इमामगंज:
इस बार इमामगंज की हवा में एक हल्का ही सही पर बदलाव नजर आ रहा है। यहां के मुसलमान जेडीयू की बजाय कमल पर मेहरबान दिख रहे हैं और उसकी वजह है बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और दलित नेता जीतीन राम मांझी। मसरूर आलम का कहना है, 'चौधरी ने हर आदमी को ठगा है, इसलिए जनता बदलाव चाहती है।' और ऐसा सोचने वाले मसरूर अकेले नहीं, गांव में कई मिल जाएंगे। इन सब का कहना है कि उदय नारायण चौधरी ने विकास तो किया लेकिन इलाक़े में रंगदारी का धंधा भी ख़ूब बढ़ा है। एक शख्स ने कहा, 'इस बार मांझी की बारी है, चौधरी को ख़ूब देख लिया है।'
इमामगंज में क़रीब 15 फ़ीसदी वोटर मुसलमान हैं। और जो उच्च वर्ग के हैं वो मांझी को सपोर्ट कर रहे हैं जबकि पीछड़ा वर्ग अभी भी जेडीयू के साथ है। इसके पीछे भी वजह है। दरअसल पीछले कई सालों से मुसलमान तबका नक्सलियों का शिकार रहा है और वो इस सब के लिए चौधरी को जिम्मेदार मानते हैं।
दरअसल ये माना जाता रहा है कि रंगदारी पर रोक को लेकर कोई कड़े क़दम नहीं उठाए गए। मसरूर आलम खुलेआम कहते हैं, 'इस इलाक़े में जो माओवादी हैं उनका समर्थन चौधर करते हैं।'
लेकिन सबसे ज़्यादा परेशान इस इलाक़े में व्यापारी हैं, उन्हें दो-दो टैक्स देने पड़ते हैं। कारोबारी मनोज कुमार का कहना है, 'बिहार का विकास केंद्र के साथ साथ होना चाहिए। हम चाहते हैं कि जीएसटी लागू हो जाए ताकि हमें दो दो बार टैक्स ना देना पड़े।' अवधेश कुमार जोकि दुकान चलाते हैं, उनका कहना है, 'हम चाहते हैं इलाक़े में अमन और चैन हो, कोई रंगदारी ना करे।
लेकिन ऐसा भी नहीं सभी मुस्लिम वोटर मांझी के साथ हैं, कई ऐसे भी हैं जो उनके खिलाफ हैं। फंसी अहमद का कहना है, मांझी धोखेबाज़ हैं, 'वो दो जगह से चुनाव लड़ रहे हैं। क्या पता कौन सी सीट वो छोड़ देंगे। ऐसे में उन पर कैसे भरोसा किया जा सकता है।
पर सवाल उससे भी बड़ा है जो इमामगंज में भी चर्चाओं में सुना जा सकता है। मांझी अगर इमामगंज फतह करने में कामयाब होते हैं तो उसके अर्थ क्या हैं? क्या इमामगंज में मांझी हिसाब चुकता करने उतरे हैं। या फिर बिहार में सबसे बड़े दलित नेता बनना चाहते हैं। अगर वो चौधरी को हरा पाते हैं तो उनके दोनों ख़्वाब पूरे हो जाएंगे।
इमामगंज में वोट प्रतिशत
अगड़ी जाती - 7 फ़ीसदी
दलित - 31 फ़ीसदी, जिसमें से 19 फ़ीसदी मांझी
मुसलमान - 15 फ़ीसदी
पोलिंग स्टेशन - 299, सभी स्वांवेदनशील
इमामगंज में क़रीब 15 फ़ीसदी वोटर मुसलमान हैं। और जो उच्च वर्ग के हैं वो मांझी को सपोर्ट कर रहे हैं जबकि पीछड़ा वर्ग अभी भी जेडीयू के साथ है। इसके पीछे भी वजह है। दरअसल पीछले कई सालों से मुसलमान तबका नक्सलियों का शिकार रहा है और वो इस सब के लिए चौधरी को जिम्मेदार मानते हैं।
दरअसल ये माना जाता रहा है कि रंगदारी पर रोक को लेकर कोई कड़े क़दम नहीं उठाए गए। मसरूर आलम खुलेआम कहते हैं, 'इस इलाक़े में जो माओवादी हैं उनका समर्थन चौधर करते हैं।'
लेकिन सबसे ज़्यादा परेशान इस इलाक़े में व्यापारी हैं, उन्हें दो-दो टैक्स देने पड़ते हैं। कारोबारी मनोज कुमार का कहना है, 'बिहार का विकास केंद्र के साथ साथ होना चाहिए। हम चाहते हैं कि जीएसटी लागू हो जाए ताकि हमें दो दो बार टैक्स ना देना पड़े।' अवधेश कुमार जोकि दुकान चलाते हैं, उनका कहना है, 'हम चाहते हैं इलाक़े में अमन और चैन हो, कोई रंगदारी ना करे।
लेकिन ऐसा भी नहीं सभी मुस्लिम वोटर मांझी के साथ हैं, कई ऐसे भी हैं जो उनके खिलाफ हैं। फंसी अहमद का कहना है, मांझी धोखेबाज़ हैं, 'वो दो जगह से चुनाव लड़ रहे हैं। क्या पता कौन सी सीट वो छोड़ देंगे। ऐसे में उन पर कैसे भरोसा किया जा सकता है।
पर सवाल उससे भी बड़ा है जो इमामगंज में भी चर्चाओं में सुना जा सकता है। मांझी अगर इमामगंज फतह करने में कामयाब होते हैं तो उसके अर्थ क्या हैं? क्या इमामगंज में मांझी हिसाब चुकता करने उतरे हैं। या फिर बिहार में सबसे बड़े दलित नेता बनना चाहते हैं। अगर वो चौधरी को हरा पाते हैं तो उनके दोनों ख़्वाब पूरे हो जाएंगे।
इमामगंज में वोट प्रतिशत
अगड़ी जाती - 7 फ़ीसदी
दलित - 31 फ़ीसदी, जिसमें से 19 फ़ीसदी मांझी
मुसलमान - 15 फ़ीसदी
पोलिंग स्टेशन - 299, सभी स्वांवेदनशील
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
बिहारचुनाव2015, बिहार विधानसभा चुनाव 2015, जीतन राम मांझी, इमामगंज, BiharPolls2015, Bihar Assembly Election 2015, Jitan Ram Manjhi, Imamganj