Jallianwala Bagh: 13 अप्रैल 1919, दिन था बैसाखी (Baisakhi) का. हज़ारों की संख्या में लोग अमृतसर के गोल्डन टेम्पल (Golden Temple) से डेढ़ किलोमीटर दूर बने जलियांवाला बाग (Jalian Wala Bhag) में मेले में आए थे. इस मेले में हर उम्र के जवान और बुजुर्ग आदमियों के साथ-साथ महिलाएं और बच्चे भी शामिल हुए थे. लेकिन इनमें से किसी को भी ये मालूम नहीं था, कि चंद मिनटों में मेले की ये रौनक मातम में बदल जाएगी. हंसते-खेलते बच्चों की आवाज़ें नहीं चारों ओर सिर्फ चीखें सुनाई देंगी और मेले में मौजूद सभी लोगों का नाम इतिहास के सबसे भयावह हादसे में शामिल हो जाएगा. इस हादसे के बाद पंजाब का ही एक क्रांतिकारी उधम सिंह (Udham Singh) के किस्से हर तरफ होंगे.
यहां पढ़ें जलियांवाला बाग की पूरी कहानी...
पंजाब के सुनाम में जन्मे उधम सिंह को गवर्नव जनरल माइकल डायर (Michael O'Dwyer) की हत्या की वजह से जाने जाते हैं. उधम सिंह ने ही 13 मार्च, 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया था.
जब अनाथायल पहुंचे उधम सिंह...
जलियांवाला बाग हत्याकांड में 1000 लोगों (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक) को गोलियों से भून दिया गया था, जिससे पूरे भारत में आक्रोश का माहौल था. इनमें से एक थे उधम सिंह, जिन्हें बचपन में शेर सिंह का नाम शेर सिंह था. बचपन में ही अपने माता-पिता को खो चुके उधम सिंह ने इस हत्याकांड से बेघर हो गए. जिस वजह से उन्हें अपने एकलौते भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी.
जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ लेकर खाई थी कसम...
कुछ सालों बाद उधम सिंह के भाई का भी देहांत हो गया. बाद में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए. अनाथ होने के बाद और इस हत्याकांड में लोगों कि लाशों को देख उधम सिंह जलियांवाला बाग की मिट्टी हाथ लेकर कसम खाई थी, कि हत्याकांड के जिम्मेदार जनरल डायर को वो मौत के घाट उतारेंगे.
किताब में छिपाकर मारी थी गोली...
सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे. उन्होंने वहां यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली. 6 साल बाद 1940 में सैकड़ों भारतीयों का बदला लेने का मौका मिला.
जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में एक बैठक थी, जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था. उधम सिंह उस बैठक में एक मोटी किताब में रिवॉल्वर छिपाकर पहुंचे. इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके.
उधम सिंह ने बैठक के बाद दीवार के पीछे से माइकल डायर पर गोलियां दाग दीं. दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं, जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई. उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी. उन पर मुकदमा चला. 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई.
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