प्रतीकात्मक फोटो
बेंगलुरु:
बेंगलुरु शहर की आबादी लगभग एक करोड़ पांच लाख है जबकि यहां वाहनों की तादाद लगभग 55 लाख के आसपास है। यानी औसतन 2 लोगों पर एक गाड़ी है। ऐसे हालात में सड़कों पर जाम आम हो गया है। सफर लंबा होता है क्योंकि गाड़ियों की रफ्तार धीमी होती है। इस रफ्तार को बढ़ाने और वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर रोक के लिए दिल्ली के ऑड-ईवन नंबर फॉर्मूले का उपयोग बेंगलुरु में भी किया जा सकता है।
कर्नाटक सरकार की दिल्ली पर नजर
कर्नाटक सरकार इस फॉर्मूले पर नज़र रखे हुए है। राज्य के शहरी विकास मंत्री मंत्री केजी जॉर्ज ने कहा कि उनकी सरकार दिल्ली में चल रहे प्रयोग पर नजर रखे हुए है। अगर प्रयोग सफल होता है तो जैसा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है बेंगलुरु के लिए भी इस विकल्प पर विचार किया जाएगा।
दोनों शहरों की जमीनी हकीकत जुदा
हालांकि दिल्ली और बेंगलुरु के जमीनी हालात बिलकुल अलग हैं। दिल्ली में मेट्रो रेल के साथ-साथ इंटरसिटी बसों का बेड़ा सुनियोजित ढंग से चल रहा है जो कि पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन का एक सशक्त मध्यम बना है। इसके विपरीत बेंगलुरु में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट का लगभग 18 फीसदी ऑपरेशनल है और वह भी सीमित रूट पर है। कागजों पर करीब 5500 बस पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल हो रही हैं लेकिन वास्तव में महज 2200 बसें ही सड़कों पर दिखती हैं।
सार्वजनिक यातायात की अपेक्षित व्यवस्था नहीं
ऐसे में डेढ़ लाख के आसपास ऑटो रिक्शे मनमाने ढंग से शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधन बने हुए हैं। विदेशों में भी जहां ऑड-ईवन फॉर्मूले लागू किया गया है वहां का पब्लिक ट्रांसपोर्ट काफी मजबूत है। बेंगलुरु में एक साथ मेट्रो रेल, ओवर ब्रिज, अंडर ब्रिज और रोड चौड़ी करने के प्रोजेक्ट चल रहे हैं जिससे ट्रैफिक की दिक्कतें काफी बढ़ी हैं। ऐसे में भले ही दिल्ली इस फॉर्मूले को अपनाए बेंगलुरु के मौजूदा हालात में इसकी संभावना कम दिखती है।
कर्नाटक सरकार की दिल्ली पर नजर
कर्नाटक सरकार इस फॉर्मूले पर नज़र रखे हुए है। राज्य के शहरी विकास मंत्री मंत्री केजी जॉर्ज ने कहा कि उनकी सरकार दिल्ली में चल रहे प्रयोग पर नजर रखे हुए है। अगर प्रयोग सफल होता है तो जैसा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा है बेंगलुरु के लिए भी इस विकल्प पर विचार किया जाएगा।
दोनों शहरों की जमीनी हकीकत जुदा
हालांकि दिल्ली और बेंगलुरु के जमीनी हालात बिलकुल अलग हैं। दिल्ली में मेट्रो रेल के साथ-साथ इंटरसिटी बसों का बेड़ा सुनियोजित ढंग से चल रहा है जो कि पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन का एक सशक्त मध्यम बना है। इसके विपरीत बेंगलुरु में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट का लगभग 18 फीसदी ऑपरेशनल है और वह भी सीमित रूट पर है। कागजों पर करीब 5500 बस पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल हो रही हैं लेकिन वास्तव में महज 2200 बसें ही सड़कों पर दिखती हैं।
सार्वजनिक यातायात की अपेक्षित व्यवस्था नहीं
ऐसे में डेढ़ लाख के आसपास ऑटो रिक्शे मनमाने ढंग से शहर में पब्लिक ट्रांसपोर्ट के साधन बने हुए हैं। विदेशों में भी जहां ऑड-ईवन फॉर्मूले लागू किया गया है वहां का पब्लिक ट्रांसपोर्ट काफी मजबूत है। बेंगलुरु में एक साथ मेट्रो रेल, ओवर ब्रिज, अंडर ब्रिज और रोड चौड़ी करने के प्रोजेक्ट चल रहे हैं जिससे ट्रैफिक की दिक्कतें काफी बढ़ी हैं। ऐसे में भले ही दिल्ली इस फॉर्मूले को अपनाए बेंगलुरु के मौजूदा हालात में इसकी संभावना कम दिखती है।
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