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This Article is From Nov 09, 2015

सहयोगियों ने ही भाजपा की लुटिया डुबोई बिहार में

सहयोगियों ने ही भाजपा की लुटिया डुबोई बिहार में
नई दिल्‍ली: भाजपा के सहयोगियों ने ही डूबो दी बिहार चुनाव में एनडीए की नैया। एनडीए को मिली 58 में से 53 सीटें तो केवल भाजपा की हैं। रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी दो, उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी दो और जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा बस एक पर सिमट कर रह गए।

बेशक बिहार ने भाजपा को वो झटका दिया है जो ना केवल याद रहेगा बल्कि इससे उबरने में पार्टी को खासा वक्त भी लगेगा। इसके लिए सहयोगी दल भी खासा जिम्मेदार रहे हैं। तीनों सहयोगियों ने सीटों के बंटवारे के वक्त भरपूर दबाव बनाते हुए 86 सीटें झटकीं लेकिन जीत मिली सिर्फ पांच पर। बिहार लोक समता पार्टी के अध्यक्ष और सांसद अरुण सिंह कहते हैं, एक तो टिकटों का बंटवारा देर से हुआ, निचले स्तर पर सामंजस्य नहीं बैठ पाया और इसका कार्यकर्ताओं में खराब संकेत गया।

42 सीटों पर लड़कर एलजेपी सिर्फ दो पर जीती, आरएलएसपी भी 23 पर लड़कर दो सीट ले पाई, वहीं 21 सीटों पर लड़ते हुए मांझी की पार्टी हम, सिर्फ मैं होकर रह गई। बावजूद इसके जीतन राम मांझी हार के लिये खुद के बजाए भाजपा और भागवत के बयान को जिम्मेदार ठहराने में लगे हैं। वहीं एलजेपी के चिराग पासवान कहते हैं हार जाने के बाद तो सीट, टिकट बंटवारे जैसी बातें तो होंगी ही पर अगर जीत जाते तो कोई बात नहीं होती। डेढ़ साल पहले जब लोकसभा जीते तो किसी ने भी सवाल नहीं पूछा।

वैसे सूत्रों के मुताबिक एनडीए में शुरू से ही तालमेल की कमी दिखी। नतीजा रहा कि किसी पार्टी का वोट दूसरी पार्टी में ट्रांसफर नहीं हुआ। सब अपनी डफली अपना राग अलापते रहे।

कहा जा रहा था कि अगर पप्पू यादव और ओवैसी बिहार में चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करते तो इसका फायदा भाजपा को होता। पर दोनों अपना खाता नहीं खोल सके। पप्पू यादव ने कहा कि हमारी पार्टी को एक महीना बने हुआ था, बावजूद हमनें कई जगहों पर बेहतर प्रदर्शन किए।

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