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गोपालपुर विधानसभा: 'मंडल बनाम मंडल' की लड़ाई में NDA के सामने गढ़ बचाने की चुनौती

गोपालपुर में इस बार त्रिकोणीय चुनाव की संभावना है. एक तरफ जदयू के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल हैं, तो दूसरी तरफ राजद मजबूत यादव आधार के बलबूते वापसी की उम्मीद लगाए है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती पूर्व विधायक गोपाल मंडल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ी कर दी है.

गोपालपुर विधानसभा: 'मंडल बनाम मंडल' की लड़ाई में NDA के सामने गढ़ बचाने की चुनौती

बिहार चुनाव 2025 में भागलपुर जिले की गोपालपुर विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 153) इस बार दो 'मंडल' प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर के चलते सुर्खियों में है. यह सीट एक तरफ जदयू (JDU) के पारंपरिक गढ़ के रूप में जानी जाती है, तो दूसरी तरफ यहां यादव मतदाताओं का निर्णायक दबदबा है. इस बार के चुनाव में  जदयू ने वर्तमान विधायक गोपाल मंडल का टिकट काटकर शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल को अपना प्रत्याशी बनाया है. वहीं लगातार तीन बार (2010, 2015, 2020 में) जीत दर्ज करने वाले गोपाल मंडल ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोंक दी है.

प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

गोपालपुर की राजनीति भौगोलिक चुनौतियों और मजबूत जातीय ध्रुवीकरण पर टिकी है. यह क्षेत्र गंगा और कोसी नदियों से घिरा होने के कारण हर साल बाढ़ और विस्थापन की समस्या झेलता है, जो यहां का सबसे बड़ा स्थायी मुद्दा है. किसानों को मुआवजा और पुल व सड़क संपर्क का विकास यहां के प्रमुख चुनावी वादे हैं.

वोटों का गणित और जातीय समीकरण

गोपालपुर में कुल 3.83 लाख मतदाता हैं. जातीय समीकरणों में यादव (18%) सबसे बड़ा समूह है, जो पारंपरिक रूप से राजद का आधार रहा है. हालांकि पिछले कुछ चुनावों में यह सीट तीन बार से जदयू के पास थी, जिसका कारण कुर्मी (12%) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) का मजबूत समर्थन रहा है. दलित (25%) और मुस्लिम (15%) मतदाता भी यहां पर परिणाम को प्रभावित करते हैं. इस बार, जदयू का टिकट बुलो मंडल को मिलने और गोपाल मंडल के निर्दलीय मैदान में उतरने से वोटों के बंटवारे की आशंका है, जिससे एनडीए का कोर वोट बैंक प्रभावित हो सकता है.

पिछली हार-जीत: जदयू का रहा है दबदबा

गोपालपुर सीट पर पिछले चार चुनावों (2005 से 2020) लगातार जदयू के कब्जे में रही है. 2020 के चुनाव में गोपाल मंडल (जदयू) ने राजद के शैलेश कुमार को भारी अंतर (24,461 वोटों) से हराया था. 2015 में गोपाल मंडल जो कि तब महागठबंधन में थे, ने बीजेपी के अनिल यादव को 5,169 वोटों से शिकस्त दी थी. उससे पहले 2010 के चुनाव में गोपाल मंडल (जदयू) ने राजद को 25,060 वोटों से हराया था.

इस बार माहौल क्या है? 

गोपालपुर में इस बार त्रिकोणीय चुनाव होने की पूरी संभावना है. एक तरफ जदयू के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की विकास योजनाओं का लाभ मिलेगा. दूसरी तरफ राजद अपने मजबूत यादव आधार पर भरोसा करते हुए वापसी की उम्मीद कर रहा है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती पूर्व विधायक गोपाल मंडल ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में खड़ी कर दी है. गोपाल मंडल अपनी व्यक्तिगत लोकप्रियता और पारंपरिक कुर्मी व ईबीसी समर्थन के सहारे वोटों में बड़ी सेंध लगा सकते हैं. यदि गोपाल मंडल एनडीए के वोटों को विभाजित करने में सफल होते हैं तो इसका सीधा लाभ राजद को मिल सकता है.

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