फिल्म 'हाईवे' में शादी से एक दिन पहले दुल्हन को किडनैपर अगवा कर लेते हैं. कहानी के मुताबिक वीरा नाम की लड़की अपने मंगेतर के साथ उसकी गाड़ी में ड्राइव पर जाती है तभी हाईवे से लगे पेट्रोल पंप पर बदमाशों का गैंग उसे किडनैप कर लेता है. जब गैंग को पता चलता है कि वीरा के पिता के पॉलिटिकल कनेक्शन हैं तो वह उसे वापस भेजने के बारे में सोचते हैं. लेकिन किडनैपर महाबीर भाटी ऐसा करने को तैयार नहीं. वह वीरा को लेकर एक शहर से दूसरे शहर घूमता है. शुरू में तो वीरा भागने की कोशिश करती है लेकिन फिर उसे महाबीर का साथ और नई-नई मिली आजादी अच्छी लगने लगती है. वीरा को ये साथ इतना अच्छा लगता है कि वह बचपन में हुए यौन शोषण का राज़ उसके सामने खोल देती है. धीरे-धीरे महाबीर भी वीरा की केयर करने लगता है और फिर दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है. यह तो हुई फिल्मी कहानी, लेकिन असल जिंदगी में भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं जब किसी को अपने ही किडनैपर से प्यार या सहानुभूति हो गई है.
क्या है स्टॉकहोम सिंड्रोम?
तो क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? आखिर किसी को किडनैपर से कैसे प्यार हो सकता है? मनोविज्ञान में इसे स्टॉकहोम सिंड्रोम (Stockholm Syndrome) कहा जाता है. यह ऐसी स्थिति है जब किडनैप होने वाले को किडनैपर से प्यार हो जाता है. 23 अगस्त 1973 को एक ऐसी घटना हुई जिसके बाद इंसानी दिमाग की इस सिचुएशन को स्टॉकहोम सिंड्रोम नाम दिया गया.
स्टॉकहोम सिंड्रोम नाम कैसे आया?
दरअसल, 23 अगस्त 1973 को स्वीडन के एक बैंक में दो लोग मशीन गन लेकर घुस गए. उन दो लोगों ने बैंक के 6 कर्मचारियों को बंधक बनाकर तिजोरी में बंद कर दिया. बैंक कर्मचारियों के बदले वह अपने एक दोस्त की रिहाई चाहते थे. इस दौरान पुलिस से किडनैपर्स की बातचीत जारी थी. मामला 23 अगस्त से 28 अगस्त तक खिंचा. सभी लोग सोच रहे थे कि बंधकों की क्या हालत होगी, लेकिन आखिरकर जब वह बाहर आए तो जैसा सोचा गया वैसा कुछ नहीं हुआ. बंधकों ने अपने किडनैपर्स के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा. उनके मन में बदमाशों के लिए कोई गुस्सा नहीं था. कुल मिलाकर उन सभी 6 लोगों को किडनैपर्स से भरपूर सहानुभूति हो गई थी. यही नहीं बाद में उन लोगों ने किडनैपर्स का केस लड़ने के लिए पैसा भी जमा किया और उनसे मिलने जेल भी जाते रहे.
इस घटना के बाद किडनैप होने वाले और किडनैपर के रिश्तों को अलग तरीके से भी देखा जाने लगा. कहते हैं कि क्रिमनोलॉजिस्ट और मनोविज्ञानी निल्स बेजरॉट ने सबसे पहले स्टॉकहोम सिंड्रोम शब्द खोजा. मनोविज्ञानी डॉ फ्रैंक ऑचबर्ग ने एफबीआई और स्कॉटलैंड यार्ड के लिए इसे परिभाषित करने काम किया.यह शब्द ऐसे जटिल रिश्ते को परिभाषित करता है जिसके बारे में शायद कोई सोच भी नहीं सकता.
स्टॉकहोम सिंड्रोम के पहलू
इस सिंड्रोम के तीन पहलू या आयाम है. एक स्थिति में किडनैप होने वाले को किडनैपर से लगाव हो जाता है. दूसरी स्थिति में इसके उलट किडनैपर को लगाव हो जाता है. तीसरी स्थिति में दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है. स्टॉकहोम सिंड्रोम के इन तीनों पहलुओं पर बॉलीवुड फिल्में बन चुकी हैं.
स्टॉकहोम सिंड्रोम पर बनीं बॉलीवुड फिल्में
स्टॉकहोम सिंड्रोम पर बॉलीवुड में 'हाईवे' के अलावा भी कई फिल्में बन चुकी हैं. इसी तरह की एक फिल्म है 'मदारी' जिसमें इरफान खान के किरदार को उसी बच्चे से लगाव हो जाता है जिसे वह अगुवा करता है. स्टॉकहोम सिंड्रोप पर बनी एक और फिल्म 'किडनैप' आई थी. इस फिल्म में कबीर सिंह एक लड़की सोनिया रैना को किडनैप कर लेता है. इस दौरान सोनिया को कबीर से हमदर्दी हो जाती है और फिल्म के अंत में दोनों एक दूसरे को बेस्ट ऑफ लक कहकर विदा ले लेते हैं. फिल्म में इमरान खान कबीर सिंह की भूमिका में हैं जबकि मिनिषा लांबा ने सोनिया का किरदार निभाया है.
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