पटना:
'हम वो मुन्ना भाई वाले डॉक्टर नहीं हैं, संयोग से हमारा नाम भी मुन्ना है, आप हमें वो मुन्ना मत समझिए।' ये कहना है मुन्ना शुक्ला का। क्या आप इस नाम से वाक़िफ़ हैं? अगर आप बिहार के बाहुबलियों के बारे में जानकारी रखते हैं तो ये नाम आपके लिए नया नहीं होगा। इन्हें उम्र क़ैद की सज़ा हुयी थी, इल्ज़ाम था राबड़ी देवी सरकार के एक मंत्री ब्रिज बिहारी प्रसाद की हत्या का।
लेकिन अब ये डॉक्टर मुन्ना शुक्ला हैं। वह कहते हैं, 'मैं डॉक्टर हूं, साहित्य में पीएचडी किया हूं इसलिए लोग मुझे डॉक्टर कह कर बुलाते हैं।'
मुन्ना शुक्ला लालगंज से जेडीयू के उम्मीदवार हैं, आजकल वो अपना प्रचार कर रहे हैं, घर घर जाकर वोट मांग रहे हैं। वो हंसते हुए एनडीटीवी से बोले, 'ये टैग सिर्फ़ लाल गंज से बाहर है, यहां सब मुन्ना कहते हैं। नेता तो बन नहीं पाए, सबने हमें तो मुन्ना बनाकर रख दिया, बाहुबली कैसे हो गए।'
मुन्ना अकेले नहीं हैं। बिहार के चुनावी अखाड़े में ऐसे कई गैंस्टर्स हैं जो जेल पहुंचे और वहां रिसर्च में लग गए, कई डॉक्टर बन गए। इन सब के पीएचडी के विषय जानकार आप हैरान रह जाएंगे। बेशक इन पर हत्या, अपहरण और फिरौती के मामले चल रहे हों, लेकिन डॉक्टरेट इन सब ने अहिंसा और शांति के विषयों में की है।
बिहार में इनको सब जानते हैं। ये पप्पू यादव हैं। ये साहब भी डॉक्टर हैं। इनके सब्जेक्ट्स हैं डिज़ास्टर मैनेजमेंट और ह्यूमन राइट्स। पप्पू यादव का कहना है, 'मेरी जो ज़रूरत थी मैंने वो विषय चुने। ह्यूमन राइट्स देश में एक समस्या है और डिज़ास्टर से मेरा बिहार जूझ रहा है। इसे मैनेज करने की ज़रूरत है।'
बिहार के चुनावी अखाड़े में कई बाहुबली हैं जो जेल तो गए किसी जुर्म के लिए लेकिन जब बहार निकले तो डॉक्टर बन चुके थे।
- सीवान के शहाबुद्दीन ने भी जेल में गठबंधन की राजनीति में डॉक्टरेट किया।
- सुनील पांडेय ने मौज़ुदा वक़्त में महावीर के उपदेश के मायने तलाशे हैं।
- पूर्व सांसद आनंद मोहन के जेल में कवितायें लिख डाली - क़ैद में आज़ाद क़लम
उधर राजनीति साफ़ करने का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियां इन बाहुबलियों पर निर्भर रहती हैं इसीलिए ये हर इलेक्शन में रेग्युलर रोल अदा करते हैं। यानी ये कहना ग़लत नहीं होगा कि राजनीति में दाग़ सभी पार्टियों को अच्छे लगते हैं।
लेकिन अब ये डॉक्टर मुन्ना शुक्ला हैं। वह कहते हैं, 'मैं डॉक्टर हूं, साहित्य में पीएचडी किया हूं इसलिए लोग मुझे डॉक्टर कह कर बुलाते हैं।'
मुन्ना शुक्ला लालगंज से जेडीयू के उम्मीदवार हैं, आजकल वो अपना प्रचार कर रहे हैं, घर घर जाकर वोट मांग रहे हैं। वो हंसते हुए एनडीटीवी से बोले, 'ये टैग सिर्फ़ लाल गंज से बाहर है, यहां सब मुन्ना कहते हैं। नेता तो बन नहीं पाए, सबने हमें तो मुन्ना बनाकर रख दिया, बाहुबली कैसे हो गए।'
मुन्ना अकेले नहीं हैं। बिहार के चुनावी अखाड़े में ऐसे कई गैंस्टर्स हैं जो जेल पहुंचे और वहां रिसर्च में लग गए, कई डॉक्टर बन गए। इन सब के पीएचडी के विषय जानकार आप हैरान रह जाएंगे। बेशक इन पर हत्या, अपहरण और फिरौती के मामले चल रहे हों, लेकिन डॉक्टरेट इन सब ने अहिंसा और शांति के विषयों में की है।
बिहार में इनको सब जानते हैं। ये पप्पू यादव हैं। ये साहब भी डॉक्टर हैं। इनके सब्जेक्ट्स हैं डिज़ास्टर मैनेजमेंट और ह्यूमन राइट्स। पप्पू यादव का कहना है, 'मेरी जो ज़रूरत थी मैंने वो विषय चुने। ह्यूमन राइट्स देश में एक समस्या है और डिज़ास्टर से मेरा बिहार जूझ रहा है। इसे मैनेज करने की ज़रूरत है।'
बिहार के चुनावी अखाड़े में कई बाहुबली हैं जो जेल तो गए किसी जुर्म के लिए लेकिन जब बहार निकले तो डॉक्टर बन चुके थे।
- सीवान के शहाबुद्दीन ने भी जेल में गठबंधन की राजनीति में डॉक्टरेट किया।
- सुनील पांडेय ने मौज़ुदा वक़्त में महावीर के उपदेश के मायने तलाशे हैं।
- पूर्व सांसद आनंद मोहन के जेल में कवितायें लिख डाली - क़ैद में आज़ाद क़लम
उधर राजनीति साफ़ करने का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियां इन बाहुबलियों पर निर्भर रहती हैं इसीलिए ये हर इलेक्शन में रेग्युलर रोल अदा करते हैं। यानी ये कहना ग़लत नहीं होगा कि राजनीति में दाग़ सभी पार्टियों को अच्छे लगते हैं।
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