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This Article is From Sep 04, 2018

बेगूसराय : कन्हैया भरोसे 'पूरब के लेनिनग्राद' में उतरेगी CPI? लेकिन राह इतनी भी नहीं आसान

टेघड़ा विधानसभा सीट जिसे कभी 'छोटा मॉस्को' के नाम से भी जाना जाता था यहां पर 1962 से लेकर 2010 का वामपंथी पार्टियों का कब्जा रहा है.

बेगूसराय : कन्हैया भरोसे 'पूरब के लेनिनग्राद' में उतरेगी CPI? लेकिन राह इतनी भी नहीं आसान
  • बेगूसराय के रहने वाले कन्हैया कुमार
  • वामपंथ का गढ़ रहा है बेगूसराय
  • लालू के उदय के बाद बदले समीकरण
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नई दिल्ली: जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार  सीपीआई की टिकट से बिहार की बेगूसराय सीट से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. हालांकि अभी तक इस खबर पर पक्की मुहर नहीं लगी है. लेकिन ऐसी चर्चा चल रही है. बिहार के बेगूसराय जिले को कभी 'पूरब का लेनिनग्राद' कहा जाता था. आज भी कई इलाकों में उसके समर्थक उस दौर को याद करते हैं जब बिहार में ऊंची जाति में गिने जाने वाले भूमिहारों ने वामपंथ का झंडा थामकर यहां के 'जमींदारों' के खिलाफ पहली बार मोर्चा खोल दिया था. खास बात यह थी कि जिनके खिलाफ यह मोर्चा खोला गया था वह भी भूमिहार थे, जिनका लाल मिर्च की खेती में एकाधिकार था. इस लड़ाई में जो नेता उभरे चंद्रशेखर सिंह, सीताराम मिश्रा, राजेंद्र प्रसाद सिंह ये सभी भूमिहार समुदाय से आते थे. धीरे-धीरे तेघड़ा और बछवारा विधानसभा सीटें वामपंथ का गढ़ बन गईं और कोई भी लहर इसको भेदने में नाकाम रही. 

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तेघड़ा विधानसभा सीट जिसे कभी 'छोटा मॉस्को' के नाम से भी जाना जाता था यहां पर 1962 से लेकर 2010 का वामपंथी पार्टियों का कब्जा रहा है. 2010 में बीजेपी ने यहां जीत दर्ज की थी. वहीं बछवारा सीट भी साल 2015 में आरजेडी के पास चली गई. वामपंथ के सबसे मजबूत गढ़ में सेंध 90 के दशक में ही लगनी शुरू हो गई थी. 1995 तक यहां की 7 में से 5 सीटें सीपीआई या सीपीएम के पास थीं. लेकिन बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव का उदय, ऊंची जातियों के खिलाफ आंदोलन और बड़े पैमाने पर नरसंहार ने पूरे बिहार को जातिवाद की राजनीति में जकड़ लिया और बेगूसराय भी इससे अछूता नहीं रहा. 

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भूमिहार कांग्रेस के साथ थे. लेकिन उस समय के कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने लालू को समर्थन करने का फैसला कर लिया. इसके बाद भूमिहार ही नहीं गैर यादव ओबीसी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी और बीजेपी की ओर रुख कर लिया. अब वामपंथी राजनीति के लिये दौर बदल गया है. कन्हैया कुमार जो कि खुद भूमिहार हैं और टेघड़ा (मिनी मॉस्को) से आते हैं, उनको अपनी ही जाति से वोट मिलेगा यह कुछ भी अब पक्के तौर पर कहा नहीं जा सकता है. यह भी अपने आप में एक सच्चाई है कि 'पूरब का लेनिनग्राद' होते हुए भी सीपीआई एक ही बार लोकसभा चुनाव (1967) जीत पाई है. साल 2004 से यहां से एनडीए का प्रत्याशी ही लगातार जीत रहा है. 

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वहीं कयास इस बात के लगाये जा रहे हैं कि बीजेपी इस पर गिरिराज सिंह या प्रोफेसर राकेश सिन्हा को यहां से टिकट दे सकती है. कुल मिलाकर यहां के जो समीकरण हैं उस हिसाब से माना जा रहा है कि अगर कांग्रेस और आरजेडी का समर्थन मिलता है और कन्हैया कुमार कुछ भूमिहारों के वोट लाने में कामयाब हो जाते हैं तो वह निश्चित तौर पर टक्कर देते नजर आएंगे.
 

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