रेलवे के विशाल नेटवर्क को चुस्त-दुरुस्त करने के लिए रेल मंत्री सुरेश प्रभु को 'प्रभु' तक से मदद मांगनी पड़ी, लेकिन अंतत: उन्होंने खुद ही यह बीड़ा उठाने का फैसला किया।
लोकसभा में अपना पहला रेल बजट पेश करते हुए सुरेश प्रभु ने रेलवे को सुदृढ़ बनाए जाने की योजनाओं पर कहा, आमान परिवर्तन, दोहरीकरण, तिहरीकरण और विद्युतिकरण पर जोर दिया जाएगा। औसत गति बढ़ेगी। गाड़ियों के समय पालन में सुधार होगा। मालगाड़ियों को समय सारिणी के अनुसार चलाया जा सकेगा।
प्रभु ने कहा, पर मेरे मन में सवाल उठता है...हे प्रभु, ये कैसे होगा? प्रभु द्वारा प्रभु का इस प्रकार संदर्भ दिए जाने से सदन में मौजूद सदस्य उनकी वाक्पटुता से अभिभूत हुए बिना नहीं रह सके।
रेल मंत्री ने कहा, प्रभु ने तो जवाब नहीं दिया, तब इस प्रभु ने सोचा कि गांधीजी जिस साल भारत आए थे, उनके शताब्दी वर्ष में भारतीय रेलवे को एक भेंट मिलनी चाहिए कि परिस्थिति बदल सकती है... रास्ते खोजे जा सकते हैं, इतना बड़ा देश, इतना बड़ा नेटवर्क, इतरे सारे संसाधन, इतना विशाल मैनपावर, इतनी मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति... तो फिर क्यों नहीं हो सकता रेलवे का पुनर्जन्म।
सदन में मौजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेल मंत्री के भाषण को पूरे गौर से सुना और वह भाषण सुनने के साथ-साथ लगातार लिखित भाषण के पन्ने भी पलटते देखे गए।
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