- बिहार चुनाव में जेन जेड मतदाताओं की बड़ी संख्या है जो जाति और पुरानी राजनीतिक कहानियों से अप्रभावित हैं
- बीजेपी के पास बिहार में मजबूत स्थानीय नेतृत्व और युवा चेहरा तेजस्वी यादव का विकल्प नहीं है
- पीएम मोदी अति पिछड़ा वर्ग को साधने की कोशिश कर रहे हैं ताकि बीजेपी का बिहार में प्रभाव बढ़े
बिहार एक कठिन राजनीतिक भूमि है. और इस बार के चुनाव में यहां कोई माहौल नहीं है . मतदाताओं की एक बड़ी संख्या वह है जिन्हें हम जेन जी कहते हैं मतलब की वो मतदाता जिनका जन्म सन 1997 के बाद हुआ है. मध्यम वर्ग के वो मतदाता जो अगड़ा पिछड़ा या हिंदू मुसलमान नहीं जानते. वो मतदाता जो बाबरी मस्जिद ढहते नहीं देखे हैं और वही मतदाता जो तथाकथित जंगलराज बिहार में महसूस नहीं किए हैं .
किस आधार पर पड़ेंगे मत?
यह एक बड़ी तादाद है और यह किस आधार पर अपना मत देगी, यह दोनों दल को असमंजस में डाले हुए है. बीजेपी के पास बिहार स्तर और कोई अकेला नेतृत्व नहीं है और साथ में तेजस्वी जैसा कोई युवा नेतृत्व भी नही है. इस आधार पर लालू-राबड़ी राज के किस्से नई पीढ़ी को सुनाने का आह्वान मोदी जी कर रहे हैं तो साथ में पिछड़ा वर्ग को मेडिकल में आरक्षण देने वाली बात भी खुल कर रहे हैं. एक तरफ वो गैर यादव पिछड़ी जातियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं तो दूसरी तरफ सामान्य सीट पर करीब 55% टिकट वो सवर्णों को दे चुके हैं.
बीजेपी को स्ट्राइक रेट ज्यादा रखना होगा
बीजेपी को अपना स्ट्राइक रेट भी ज्यादा रखना है क्योंकि जब बिहार में सत्ता की भागेदारी की बात होगी तब एनडीए का हर नेता अपना-अपना मजबूत पत्ता खोलेगा. पीएम मोदी के समस्तीपुर में भाषण और अति पिछड़ा के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर जी को श्रद्धांजलि से यह स्पष्ट हो गया की बीजेपी अब अति पिछड़ा वोट का शत प्रतिशत हिस्सा चाहती है. लेकिन जिन-जिन क्षेत्रों से तेजस्वी गठबंधन ने अति पिछड़ा उम्मीदवार उतारा है वहां इनका क्या रवैया होगा, कहना मुश्किल है?
लहर विहीन है चुनाव
लहर विहीन चुनाव में मतदाता किसी एक मुद्दे पर एकमत नज़र नहीं आ रहे. अगल-बगल के क्षेत्र में ही समीकरण बदलता नजर आ रहा है. मसलन लालगंज के भूमिहार एनडीए के खिलाफ मतदान कर सकते हैं तो साहेबगंज में वो एनडीए राजपूत के लिए मतदान कर सकते हैं.ऐसा दृश्य लगभग हर बड़े क्षेत्र में है.
बीजेपी की ईबीसी पर नजर
तो इस मुश्किल से उबरने के लिए बीजेपी चाहती है की मोटे तौर पर उसके पक्ष में माहौल बने और एनडीए की जीत के साथ एनडीए के अंदर बीजेपी आगे रहे. इस मुश्किल से उबरने में पीएम मोदी का साथ अति पिछड़ा वर्ग दे सकता है जिनकी संख्या हर क्षेत्र में औसत 20-25 % है. पीएम मोदी ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इसी वर्ग को साधा भी है.
तेजस्वी की भी मुश्किल
मुख्यमंत्री चेहरा को लेकर महागंठबंधन एनडीए पर अटैक करेगा लेकिन आम जनमानस के अंदर इसकी चर्चा अभी तक नहीं है . यह मुद्दा बनाना महागठबंधन के लिए मुश्किल वाला होगा. तेजस्वी युवाओं में लोकप्रिय थे लेकिन नीतीश के साथ अगस्त 2022 से जनवरी 2024 की सत्ता में भागेदारी का उलटा दांव भी पड़ा है क्योंकि राजद को मिले 15 मंत्री पद में से 7 सिर्फ यादव ही थे जो गैर यादव हिंदू जाति और मुसलमानों को अखर गया.
अभी तक के माहौल में मुस्लिम मतदाता गैर मुस्लिम उम्मीदवार महागठबंधन उम्मीदवारों पर मौन हैं. यह तय है कि वो एनडीए को वोट नहीं करेंगे लेकिन उनके वोटिंग में एग्रेशन नहीं रहा तो वह एनडीए के लिए वरदान होगा. मुझे ऐसा लगता है की नवंबर 2 और 3 को ही असल माहौल बनेगा लेकिन क्षेत्रवार बनेगा. समस्त राज्य स्तर पर माहौल बनाना इस बार कठिन है.
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