
बिहार विधानसभा चुनाव इस साल के अंत में होने वाले हैं. इससे पहले बिहार की राजनीति गर्म है. सभी दलों की तरफ से तैयारी तेज कर दी गई है. गठबंधन और सीट बंटवारे को लेकर भी दांवपेच जारी है. बिहार में पिछले चुनावों में एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला होता रहा है. मंगलवार को दिल्ली में राजद नेता तेजस्वी यादव कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मिलने पहुंचे. इस बैठक में कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी मौजूद थे. सूत्रों के अनुसार तीनों नेताओं के बीच गठबंधन और सीट बंटवारे को लेकर बातचीत हुई. बिहार की राजनीति में पिछले लगभग 3 दशक से राजद और कांग्रेस साथ रहे हैं हालांकि कई ऐसे मौके आए हैं जब सदन में साथ दिखने वाले दोनों ही दल चुनावी मैदान में अलग-अलग उतरे हैं.
5 जुलाई 1997 को जनता दल से अलग होकर लालू प्रसाद ने राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया था. राजद के गठन के बाद से ही राजद को विधानसभा के अंदर कांग्रेस का साथ मिलता रहा है. राबड़ी देवी की सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस के विधायकों ने राजद को समर्थन दिया था लेकिन लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बाद भी विधानसभा चुनाव में दोनो दल कई बार अलग-अलग चुनाव लड़ते रहे हैं.
- 2000 में कांग्रेस ने अलग लड़ा था चुनाव: साल 2000 में एकीकृत बिहार में हुए चुनाव में कांग्रेस और राजद के बीच गठबंधन नहीं हो पाया था और दोनों ही दल अलग-अलग चुनावी मैदान में उतरे थे. चुनाव के बाद राबड़ी देवी की सरकार बनाने में कांग्रेस के विधायकों ने अहम भूमिका निभाई थी.
- 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिया था झटका: 2005 में बिहार में 2 बार विधानसभा के चुनाव हुए थे पहले चुनाव में कांग्रेस और लोजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था और राजद को अकेले चुनाव लड़ना पड़ा था. दूसरे चुनाव में राजद का पूरी तरह से कांग्रेस से गठबंधन नहीं हो पाया था और राजद को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था
- 2010 के विधानसभा चुनाव में लालू रामविलास ने कांग्रेस को अलग कर दिया: साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा और राजद ने मिलकर चुनाव लड़ा था इस चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस का राजद के साथ गठबंधन नहीं हो पाया था. राजद को इतिहास में इस चुनाव में सबसे शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था.
- 2015 में साथ आ गए लालू और कांग्रेस: 2015 के चुनाव में राजद और कांग्रेस के बीच बात बन गई थी. इस चुनाव में महागठबंधन का गठन किया गया और इसमें जदयू भी शामिल थी. इस चुनाव में कांग्रेस ने 41 और राजद ने 101 सीटों पर चुनाव लड़ा था और गठबंधन को शानदार जीत मिली थी
- 2020 में भी चलता रहा महागठबंधन: साल 2020 के विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन बना रहा हालांकि महागठबंधन से जदयू ने अपने आप को पहले ही अलग कर लिया था और वामदलों की इसमें एंट्री हो गई थी. कांग्रेस पार्टी ने इस चुनाव में 70 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 19 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि चुनाव के बाद कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर सहयोगी दलों ने सवाल उठाया था.
कांग्रेस राजद के प्रभाव से निकलने के लिए करती रही है प्रयास
बिहार की राजनीति में पिछले 3 दशकों में लालू यादव की पकड़ मजबूत बनने के बाद राजनीतिक तौर पर सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस होता रहा है. कांग्रेस के आधार वोट धीरे-धीरे बीजेपी और राजद की तरफ शिफ्ट हो गए. हालांकि पार्टी की तरफ से कई बार लालू यादव की छाया से बाहर निकलने के प्रयास होते रहे हैं. लेकिन प्रयास या तो अधूरे रह गए हैं या केंद्र की राजनीति की मजबूरी में कांग्रेस को हथियार डालना पड़ा है.

रिश्तों को लेकर अभी क्यों उठ रहे हैं सवाल
बिहार में इस विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के रिश्तों को लेकर सियासी चर्चाएं फिर से तेज होने के पीछे कई कारण हैं. कन्हैया कुमार की हालिया बिहार यात्रा ने इस बात को हवा दी है. कन्हैया कुमार, जो कांग्रेस के युवा और तेजतर्रार चेहरों में से एक माने जाते हैं, हाल ही में बिहार दौरे पर थे. इस दौरान उन्होंने कई जिलों में जनसभाएं कीं और युवाओं के बीच कांग्रेस की सक्रियता को दिखाने की कोशिश की. हालांकि यह यात्रा आधिकारिक रूप से पार्टी के प्रचार का हिस्सा थी, लेकिन इसके राजनीतिक मायने इससे कहीं आगे निकल गए हैं.

दरअसल, बिहार में कांग्रेस और राजद महागठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस को उसकी इच्छा के अनुसार सीटें नहीं मिली थी. राज्य की 40 में से अधिकांश सीटों पर राजद खुद चुनाव लड़ी थी. अब कांग्रेस अपनी खोई जमीन वापस हासिल करने की कोशिश में है. कन्हैया कुमार जैसे नेताओं की फील्ड में तैनाती इसी रणनीति का हिस्सा है. यह यात्रा महज समर्थन जुटाने की कवायद नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश है कि कांग्रेस अब पिछलग्गू भूमिका में नहीं रहना चाहती.
- बिहार में विधानसभा की 243 सीटें हैं. अभी बीजेपी राज्य विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी है.
- राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा और भाकपा माले ने पिछले चुनाव में मिलकर चुनाव लड़ा था.
- पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
- विधानसभा चुनावों में कई बार कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा है.
- पप्पू यादव को लेकर भी कांग्रेस और राजद में टकराव होता रहा है.
इस बीच पप्पू यादव को लेकर भी राजद और कांग्रेस में टकराव है. पप्पू यादव, जिन्हें कांग्रेस ने पुर्णिया से अपना उम्मीदवार बनाया था उन्हें राजद ने समर्थन नहीं दिया बाद में पप्पू यादव को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा था. राजद का आरोप है कि कांग्रेस पप्पू यादव जैसे नेताओं को टिकट देकर गठबंधन धर्म का उल्लंघन कर रही थी. वहीं पप्पू यादव राजद पर लगातार हमलावर रहे हैं.

राजद और कांग्रेस के रिश्ते को लेकर विपक्षी भी उठा रहे हैं सवाल
राजद कांग्रेस के रिश्ते को लेकर अब विरोधी भी सवाल उठाने लगे हैं. चिराग पासवान ने कहा है कि यह चुनावी वर्ष है और जिस तरीके से एनडीए जीत की ओर अग्रसर हो रहा है और जिस तरीके से एनडीए के सभी घटक दलों के अध्यक्ष एक साथ पूरे प्रदेश का भ्रमण कर रहे हैं और संगठन को मजबूत करने का काम कर रहे हैं, इससे विपक्ष को परेशान होना ही है. इनकी परेशानी तब और बढ़ जाती है, जब उनके गठबंधन के भीतर क्लेश की स्थिति उत्पन्न हो रही है। राजद और कांग्रेस के बीच बातचीत का अभाव दिख रहा है.
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नए प्रभारी जब से आए हैं, तो यही लग रहा है कि कांग्रेस जिस तरह से पहले राष्ट्रीय जनता दल के सामने नतमस्तक रहती थी, इस बार शायद ऐसा नहीं है, इसलिए ये सभी बातें विपक्ष को परेशान कर ही रही हैं. इस कारण वे तरह-तरह की बातें कर रहे हैं. जनता ने उपचुनाव में भी अपना जनादेश सुनाया है और लोकसभा चुनाव में भी अपना फैसला दिया है. अब कुछ महीने विधानसभा चुनाव में शेष हैं. इस चुनाव के परिणाम भी एनडीए के पक्ष में आएंगे.

फिलहाल दोनों दलों की ओर से कोई आधिकारिक टकराव की बात सामने नहीं आई है, लेकिन अंदरखाने की खींचतान अब सड़कों तक दिखने लगी है. सवाल यह है कि क्या विधानसभा चुनाव कांग्रेस और राजद का गठबंधन पहले जैसा रह पाएगा या यह दोस्ती अब दरकने लगी है?
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