प्रतीकात्मक फोटो
मेरठ जिले की हस्तिनापुर सीट और दोआब की कासगंज सीट ने अपनी इस खासियत को बरकरार रखा है कि जो यहां से जीतेगा, वही उत्तर प्रदेश जीतेगा. ये दोनों सीट इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खाते में गई हैं जो उत्तर प्रदेश में 14 साल बाद सरकार बनाने जा रही है. गंगा के किनारे बसे हस्तिनापुर को महाभारत में कौरवों की राजधानी बताया गया है. समय बीतने के साथ इसके जलवे में कमी आती गई लेकिन इसकी यह ख्याति इसके साथ जुड़ी रही कि यह इलाका हमेशा सत्तारूढ़ दल के साथ रहता है।
यही हाल कासगंज का है.चाहे जिसकी हवा हो, चाहे जो भी मुद्दा प्रदेश को मथ रहा हो, यहां से जो दल जीतता है, वह प्रदेश में सत्तारूढ़ होता है. इस बार हस्तिनापुर में भाजपा के दिनेश खटीक ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के योगेश वर्मा को 20 हजार से अधिक मतों से हराया है. 2012 में यहां से समाजवादी पार्टी (एसपी) के प्रभु दयाल वाल्मीकि ने जीत हासिल की थी और तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे. वाल्मीकि ने योगेश वर्मा को हराया था, तब योगेश पीस पार्टी के उम्मीदवार थे. योगेश वर्मा ने 2007 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीता था और बसपा सत्ता में आई थी.
मजे की बात यह है कि 1996 में हस्तिनापुर में निर्दलीय प्रत्याशी अतुल कुमार ने जीत हासिल की थी और तब किसी भी दल को राज्य में बहुमत नहीं मिला था और कुछ महीनों तक राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था. यहां से जब-जब कांग्रेस जीती, तब-तब कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई. 1989 में जब यहां से कांग्रेस हारी और जनता दल की जीत हुई तो जनता दल ही प्रदेश की सत्ता में आया और मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने. काली नदी के तट पर बसे कासगंज की भी कमोबेश यही कहानी है. 1974 के बाद से यहां हुए 11 विधानसभा चुनाव में यही हुआ है कि जिस भी पार्टी का प्रत्याशी यहां से जीता, वही प्रदेश में सत्तारूढ़ हुई.
इस बार यहां से भाजपा के देवेंद्र सिंह राजपूत जीते हैं और भाजपा भारी जीत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौट रही है. राजपूत ने सपा के हसरत उल्ला शेरवानी को 15 हजार वोट से हराया है. 2012 में यहां से सपा के मनपाल सिंह जीते थे. भाजपा यहां से आखिरी बार 1991 में जीती थी, जब उसने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. कल्याण सिंह तब सीएम बने थे.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
यही हाल कासगंज का है.चाहे जिसकी हवा हो, चाहे जो भी मुद्दा प्रदेश को मथ रहा हो, यहां से जो दल जीतता है, वह प्रदेश में सत्तारूढ़ होता है. इस बार हस्तिनापुर में भाजपा के दिनेश खटीक ने बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के योगेश वर्मा को 20 हजार से अधिक मतों से हराया है. 2012 में यहां से समाजवादी पार्टी (एसपी) के प्रभु दयाल वाल्मीकि ने जीत हासिल की थी और तब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे. वाल्मीकि ने योगेश वर्मा को हराया था, तब योगेश पीस पार्टी के उम्मीदवार थे. योगेश वर्मा ने 2007 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीता था और बसपा सत्ता में आई थी.
मजे की बात यह है कि 1996 में हस्तिनापुर में निर्दलीय प्रत्याशी अतुल कुमार ने जीत हासिल की थी और तब किसी भी दल को राज्य में बहुमत नहीं मिला था और कुछ महीनों तक राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था. यहां से जब-जब कांग्रेस जीती, तब-तब कांग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई. 1989 में जब यहां से कांग्रेस हारी और जनता दल की जीत हुई तो जनता दल ही प्रदेश की सत्ता में आया और मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने. काली नदी के तट पर बसे कासगंज की भी कमोबेश यही कहानी है. 1974 के बाद से यहां हुए 11 विधानसभा चुनाव में यही हुआ है कि जिस भी पार्टी का प्रत्याशी यहां से जीता, वही प्रदेश में सत्तारूढ़ हुई.
इस बार यहां से भाजपा के देवेंद्र सिंह राजपूत जीते हैं और भाजपा भारी जीत के साथ उत्तर प्रदेश की सत्ता में लौट रही है. राजपूत ने सपा के हसरत उल्ला शेरवानी को 15 हजार वोट से हराया है. 2012 में यहां से सपा के मनपाल सिंह जीते थे. भाजपा यहां से आखिरी बार 1991 में जीती थी, जब उसने ऐतिहासिक जीत हासिल करते हुए पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी. कल्याण सिंह तब सीएम बने थे.
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