9 उंगलियां गंवा चुका है यह पर्वतारोही, अबकी बार क्या होगा?

9 उंगलियां गंवा चुका है यह पर्वतारोही, अबकी बार क्या होगा?

अबकी बार जापान के नोबोकाजू कुरीकी ही इकलौते पर्वतारोही जो चोटी पर चढ़ाई करेंगे

नेपाल के सबसे अनुभवी 'आइस डॉक्टर' अंग कामी शेरपा माउंट एवरेस्ट के जोखिमों से भरे हुए खुम्बू आइसफॉल को पर्वतारोहियों के लिए 'तैयार' कर रहे हैं। लेकिन, इस बार वह बेहद डरे हैं। यहां काम शुरू किया जा चुका है हालांकि इन हालातों में पर्वतारोहण को लेकर कई पर्वतारोही कम्युनिटीज सवालिया निशान खड़ा कर रही हैं।

शेरपा उन आइस डॉक्टर्स में से हैं जो 8,848-मीटर (29,029-फुट) पर्वत पर अगस्त के महीने में इसलिए आए हैं ताकि पर्वतारोहियों के लिए रूट तैयार कर सकें। नेपाल में आए भूकंप से बेस कैंप में भयानक हिमस्खलन से तबाही मच गई थी।

खूम्बू ग्लेशियर के टॉप पर स्थित है खूम्बू आइसफॉल। आइसफॉल एक प्रकार का झरना ही होता है लेकिन जैसा कि नाम से जाहिर है, यह बर्फ का होता है।

रास्ता बनाना हमेशा से जोखिम भरा लेकिन इस बार...

सीढ़ियों और रस्सियों के सहारे इस जोखिम भरे इलाके में चोटी पर पहुंचने वाले शेरपा सीजन के पहले व्यक्ति होते हैं। वह इसे एक रास्ते में तब्दील कर देते हैं कि पर्वतारोहियों के लिए आना जाना हो सके। वे बर्फ में आई चौड़ी दरारों में घुसते हैं, लगातार बर्फ को यहां से वहां शिफ्ट करते चलते हैं।

इस साल खतरा काफी ज्यादा है क्योंकि नेपाल अब भी भूचाल के बाद के ऑफ्टरशॉक भुगत रहा है। ऐसे में हिमस्खलन का खतरा अब भी थमा नहीं है और ज्यादा बढ़ गया है। कई सालों बाद हुए खतरनाक हिमस्खलनों में से एक रहा 25 अप्रैल का हिमस्खलन।  2014 में 16 नेपाली गाइड हिमस्खलन के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं, इसके बाद 25 अप्रैल को हुआ हिमस्खलन है।

इस फील्ड के दिग्गज शेरपा के डर की वजह यह भी है कि..

63 साल की उम्र के शेरपा एवरेस्ट से संभवत: सर्वाधिक वाकिफ आइस डॉक्टर हैं। 1975 में माउंटेनियरिंग करियर शुरू करने वाले शेरपा ने तब जापान के जंको ताबे को असिस्ट किया था। इस बार 'बर्फ के डॉक्टर' शेरपा कहते हैं कि वह डरे हुए हैं। अप्रैल में आए तगड़े भूचाल, जिसमें 9 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, के बाद से यहां हालात अभी उतने मुफीद नहीं लगते।

इस बार इकलौते पर्वतारोही नोबोकाजू कुरीकी...

इस साल जापान के नोबोकाजू कुरीकी ही इकलौते पर्वतारोही हैं जो इस बार यह चढ़ाई चढ़ने की योजना बना रहे हैं। हालांकि कैंप 2 तक 6,400 मीटर की ऊंचाई तक उनके साथ 6 लोगों की टीम होगी। यहां तक पहुंचने में बेस कैंप के बाद 2 दिन का समय ट्रैकिंग में लगता है।

भूचाल के बाद बदल गया है सबकुछ..

एवरेस्ट बेस कैंप से शेरपा कहते हैं- इस बार हमारा काम ज्यादा मुश्किल है। भूचाल के बाद यह पर्वतीय हिस्सा बदल गया है। वैसे तो हमेशा ही यह जोखिम भरा होता है लेकिन इस बार डर ज्यादा है।

2012 में कुरीकी खो चुके हैं 9 उंगलियां...

सितंबर के मध्य में कुरीकी यह यात्रा शुरू कर सकते हैं। वह पतझड़ के मौसमें इस यात्रा को लेकर काफी उत्साहित हैं और पूरी तरह से मन बना चुके हैं। इससे पहले 2012 में उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई की कोशिश की थी तब भी मौसम पतझड़ ही था। लेकिन तब कैंप 2 से उन्हें किसी तरह बचाया गया। भयानक सर्दी के चलते वह तब फ्रॉस्टबाइट के शिकार हो गए थे और अपनी 9 उंगलियां उन्हें खोने पड़ी थीं।

शेरपा कहते हैं- मैं आशा करता हूं कि कुछ बुरा न घटे।

'रूट तो तैयार करना ही होगा.. '

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सागरमथा पलूशन कंट्रोल कमिटी (SPCC) के प्रेजिडेंट अंग डोरजी शेरपा कहते हैं कि यह हमारा काम है कि चाहे कितने ही कम क्लाइम्बर्स क्यों न हों, हमें उनके लिए रूट सेट-अप करना ही होगा। एक आउस डॉक्टर करीब एक सीजन में $3,500 कमा लेता है। कभी कभी पर्वतारोही उसे टिप भी देते हैं., जो इस कमाई से इतर होता है।