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This Article is From Feb 11, 2020

अरविंद केजरीवाल की BJP पर शानदार जीत के 10 बड़े कारण

Ashutosh
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 11, 2020 15:44 pm IST
    • Published On फ़रवरी 11, 2020 15:42 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 11, 2020 15:44 pm IST

दिल्ली में अस्थायी ही सही, नफरत की राजनीति की हार हुई है, और इससे देशभर में सकारात्मक संदेश गया है. लेकिन आने वाले चुनावों में भी यही रवैया अपनाया जाएगा, यह भविष्य के गर्त में है. मेरे विचार में, दिल्ली विधानसभा चुनाव सबसे ज़्यादा ज़हरीले, सबसे ज़्यादा अभद्र रहे हैं, जिसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी (BJP) को ही जाना चाहिए. सिर्फ एक चुनाव जीतने के लिए किसी शर्म या डर के बिना बार-बार लक्ष्मण रेखाएं लांघी गईं. यह हैरान करने वाला पहलू है कि हमें जब भी लगता था कि प्रचार अभियान इससे ज़्यादा नीचे नहीं गिर सकता, कुछ नया घट जाता था, जो उसे रसातल में कुछ और गहराई तक ले जाता था.

इस नतीजे से किसी भी शक से परे जाकर सिद्ध हुआ कि अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली की राजनीति के शहंशाह हैं, और उनकी राजनीति को जनता ने पसंद किया. इसमें BJP के लिए भी एक सबक है, जो पिछले 21 साल से दिल्ली में नहीं चुनी गई है, और अब भी पांच साल तक गद्दी से दूर रहेगी. अगर किसी को BJP की इस करारी हार का दोष देना ही है, तो मेरे विचार में इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी गृहमंत्री अमित शाह के अलावा किसी का नाम नहीं लिया जा सकता.

पिछले कुछ दिनों में बार-बार कहा गया कि अमित शाह BJP को फिर मुकाबले में ले आए हैं. लेकिन अगर देश के दूसरे सबसे ताकतवर नेता को दिल्ली की सड़कों पर उतरकर पर्चे बांटने पड़े, तो इससे उस बेचैनी और दीवानगी का पता चलता है, जिसे BJP ने इस चुनाव से जोड़ा. BJP के प्रचार अभियान में इस्तेमाल की गई 'नफरत' से भी महसूस होता है कि BJP को मालूम था कि वह करारी हार का सामना करने जा रही है, और चूंकि उनके पास AAP की बढ़त की काट के लिए कोई रणनीति नहीं थी, इसलिए वह हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने के उद्देश्य से साम्प्रदायिक और नफरत-भरे रास्ते पर उतर गई.

मेरे विचार में BJP की हार के 10 बड़े कारण यह रहे...

  1. जैसा लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के साथ हुआ था, ठीक उसी तरह दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए TINA (देयर इज़ नो ऑल्टरनेटिव - कोई विकल्प नहीं) फैक्टर ने काम किया. केजरीवाल ने बहुत चतुराई से इसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव सरीखा रंग दे दिया, और BJP उन पर व्यक्तिगत हमला करने की गलती कर बैठी. जितना ज़्यादा हमले केजरीवाल पर किए गए, उतना ही फायदा केजरीवाल को होता चला गया.
  2. मुख्यमंत्री पद के लिए एक चेहरे की घोषणा करने में BJP नाकाम रही. AAP ने बेहद चतुराई से दिल्ली के मतदाताओं को समझाया कि BJP के पास केजरीवाल की जगह लेने के लिए कोई योग्य शख्सियत है ही नहीं. अगर BJP ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हर्षवर्धन जैसी किसी शख्सियत को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाया होता, तो संभवतः दिल्ली के चुनाव परिणाम इतने निराशाजनक नहीं होते.
  3. AAP विधानसभा चुनाव की तैयारी 2017 से ही कर रही थी, जब उसे नगर निगम चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था, जबकि BJP का अभियान नामांकन पत्र दाखिल किए जाने के बाद शुरू हुआ. अगर AAP टेस्ट मैच खेल रही थी, तो BJP ने टी-20 का विकल्प चुना. AAP की तैयारियां कहीं बेहतर थीं, और वे BJP के मुकाबले कहीं ज़्यादा लोगों तक पहुंच बनाने में कामयाब रहे.
  4. मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी - वर्ष 2013 में पहली बार सत्ता में आई AAP सरकार द्वारा किया गया यह काम वर्ष 2015 में मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ, और अब 2020 में इसने फिर काम किया. गरीब जनता ने AAP का अहसान माना, और वोटों की सूरत में लौटाया.
  5. पिछले छह माह के दौरान केजरीवाल सरकार ने और मुफ्त चीज़ों की घोषणा की - बसों और मेट्रो में महिलाओं और विद्यार्थियों को मुफ्त यात्रा.
  6. महिलाओं ने AAP के लिए खुलकर वोट किया है. AXIS MY INDIA एक्ज़िट पोल एजेंसी के मुताबिक, अगर 53 प्रतिशत पुरुषों ने AAP को वोट दिया है, तो AAP के लिए वोट करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 59 है. छह प्रतिशत का यह अंतर निर्णायक सिद्ध हुआ. पिछले तीन महीनों में लगाए गए CCTV कैमरों के चलते भी महिला मतदाताओं ने BJP के मुकाबले AAP को तरजीह दी.
  7. दिल्ली की आबादी में 14 प्रतिशत मुस्लिम हैं. अल्पसंख्यकों के बीच एकजुट वोट देने की आदत रही है, और खासतौर से मुस्लिम उसी पार्टी को वोट देते हैं, जो BJP को हरा सकती हो. दिल्ली में मुस्लिम वोटरों की पहली पसंद कांग्रेस हुआ करती थी, लेकिन वह सोच 2015 में बदल गई थी. अब AAP मुख्य भूमिका में है, और मुस्लिमों की पहली पसंद है. इस बार, मोदी सरकार की नीतियों की वजह से मुस्लिम BJP को हरा डालने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ थे.
  8. BJP द्वारा चलाए गए बेतहाशा नकारात्मक प्रचार अभियान की वजह से भी बहुत-से मध्यमवर्गीय BJP समर्थक नाराज़ हुए. 2015 में भी BJP के नकारात्मक प्रचार अभियान को नकारा गया था. 'गोली मारो' वाले बयान से निश्चित रूप से बचा जाना चाहिए था, लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया.
  9. अरविंद केजरीवाल द्वारा हनुमान चालीसा का पाठ किया जाना AAP का नया पैंतरा था. इससे शाहीन बाग की मदद से साम्प्रदायिक स्तर पर वोटों का ध्रुवीकरण करने की BJP की कोशिशें ढेर हो गईं. बेहद उकसावे के बावजूद AAP नेता शाहीन बाग नहीं गए और मुस्लिमों की पक्षधर पार्टी के रूप में पहचान बनाने से बचे. दूसरी ओर, अरविंद केजरीवाल के हनुमान चालीसा वाले वीडियो से BJP के हिन्दू मतदाताओं का एक हिस्सा ज़रूर उनके पक्ष में आ गया.
  10. BJP ने अति-आत्मविश्वास की कीमत भी चुकाई है. लोकसभा चुनाव 2019 में शानदार जीत, और फिर तीन तलाक के खिलाफ कानून, नागरिकता संशोधन कानून (CAA), कश्मीर में किए गए व्यापक बदलाव, और राममंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद BJP ने सोच लिया कि हिन्दू वोटों के एकजुट हो जाने के चलते उन्हें दिल्ली में आसानी से जीत हासिल हो जाएगी. इसके विपरीत, AAP ने अपने कामों का प्रचार करने पर ही ध्यान दिया. राजनीति अनुभूति का खेल है, जिसमें AAP को बेहद आसान जीत हासिल हुई.

अंत में, AAP ज़्यादा होशियार साबित हुई. केजरीवाल मोदी से नहीं उलझे, उन पर कोई हमला नहीं किया, राष्ट्रवाद पर एकाधिकार की BJP की कोशिशों से विचलित नहीं हुए. क्या अब BJP यह एहसास कर पाएगी कि नफरत की राजनीति नाकाम हो चुकी है...? बंगाल और बिहार से साबित हो जाएगा कि आगे का रास्ता कैसा होगा.

आशुतोष दिल्ली में बसे लेखक व पत्रकार हैं...

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