अमरीका में एक दिन में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों की संख्या 10,000 बढ़ गई है. इस छलांग से अमरीका चीन और इटली से भी आगे निकल गया है. अमरीका में संक्रमित मरीज़ों की संख्या 85,500 हो गई है. चीन में 81,782 मामले सामने आ चुके हैं और इटली में 80,589 मामले. चीन में 81,000 मामलों में से 74,000 ठीक हो चुके हैं. लेकिन अमरीका में करीब 86,000 केस में से 800 के आस-पास ही ठीक हुए हैं. ध्यान रखिएगा कि संक्रमित मरीज़ों की संख्या दुनिया भर में पल पल बदल रही है.
अमरीका में कोरोना से मरने वालों की संख्या में तेज़ी से उछाल आया है. न्यूयार्क में बुधवार को मरने वालों की संख्या 285 थी. अगले दिन बढ़कर 385 हो गई. यानी 24 घंटे में 100 लोग मर गए. अमरीका में मरने वालों की संख्या 1300 के आस-पास है. वहीं इटली में कोरोना से मरने वालों की संख्या 8200 हो गई है.
कितनी तेज़ी से कोरोना फैल रहा है इसका अंदाज़ा इस बात से मिलता है कि ठीक 7 दिन पहले अमरीका में 18,200 मामले थे. शुक्रवार यानी 27 तारीख की सुबह तक 82,100 हो गए. अब 86000 के करीब संख्या पहुंच गई है. लुसियाना प्रान्त में 7 दिन में ही 350 मामले बढ़कर 3000 हो गए. पूरे अमरीका में 7 दिन पहले कोरोना से मरने वालों की संख्या 241 थी. अब 1300 से अधिक हो गई है. यह रफ्तार डरा रही है कि अभी तक बीमारी के फैलने को लेकर जितने भी अनुमान जताये गए हैं कहीं वो सच न हो जाएं. न्यूयार्क तो लाशों को दफ्नाने की तैयारी में लग गया है. इतनी लाशें हो जाएंगी कि कब्रिस्तान कम पड़ जाएंगे.
कोरोना से संक्रमित मरीज़ों की संख्या में उछाल इसलिए आया है क्योंकि अमरीका अब जाकर टेस्ट करने लगा है. भारत और अमरीका की फरवरी और आधे मार्च तक आलोचना होती रही है कि दोनों देश कम टेस्ट कर रहे हैं. भारत तो अभी तक 35000 सैंपल टेस्ट नहीं कर सका है जबकि पिछड़ने के बाद भी अमरीका ने 5 लाख 52 हज़ार से अधिक टेस्ट कर लिए हैं. यही कारण है कि अमरीका में एक दिन में 10,000 मामले सामने आ गए.
टेस्ट करने से ही पता चलेगा कि किसके भीतर लक्षण है और किसके नहीं. यानी आप बीमारी को मरीज़ के स्तर पर ही रोक सकते हैं. अगर वो अनजान होकर घूमता रहा तो पूरे शहर में बांट आएगा. टेस्टिंग कम होने के कारण भारत में संख्या कम है. इसके बाद भी भारत में भी तेज़ी से यह फैलता ही जा रहा है. दोनों ही देशों में जनवरी, फरवरी और मार्च का आधा महीना गंवा दिया. ढाई महीने की देरी लोगों को भारी पड़ेगी. भारत में सरकार गिराई जा रही थी. अहमदाबाद में रैली हो रही थी. दंगे हो रहे थे और दंगे को लेकर हिन्दू मुस्लिम चल रहा था. आज न कल सभी भारतवासियों को जनवरी और फरवरी के महीनों में लौट कर देखना ही होगा कि वे और भारत सरकार क्या कर रही थी.
भारत और अमरीका में अगर समय रहते बाहर से आने वाले लोगों का टेस्ट कर लिया गया होता तो आज दोनों मुल्कों को लाकडाउन नहीं करना पड़ता. सिस्टम की लापरवाही ने दोनों देशों के नागरिकों के जीवन को संकट में डाल दिया है. समय से पहले टेस्ट करने से बीमारी का पीछा किया जा सकता था. एयरपोर्ट पर ज्यादा से ज्यादा लाख से तीन लाख लोगों को टेस्ट करना पड़ता. उन्हें ट्रैक करना आसान था. लेकिन मार्च के पहले हफ्ते तक इस मामले में गंभीरता नहीं आई थी.
होना यह चाहिए था कि संदिग्धों को ट्रैक किया जाता और अस्पतालों को तैयार किया जाता. इस समय भारत और अमरीका के प्राइवेट और सरकारी अस्पताल पहले से ही भरे हुए हैं. इसलिए अस्पतालों पर इतना बोझ आ गया है. यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया के एक अध्ययन के मुताबिक अमरीका को आने वाले दिनों में दस लाख वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ सकती है. हालत यह है कि अप्रैल के बाद इतने मरीज़ आ जाएंगे कि अस्पताल ही नहीं मिलेंगे. यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की स्कूल ऑफ मेडिसिन के एक अध्ययन के मुताबिक अमरीका में चार महीने में 80,000 लोग मर सकते हैं. अप्रैल से हर दिन 2300 लोग मरने लगेंग. क्या ऐसे प्रोजेक्शन यानी अनुमान सही साबित होने जा रहे हैं? काश ग़लत हो जाएं.
अमरीका और इटली की स्वास्थ्य व्यवस्था शानदार मानी जाती है. अमरीका में हेल्थ सेक्टर करीब-करीब पूरी तरह से प्राइवेट है. इटली की स्वास्थ्य व्यवस्था सरकारी है जिसे दुनिया में श्रेष्ठ माना जाता है. एक अध्ययन के मुताबिक इसी खूबी के कारण वहां बुजुर्ग लोगों की संख्या ज्यादा है. एक कारण यह भी है इटली में मरने वालों में 70 प्रतिशत 80 साल के पार के हैं.
बहरहाल अमरीका ने भी अपनी तैयारी में लंबा वक्त गंवा दिय. जनवरी और फरवरी के महीने में भारत की तरह अमरीका भी कोरोना को लेकर चुटकुलाबाज़ी कर रहा था. जबकि ऐसी आपदाओं से लड़ने के लिए अमरीका का सिस्टम दुनिया में श्रेष्ठ माना जाता है. आपने देखा है कि कई चक्रवाती तूफानों के बीच अमरीका अपने नागरिकों के जान-माल का नुकसान कम से कम होने देता है. मगर लापरवाही और इस अति आत्मविश्वास ने अमरीका को घोर संकट में डाल दिया है. उसके पास दो ही रास्ते बचे हैं. अर्थव्यवस्था बचा ले या आदमी बचा ले.
न्यूयार्क में 24 घंटे के भीतर 100 लोगों की कोरोना वायरस से मौत हो गई है. बुधवार की सुबह कोरोना से मरने वालों की संख्या 285 थी. गुरुवार को 385 हो गई. यहां 37,258 लोगों को संक्रमण हो गया है. 5300 लोगों को अस्पताल में भर्ती किया गया है. इसमें से 1300 लोग वेंटिलेटर पर हैं. आने वाले दिनों में वेंटिलेटर की समस्या गंभीर होने वाली है क्योंकि कोरोना वायरस का मरीज़ लंबे समय के लिए वेंटिलेटर पर रहता है. इस दौरान सोचिए, दूसरी बीमारियों के मरीज़ों का क्या हाल होगा. उनकी मौत तो बिना इलाज के ही हो जाएगी.
भारत में भी लाखों वेंटिलेटर की ज़रूरत होगी. जब मैंने पहली बार अपने फेसबुक पेज पर वेंटिलेटर के बारे में लिखा था तब आईटी सेल वाले गाली देने आ गए. आप जाकर सारे कमेंट पढ़ सकते हैं. ऐसे ही लोगों के कारण सरकार ढाई महीने खुशफहमी में रही. आज स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल ने 40,000 वेंटिलेटर के आर्डर दिए हैं. पिछले हफ्ते उन्होंने बहुत ज़ोर देने के बाद कहा था कि 1200 आर्डर दिए गए हैं. 24 मार्च को भारत सरकार ने वेंटिलेटर के निर्यात पर रोक लगाई है. इन फैसलों से यही पता चलता है कि भारत सरकार को अब जाकर पता चल रहा है कि यह बीमारी कितनी भयावह हो सकती है.
आज देरी और लापरवाही के कारण अमरीका दो मोर्चे पर लड़ रहा है. अमरीकी नागरिकों की जान बचाए या उनके लिए अर्थव्यवस्था बचाए. 2 लाख करोड़ डॉलर का पैकेज भी पर्याप्त नहीं माना जा रहा है. अमरीकी प्रान्त झगड़ रहे हैं कि उन्हें कम पैसे मिले हैं. वहां सरकार की संस्था ने ही बता दिया है कि 33 लाख लोगों की नौकरियां चली गई हैं. यह तब पता चला जब एक हफ्ते के भीतर 33 लाख लोगों ने सरकारी सहायता के लिए आवेदन कर दिया. 1982 में 7 लाख लोगों ने आवेदन किया था.
भारत में भी केंद्र सरकार ने 1.70 लाख करोड़ के पैकेज का एलान किया है. इस पैकेज में शामिल कई कैटगरी की संख्या 3 करोड़ से लेकर 30 करोड़ है. इसे ही जोड़ लें तो भारत की 60 फीसदी आबादी प्रभावित नज़र आ रही है.
हम एक विचित्र मोड़ पर आ गए हैं. न वर्तमान सुरक्षित लग रहा है न भविष्य का पता है. अतीत का कोई मतलब नहीं रहा.
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