देहरादून:
उत्तराखण्ड के चुनाव के नतीजे मंगलवार दोपहर तक स्पष्ट हो जाएंगे लेकिन इससे पहले ही कांग्रेसी खेमे में मुख्यमंत्री पद को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है। दरअसल, इस सरगर्मी की वजह है एक्जिट पोल के नतीजे, जिनमें अधिकांश में कांग्रेस को बढ़त दर्शाई गई है।
अलबत्ता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में सम्भावित मुख्यमंत्री को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है।
उत्तराखण्ड के चुनाव नतीजों के एग्जिट पोल परिणाम कांग्रेस की बढ़त दर्शा रहे हैं। अधिकांश चैनलों के परिणामों में कांग्रेस को जीत के कगार पर दिखाया गया है। जबकि एकाध एग्जिट पोल नतीजे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बढ़त दिखा रहे हैं।
कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष यशपाल आर्य ने एग्जिट पोल के सर्वे से इतर अपनी पार्टी के बेहतर प्रदर्शन का दावा दिया है तो केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के अनुसार मुख्यमंत्री की मसला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही तय करेंगी।
प्रतिकूल परिस्थितियों में चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस को यदि बढ़त मिलती है तो इसके लिए दलित एवं मुस्लिम मतदाताओं के कांग्रेस के पक्ष में होना एक बड़ा कारक माना जाएगा।
राज्य की चुनावी तस्वीर को देखें तो स्पष्ट है कि राज्य में क्षत्रीय मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद ब्राहमण एवं दलितों की तादाद है। पिछड़े और अल्पसंख्यकों का भी प्रतिशत 15 के आसपास है। 20 प्रतिशत दलित एवं 15 प्रतिशत पिछड़े व अल्पसंख्यकों का ही करिश्मा कांग्रेस का सरकार बनाने की ओर ले जाने वाला खेवनहार बनता प्रतीत हो रहा है।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार 45 प्रतिशत क्षत्रीय राज्य की दोनों मुख्य पार्टियों भाजपा व कांग्रेस में समान रूप के मौजूद हैं जबकि ब्राह्मण जिनका प्रतिशत भी 20 के ही लगभग है, की भी यही स्थिति है। मतदान बाद सर्वेक्षणों के आधार पर प्रदेश कांग्रेस द्वारा राज्य के अंदरूनी क्षेत्र की छह हजार किलोमीटर लम्बी सत्याग्रह यात्रा भी कारगर होती दिख रही है।
प्रदेश के पार्टी प्रभारी चौधरी वीरेंद्र सिंह सरकार बनने पर निर्वाचित विधायकों के बीच से ही नेता का चुनाव करने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। इस घोषणा से राजनीतिक प्रेक्षक भी इत्तेफाक रखते हैं।
राजनीतिक प्रेक्षक यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि 2002 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में माहौल था। उस चुनाव में जीत आज के मुकाबले आसान थी। 2012 के चुनाव में जीत का सपना तो कांग्रेस के लिए ही सपना था यदि यह सपना सच होता है तो यह कांग्रेस के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
अलबत्ता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में सम्भावित मुख्यमंत्री को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है।
उत्तराखण्ड के चुनाव नतीजों के एग्जिट पोल परिणाम कांग्रेस की बढ़त दर्शा रहे हैं। अधिकांश चैनलों के परिणामों में कांग्रेस को जीत के कगार पर दिखाया गया है। जबकि एकाध एग्जिट पोल नतीजे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बढ़त दिखा रहे हैं।
कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष यशपाल आर्य ने एग्जिट पोल के सर्वे से इतर अपनी पार्टी के बेहतर प्रदर्शन का दावा दिया है तो केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के अनुसार मुख्यमंत्री की मसला कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही तय करेंगी।
प्रतिकूल परिस्थितियों में चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस को यदि बढ़त मिलती है तो इसके लिए दलित एवं मुस्लिम मतदाताओं के कांग्रेस के पक्ष में होना एक बड़ा कारक माना जाएगा।
राज्य की चुनावी तस्वीर को देखें तो स्पष्ट है कि राज्य में क्षत्रीय मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद ब्राहमण एवं दलितों की तादाद है। पिछड़े और अल्पसंख्यकों का भी प्रतिशत 15 के आसपास है। 20 प्रतिशत दलित एवं 15 प्रतिशत पिछड़े व अल्पसंख्यकों का ही करिश्मा कांग्रेस का सरकार बनाने की ओर ले जाने वाला खेवनहार बनता प्रतीत हो रहा है।
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार 45 प्रतिशत क्षत्रीय राज्य की दोनों मुख्य पार्टियों भाजपा व कांग्रेस में समान रूप के मौजूद हैं जबकि ब्राह्मण जिनका प्रतिशत भी 20 के ही लगभग है, की भी यही स्थिति है। मतदान बाद सर्वेक्षणों के आधार पर प्रदेश कांग्रेस द्वारा राज्य के अंदरूनी क्षेत्र की छह हजार किलोमीटर लम्बी सत्याग्रह यात्रा भी कारगर होती दिख रही है।
प्रदेश के पार्टी प्रभारी चौधरी वीरेंद्र सिंह सरकार बनने पर निर्वाचित विधायकों के बीच से ही नेता का चुनाव करने की घोषणा पहले ही कर चुके हैं। इस घोषणा से राजनीतिक प्रेक्षक भी इत्तेफाक रखते हैं।
राजनीतिक प्रेक्षक यह भी स्पष्ट कर रहे हैं कि 2002 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के पक्ष में माहौल था। उस चुनाव में जीत आज के मुकाबले आसान थी। 2012 के चुनाव में जीत का सपना तो कांग्रेस के लिए ही सपना था यदि यह सपना सच होता है तो यह कांग्रेस के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।
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