नई दिल्ली:
संसद पर हमले के मास्टरमाइंड अफजल गुरु को फांसी दिए जाने की जानकारी उसके परिवार वालों को स्पीडपोस्ट के जरिये दिए जाने पर विवाद चल रहा है। इस बीच एनडीटीवी इंडिया ने स्पीडपोस्ट की वेबसाइट पर जाकर पड़ताल की तो पता चला कि यह स्पीडपोस्ट 7 और 8 फरवरी की मध्यरात्रि 12 बजकर 7 मिनट पर जीपीओ, नई दिल्ली में बुक कराया गया था। 8 फरवरी की सुबह 3 बजकर 19 मिनट पर इसे श्रीनगर के थैले में डाल दिया गया और 5 बजकर 51 मिनट पर इसे पालम के लिए भेज दिया गया।
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इस ब्योरे में ध्यान देने वाली बात यह है कि जब 8 फरवरी की सुबह साढ़े दस बजे ही इस स्पीडपोस्ट को श्रीनगर के लिए डिस्पैच कर दिया गया था, तो फिर यह उसी दिन श्रीनगर क्यों नहीं पहुंचा...? इतना ही नहीं, 9 फरवरी को यह स्पीडपोस्ट कहां-किस हाल में था, इसका कोई ब्योरा नहीं है। मतलब 8 तारीख की सुबह से 10 तारीख की दोपहर तक स्पीडपोस्ट कहीं दबा पड़ा था। 10 तारीख को रविवार होने के बावजूद जब इस स्पीडपोस्ट को उसके गंतव्य की तरफ आगे बढ़ाया गया था, तो यह काम 8 और 9 तारीख को भी किया जा सकता था।
9 तारीख को अफजल गुरु को फांसी दे देने के बाद से श्रीनगर में कर्फ्यू लगा दिया गया था, और अगर इस वजह से 9 तारीख को चिठ्ठी आगे नहीं बढ़ी तो फिर कर्फ्यू तो 10 तारीख को भी जारी रहा था। दिल्ली से चिठ्ठी चलने और श्रीनगर में रिसीव होने में 48 घंटे से ज़्यादा का अंतर है। इतना ही नहीं, जेल प्रशासन के जिस लेटरहेड पर इस चिट्ठी को लिखा गया है, उस पर 6 फरवरी की तारीख लिखी गई है। अफजल को फांसी दिए जाने या न दिए जाने के विवाद से दूर स्पीडपोस्ट के इस मामले का संबंध परिवार वालों को समय पर सूचना नहीं मिलने से है। साथ ही इस तरफ ध्यान दिलाए जाने से भी कि आखिर 48 घंटे तक स्पीडपोस्ट कहां दबा रहा...?
इधर, सूत्रों के अनुसार, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से अफजल गुरु की फांसी से संबंधित चिट्ठी के देर से पहुंचने का कारण पूछा है।
यह बैग 7 बजकर 39 मिनट पर पालम पहुंचा, जहां से 10 बजकर 29 मिनट पर इसे श्रीनगर के लिए डिस्पैच कर दिया गया। भारतीय डाक की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह बैग 10 फरवरी को दोपहर 1 बजकर 3 मिनट पर श्रीनगर में रिसीव किया गया और फिर इसे 4 बज कर 52 मिनट पर सोपोर के लिए रवाना किया गया। अंतत: यह स्पीडपोस्ट 11 फरवरी की सुबह 11 बजकर 2 मिनट पर अफजल के परिवार को मिला।-----------------------------------------------------------------------------
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इस ब्योरे में ध्यान देने वाली बात यह है कि जब 8 फरवरी की सुबह साढ़े दस बजे ही इस स्पीडपोस्ट को श्रीनगर के लिए डिस्पैच कर दिया गया था, तो फिर यह उसी दिन श्रीनगर क्यों नहीं पहुंचा...? इतना ही नहीं, 9 फरवरी को यह स्पीडपोस्ट कहां-किस हाल में था, इसका कोई ब्योरा नहीं है। मतलब 8 तारीख की सुबह से 10 तारीख की दोपहर तक स्पीडपोस्ट कहीं दबा पड़ा था। 10 तारीख को रविवार होने के बावजूद जब इस स्पीडपोस्ट को उसके गंतव्य की तरफ आगे बढ़ाया गया था, तो यह काम 8 और 9 तारीख को भी किया जा सकता था।
9 तारीख को अफजल गुरु को फांसी दे देने के बाद से श्रीनगर में कर्फ्यू लगा दिया गया था, और अगर इस वजह से 9 तारीख को चिठ्ठी आगे नहीं बढ़ी तो फिर कर्फ्यू तो 10 तारीख को भी जारी रहा था। दिल्ली से चिठ्ठी चलने और श्रीनगर में रिसीव होने में 48 घंटे से ज़्यादा का अंतर है। इतना ही नहीं, जेल प्रशासन के जिस लेटरहेड पर इस चिट्ठी को लिखा गया है, उस पर 6 फरवरी की तारीख लिखी गई है। अफजल को फांसी दिए जाने या न दिए जाने के विवाद से दूर स्पीडपोस्ट के इस मामले का संबंध परिवार वालों को समय पर सूचना नहीं मिलने से है। साथ ही इस तरफ ध्यान दिलाए जाने से भी कि आखिर 48 घंटे तक स्पीडपोस्ट कहां दबा रहा...?
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