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This Article is From Feb 28, 2017

UP Election 2017: चुनाव प्रचार के बीच, वाराणसी दे रहा है पीएम नरेंद्र मोदी को ये संदेश...स्पेशल रिपोर्ट

UP Election 2017: चुनाव प्रचार के बीच, वाराणसी दे रहा है पीएम नरेंद्र मोदी को ये संदेश...स्पेशल रिपोर्ट
वाराणसी की सभी सीटें बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा के लड़ाई बनी हुई हैं....
वाराणसी: उत्तर प्रदेश में चुनाव के पांच चरणों का मतदान समाप्त हो गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि मेरा जन्म गुजरात में जरूर हुआ है लेकिन यूपी ने मुझे गोद लिया है. वाराणसी ही उत्तरप्रदेश की वह सीट है जिससे पीएम मोदी सांसद हैं. बीजेपी के लिए वाराणसी की सभी सीटें प्रतिष्ठा के लड़ाई बनी हुई हैं. अगर बीजेपी एक भी सीट हार जाती है तो उसके लिए बड़ा झटका होगा. वाराणसी में 8 मार्च को वोटिंग होनी है.

व्यावसायी एसपी सिंह का कहना है कि बनारस के घाटों की जो तस्वीरे दुनिया को  दिखाई गईं वो फोटोशॉप से बनाई गईं. 2014 के चुनाव में उन्होंने मोदी को वोट दिया था. लोगों ने मोदी लहर पर सवारी की थी लेकिन यहां के लोग उल्टी गंगा भी बहा सकते हैं. इसका मतलब यह है कि बीजेपी अपने गढ़ में मुश्किल चुनौती का सामना कर रही है. वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट और वाराणसी उत्तर को मोदी का गढ़ माना जाता है. इन तीनों सीटों पर बीजेपी सबसे ज्यादा मुश्किल में है. 

बीजेपी के लिए प्रतिष्ठित सीट वाराणसी दक्षिण से सबसे ज्यादा मुश्किल है. इसी सीट के दायरे में काशी विश्वनाथ की गलियां, मंदिर, मस्जिद, गुदौलिया चौक, 41 घाट और बनारसी साड़ी के बुनकर रहते हैं. गुदौलिया में अपनी छोटी सी  दुकान चलाने वाले दुकानदार ने बताया, "अगर देश में मोदी लहर थी, तो यहां 'दादा' लहर होती' 'दादा' बीजेपी के श्यामदेव राय चौधरी हैं जो इस सीट पर पिछले सात बार से जीत रहे थे लेकिन पार्टी ने इस बार उनका टिकट काट दिया है.    

गुदौलिया की तंग गलियों में रहने वाले 'दादा' अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं और हर समय क्षेत्र की जनता की मदद के लिए तैयार रहते हैं. उनके पड़ोसी ने बताया, "दादा पेपर और अपना स्टॉम्प साथ लेकर चलते हैं, यदि किसी को किसी चीज की जरूरत होती है तो तत्काल वहीं लेटर पैड पर लिख देते हैं. वह हर किसी की मदद करते हैं."   

2007 में, नए सिरे से सीमांकन हो जाने के बाद इस सीट में बड़ी संख्या में मुस्लिम वोटर जुड़ गए थे लेकिन दादा की जीत में कोई बाधा नहीं पड़ी.  इस बार टिकट काटे जाने से नाराज दादा बीजेपी प्रत्याशी नीलकंठ तिवारी के लिए जी जान से प्रचार नहीं कर रहे हैं. हालांकि बीजेपी के बड़े नेताओं ने उन्हें काफी मनाने की कोशिश की है लेकिन दादा ने अपना रुख नहीं बदला है. यही बात बीजेपी के लिए सिरदर्द बनी हुई है.

स्थानीय पत्रकार हिमांशु शर्मा का कहना है, "तिवारी का चयन सीधे तौर पर आरएसएस के दखल के बाद किया गया है. यह सर्वविदित तथ्य है कि वाराणसी में टिकट बंटवारे में आरएसएस का बोलबाला रहा है. यही बात अब पार्टी को कमजोर कर रही है."

यही बदलाव कांग्रेस उम्मीदवार राजेश मिश्रा के पक्ष में जा रहा है. यहां तक कि बीजेपी समर्थक भी मान रहे हैं कि मिश्रा कड़ी टक्कर दे रहे है. लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. लोगों का कहना है कि "लोग उन्हें (राजेश मिश्रा को) वोट देंगे लेकिन पार्टी (कांगेस) को नहीं."

पिछले दो दशक से निषाद, मल्लाह, केवट, बिंद, कश्यप जैसी जातियां बीजेपी के परंपरागत वोटर बने हुए हैं. लेकिन अब इस सीट के निषाद जाति के लोग दशश्वमेध घाट में जेट (छज्जा) का निर्माण को लेकर नाराज हैं. इसे बीजेपी का निर्णय बताया जा रहा है. उनका मानना है कि छज्जा बन जाने से उनकी रोजी-रोटी पर संकट आ जाएगा.

मां गंगा निषाद सेवा समिति के एक पदाधिकारी प्रमोद माझी का कहना है, "मोदी जी ने कहा था कि गंगा मैया ने उन्हें बुलाया है. लेकिन वह पुत्र के रूप में गंगा मैया के लिए अच्छे नहीं हैं." उन्होंने तर्क दिया कि प्रस्तावित छज्जे का निर्माण गंगा आरती के लिए कराया जा रहा है जो प्रतिदिन शाम को दशश्वमेघ घाट पर होती है. परंपरागत रूप से कई दर्शक इस आरती को नावों पर सवार होकर देखते हैं. लेकिन सरकार अब हमारी कमाई छीनने जा रही है. राजेश मिश्रा (कांग्रेस प्रत्याशी) ने इस प्रस्तावित छज्जे के निर्माण का विरोध किया है इसलिए निषाद समाज इस बार कांगेस के पक्ष में जा सकता है."

अन्य सीटों की बात करें तो वाराणसी कैंट में भी बीजेपी को पसीने छूट रहे हैं. पार्टी ने वर्तमान विधायक ज्योत्सना श्रीवास्तव के बेटे को यहां से उम्मीदवार बनाया है. रानीपुर मोहल्ले में रहने वाले राम नारायण बिंद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "पहले हम सुन रहे थे कि उनके पति को टिकट मिल रहा है और अब बीजेपी ने उनके बेटे को टिकट दिया है. 1991 से वह सीट पर राज कर रहे हैं और इसे अपनी जमादारी मानने लगे हैं. वाराणसी उत्तर में भी मुकाबला काफी दिलचस्प है. पिछले बार के चुनाव में निवर्तमान विधायक रविंद्र जायसवाल ने बीएसपी के सुजीत कुमार मौर्या को 2336 वोटों के मामूली अंतर से हराया था. इस बार फिर से रविंद्र जायसवाल के सामने मौर्य हैं. लेकिन कांगेस-सपा गठबंधन के उम्मीदवार अब्दुल समद अंसारी जायसवाल को सबसे कड़ी टक्कर दे रहे हैं.
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