
- चुनाव से पहले लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बड़ा संकेत दिया
- पिता रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर चिराग ने लिखा “ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना है तो मरना सीखो”
- माना जा रहा है कि इस बयान से चिराग ने यह संकेत दिया कि सीट बंटवारे में अनदेखी हुई तो सख्ती दिखा सकते हैं
लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने बुधवार को बड़ा संकेत दिया. पिता रामविलास पासवान की पुण्यतिथि पर उन्होंने लिखा “ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना है तो मरना सीखो” और बताया कि “जब मैं संकट में होता हूं, मुझे पिताजी की ये पंक्तियां याद आती हैं.” इस बयान ने बिहार की सियासत में एक नई लकीर खींच दी है. माना जा रहा है कि इस बयान से चिराग पासवान यह संकेत देना चाह रहे हैं कि सीट बंटवारे की प्रक्रिया में उनकी पार्टी को नजरंदाज किया जा रहा है और उन्हें असमंजस में छोड़ा जा रहा है. अगर 'सम्मानजनक' हिस्सेदारी की मांग पूरी न हुई तो वह सख्ती दिखा सकते हैं. इशारों में कही चिराग की इस बात ने राजनीति खासकर एनडीए में हलचल मचा दी है.

JDU, BJP और कांग्रेस ने क्या प्रतिक्रिया दी?
जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार चिराग के इस बयान को मामूली असहमति के रूप में देखते हैं. उन्होंने कहा कि गठबंधन की सेहत पर कोई गंभीर असर नहीं पड़ेगा. फिलहाल सबकुछ ठीक है, समय का इंतजार कीजिए.
भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि सब कुछ समय पर हो जाएगा, इंतजार कीजिए. उन्होंने गठबंधन की स्थिरता पर भी भरोसा व्यक्त किया.
कांग्रेस इसे राजनीतिक गर्मी पैदा करने का एक अवसर देख रही है. पार्टी प्रवक्ता ज्ञान रंजन ने चुटीली टिप्पणी करते हुए कहा कि वह पहले से ही कह रहे थे कि केंद्र और राज्य की स्थिति चिंताजनक है, अब देखिए खुद चिराग क्या कह रहे हैं.
इन प्रतिक्रियाओं से साफ है कि NDA के शीर्ष नेताओं की कोशिश है कि हड़बड़ी न दिखे और मामला सार्वजनिक रूप से बड़ा विवाद न बने.

चिराग की मांग और NDA की मजबूरी
पिछले कुछ दिनों की मीडिया रिपोर्ट्स देखें तो चिराग पासवान की मांग है कि उनकी पार्टी को आगामी बिहार चुनाव में 40 से 45 विधानसभा सीटें मिलें, खासकर उन लोकसभा क्षेत्रों में जहां LJPR ने 2024 में जीत दर्ज की थी. चिराग ने यह भी प्रस्ताव रखा है कि प्रत्येक लोकसभा पर उनके पास कम-से-कम दो विधानसभा सीटें होनी चाहिए.
वहीं भाजपा अभी केवल 25 सीटों का प्रस्ताव दे रही है, जिसे चिराग और उनके समर्थक कम और असम्मानजनक मान रहे हैं. भाजपा और NDA के अन्य दलों की ओर से उन्हें आश्वासन दिया जा रहा है कि उनकी मांगों को ध्यान में रखा जाएगा और बाकी पहलुओं पर जल्द निर्णय लिया जाएगा. देखा जाए तो NDA दलों के बीच सीट बंटवारे पर गतिरोध गहरा गया है. कई छोटे सहयोगी दल भी दावेदारी कर रहे हैं. HAM, RLM आदि की भूमिका इस पृष्ठभूमि में अहम बन गई है.
क्या 2025 में 2020 की रणनीति दोहराएंगे?
यहां एक बड़ा सवाल ये है कि क्या चिराग पासवान 2025 में 2020 वाला खेल फिर से खेलने जा रहे हैं? यानी गठबंधन से अलग होकर, विरोधियों को फायदा पहुंचाना या दबाव बनाना. 2020 में भी एलजेपी की सीट बंटवारे को लेकर तनातनी हुई थी और आखिरकार चुनावों में उसने अपना दमखम दिखाया था.
आज चिराग के सुर वही संकेत दे रहे हैं. मैं संकट में हूं... कहकर शायद वह दबाव बनाना चाह रहे हैं. मीडिया विश्लेषक यह भी कयास लगा रहे हैं कि यदि NDA उनकी मांग पूरी न करे, तो चिराग संभवतः प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से गठजोड़ कर सकते हैं. हालांकि प्रशांत किशोर ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी गठबंधन में नहीं जा रहे है. उनका गठबंधन जनता से है, किसी अन्य दल से नहीं. ऐसे में चिराग की स्थिति दोहरी है. एक ओर वह गठबंधन में बने रहना चाहते हैं, तो दूसरी ओर अपनी मांगों को लेकर कड़ा रुख अख्तियार करते दिखते हैं.
पिता के शब्दों से भावनात्मक दबाव
चिराग पासवान के लिए यह केवल सीटों की लड़ाई नहीं है, बल्कि उनकी राजनीतिक पहचान, उनके आत्मसम्मान और पिता रामविलास पासवान की विरासत से जुड़ी लड़ाई भी है. वह यह संदेश देना चाह रहे हैं कि वो कमजोर नहीं बल्कि भरोसेमंद और जरूरी घटक हैं. उन्होंने अपने पिता के शब्द इस्तेमाल करके भावनात्मक दवाब बनाने की भी कोशिश की है. यह भी संकेत दिए हैं कि उन्हें नज़रंदाज किया गया तो वह राज्य की राजनीति में और भी ज्यादा ज़ोर-शोर के साथ उतरेंगे.
चिराग के कदम और NDA का संकट
दबाव की रणनीतिः चिराग पासवान पारंपरिक तरीके से दबाव बनाने की रणनीति अपना रहे हैं. साफ विरोध नहीं कर रहे, लेकिन 'मैं संकट में हूं' कहकर दबाव भी बना रहे हैं. इससे एनडीए गठबंधन उथल-पुथल से बचने के लिए साझा हल निकालने पर विवश हो सकता है.
गठबंधन टूटा तो क्या? यदि NDA उनकी मांगों पर 'सर्वमान्य' समाधान नहीं देती तो चिराग को चरम स्थिति में अलग जाना पड़ सकता है, लेकिन इस कदम की राजनीतिक लागत बहुत भारी होगी. उन्हें नया गठबंधन भी खोजना होगा.
प्रशांत किशोर की भूमिका? चिराग का यह संकेत कि वे पीके की पार्टी से मिल सकते हैं, अभी महज दबाव बनाने का तरीका लगती है. पीके ने स्पष्ट किया है कि उनके गठबंधन की नीति अन्य दलों के साथ नहीं है.
गठबंधन में कलह? यदि मामला सार्वजनिक रूप से तूल पकड़ता है तो NDA की एकता पर प्रश्न उठेंगे. जनता या मीडिया में इसके भीतरी कलह के रूप में संदेश जा सकता है.
वोट विभाजन का खतराः अगर LJPR बगावत करती है या अलग लड़ने का फैसला करती है तो NDA और विरोधी दोनों को नुकसान का खतरा रहेगा, वोट बंट सकते हैं खासकर छोटे दलों के बीच.
बहरहाल, चिराग पासवान का हालिया बयान एक अहम रणनीतिक राजनीतिक संकेत है. सीटों के बंटवारे पर उनका रवैया सख्त है. वह यह जता रहे हैं कि वो विकल्पों के लिए भी तैयार हैं. वहीं NDA के दलों का रुख संयमित है. जदयू और भाजपा दोनों दावा कर रहे हैं कि गठबंधन सुरक्षित है और इस तरह के बयान अस्थायी हैं. लेकिन देखना ये है कि सीट बंटवारा क्या शक्ल लेता है.
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