
लखीसराय में मोटरसाइकिल चेकिंग के नाम पर लोगों के साथ मारपीट का मामला सामने आया है. जहां चेकिंग के दौरान मोटरसाइकिल सवार को रोककर उनसे सवाल पूछने की बजाय उन पर दनदना-दन लाठियां बरसाई जा रही है. लाठी चलाने वाला कोई पुलिसकर्मी नहीं, बल्कि सफेद शर्ट पहने एक व्यक्ति था, जो खाकी वर्दी वालों के साथ खड़ा था. यह सफेद शर्ट वाला व्यक्ति लखीसराय का जिला परिवहन पदाधिकारी बताया जा रहा है, जो पहले भी ऐसी घटनाओं को अंजाम दे चुका है.
चेकिंग के नाम पर हो रही हिंसा
सवाल उठता है कि उसे यह विशेषाधिकार किस संविधान ने दिया कि वह एक किसी पर इस तरह हाथ उठाए? क्या चेकिंग अब कानून के नाम पर निजी हिंसा का बहाना बन गई है? मौके पर मौजूद पुलिसकर्मी चुप रहे, न उन्होंने रोका, न टोका, मानो उन्हें आदेश मिला हो कि "देखो, लेकिन कुछ मत कहो." इस तरह किसी पर लाठी बरसाना बिल्कुल ठीक नहीं, बल्कि जनता की गरिमा, आत्मसम्मान और अधिकारों पर हमला है.
क्या चुपचाप हिंसा सहती रहेगी जनता
क्या यह सफेद शर्टधारी अकेला होता, बिना पुलिस के साथ, तो भी उसे ऐसी हिम्मत होती? क्या जनता उसे चुपचाप सहती? और क्या पुलिस तब भी इतनी खामोश रहती? यह घटना सत्ता और सुरक्षा तंत्र की मिलीभगत का ऐसा दृश्य है, जो हर नागरिक को शर्मसार करती है. इसकी सरेआम निंदा हो रही है, और लोग जवाब मांग रहे हैं कि आखिर इस तरह की मनमानी कब तक चलेगी?
(एनडीटीवी के लिए रणजीत कुमार सम्राट की रिपोर्ट)
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