने का फिलहाल न कोई जरिया है और राजनीतिक हालातों के कारण न इसकी इजाज़त। इसलिए नई दिल्ली से करीब साढ़े छह घंटे का हवाई सफर पूरा करके हम पहले चीन की राजधानी बीजिंग पहुंचे। तब तक शाम हो चुकी थी और हमारे पास सिर्फ एक घंटा बचा था तियानमेन चौक जाकर शूट के लिए। इसे शाम छह बजे बंद कर दिया जाता है।
छुट्टी का दिन न होने के बावजूद यहां पर आम लोगों की काफी भीड़ दिखी। ऐसा ही कुछ नज़ारा यहां सू्र्योदय और सू्र्यास्त दोनों वक्त रहता है, जब राष्ट्रीय ध्वज को फहराया और फिर उतारा जाता है। यह चौक इतिहास के पन्नों जैसा एहसास देता है, जहां से न सिर्फ देश को पीपुल्स रिपब्लिक घोषित किया गया, बल्कि 1949 में लोकतंत्र के लिए आवाज भी यहीं से उठाई गई।
अगले दिन सुबह चार बजे होटल से निकलना है और हमारी चीनी गाइड इज़ाबेल का कहना है कि नींद पूरी होना पहुत ज़रूरी है, नहीं तो हाई ऐल्टीट्यूड में बीमार पड़ने का पूरा खतरा है और यहां बीमार पड़ना बेहद खतरनाक हो सकता है।
खैर, अगली सुबह हम तिब्बत के लिए रवाना हुए। चार घंटे के हवाई सफर के बाद तिब्बत की पहली झलक हमने आसमान से देखी...बादलों के बीच से पहाड़ की ऊंची चोटियां, चमकदार फीते सी नदियां। मन कर रहा था कि एक भी फ्रेम रिकॉर्ड करने से छूटने न पाए और जब तक संभव हुआ, हम सब कुछ कैमरे में उतारते गए।
ल्हासा एयरपोर्ट पर अच्छी खासी चेकिंग हुई, आमतौर से ज्यादा। बार-बार हमें इज़ाबेल और उनकी सहयोगी बता रही हैं कि हम तेज़ कदम न चलें। यहां हवा में ऑक्सीजन कम है, चक्कर आने लगेंगे। हम मैदानी इलाकों से हैं और कई बार यह बात भूल जाते हैं, जिससे आने लगते हैं। जो सामान उठाया है उसका बोझ ज्यादा भारी लगता है। अब यहां से हमें सीधे पहुंचना है सैनॉन प्रांत के एक गांव में। वो अगले हिस्से में..