
बखरी विधानसभा सीट (Bakhri Assembly Seat) बेगूसराय जिले के उत्तरी भाग में स्थित है. यह अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित विधानसभा सीट है. यह सीट बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है. बखरी की पहचान पारंपरिक रूप से वामपंथी (कम्युनिस्ट) आंदोलन और सामाजिक न्याय की राजनीति के केंद्र के रूप में रही है. 2008 के परिसीमन के बाद यह सीट आरक्षित हो गई. यह सीट सीपीआई और बीजेपी/जेडीयू के बीच विचारधारा की लड़ाई का प्रतीक रही है.
इस बार क्या खास मुद्दे हैं?
- बखरी विधानसभा क्षेत्र की राजनीति पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का गहरा प्रभाव रहा है. यह एक कृषि प्रधान और अत्यधिक ग्रामीण इलाका है.
- बाढ़ और जलजमाव: यहां का उत्तरी भाग विशेषकर दियारा क्षेत्र हर साल बाढ़ और जलजमाव से बुरी तरह प्रभावित होता है, जिससे किसानों और गरीबों की समस्याएं बढ़ जाती हैं.
- भूमिहीनता और सामाजिक न्याय: आरक्षित सीट होने के कारण दलितों, भूमिहीन गरीबों और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दे हमेशा राजनीति के केंद्र में रहते हैं.
- शिक्षा और स्वास्थ्य: बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. अभी तक डिग्री कॉलेज और अनुमंडलीय अस्पताल के लिए लोग लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं.
- ट्रेनों का ठहरावः इसके अलावा पलायन करने वाले परदेसियों के लिए अनुमंडल मुख्यालय के स्टेशन पर लंबी दूरी की ट्रेनों का ठहरा नहीं होना परेशानी का बहुत बड़ा कारण है.
वोटों का गणित क्या है?
चुनाव आयोग द्वारा 30 सितंबर 2025 को जारी अंतिम मतदाता सूची के अनुसार, बखरी विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 2,60,950 है. इसमें लगभग 1,38,500 पुरुष मतदाता और 1,22,400 महिला मतदाता शामिल हैं. थर्ड जेंडर के मतदाता लगभग 50 हैं. 2020 के बाद मतदाताओं की संख्या में लगभग 6,500 की वृद्धि हुई है.
इस सीट पर अनुमानित औसत मतदान प्रतिशत 58% से 61% के बीच रहता है. यह एक आरक्षित सीट होने के कारण यहां अनुसूचित जाति (SC) के मतदाताओं की हिस्सेदारी निर्णायक होती है, जो लगभग 16-18% है. इसके अलावा, यादव, मुस्लिम (लगभग 10%) और अति पिछड़ा वर्ग (EBC) भी परिणाम को प्रभावित करते हैं. भूमिहार मतदाताओं की उपस्थिति भी महत्वपूर्ण है.
पिछली हार-जीत का हिसाब
बखरी सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा रहा है. 2020 विधानसभा चुनाव में यह सीट महागठबंधन के घटक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के सूर्यकांत पासवान ने BJP के रामशंकर पासवान को 700 से भी कम वोटों के अति-मामूली अंतर से हराकर जीती थी. 2020 का मुकाबला इस सीट के इतिहास में सबसे करीबी मुकाबलों में से एक था.
इससे पहले 2015 विधानसभा चुनाव में आरजेडी के उपेंद्र पासवान ने बीजेपी के रामानंद राम को 12,000 से अधिक वोटों से हराया था.
2024 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो बखरी विधानसभा क्षेत्र में एनडीए के उम्मीदवार (भाजपा) ने विपक्षी महागठबंधन (सीपीआई) के उम्मीदवार पर लगभग 14,000 वोटों की बड़ी बढ़त हासिल की थी. यह बढ़त सीपीआई के लिए एक बड़ा झटका थी और स्पष्ट संकेत है कि एनडीए ने सीपीआई के मजबूत गढ़ में सेंध लगा दी है.
इस बार क्या माहौल है?
बखरी की राजनीति हमेशा वामपंथी विचारधारा और सामाजिक न्याय के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए को मिली बढ़त ने समीकरण बदल दिए हैं. महागठबंधन (RJD/CPI) के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का विषय है. उन्हें अपने SC, यादव और मुस्लिम वोट बैंक को पूरी तरह से एकजुट करना होगा और वामपंथी कार्यकर्ताओं की जमीनी पकड़ बनानी होगी. एनडीए (BJP/JDU) अपनी लोकसभा बढ़त को बनाए रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी दलित केंद्रित स्कीमों के दम पर अपनी दावेदारी मजबूत करेगा.
इस सीट पर मुकाबला इस बात पर निर्भर करेगा कि वामपंथी कैडर अपने पारंपरिक मतदाताओं को वापस लाने में कितना सफल होता है. 2025 में बखरी सीट पर कांटे की टक्कर होने की संभावना है. भले ही यह सीपीआई का पारंपरिक गढ़ रहा हो, 2024 की लोकसभा बढ़त के बाद एनडीए अब इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा देगा, जिससे यह मुकाबला एक हाई-वोल्टेज चुनावी ड्रामा बन सकता है.
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