आज रख्माबाई राऊत का 153वां जन्मदिवस है.
नई दिल्ली:
अगर आज आप गूगल देखेंगे तो आपको साड़ी में एक महिला की तस्वीर नजर आएगी जो अपने गले में एक स्टेथोस्कोप भी डाले हुए है. तस्वीर में महिला के पीछे आप एक अस्पताल में कुछ नर्सों को रोगियों की देखभाल करते भी देखेंगे. यह महिला कोई और नही यह हैं डा. रख्माबाई राऊत. आज रख्माबाई राऊत का 153वां जन्मदिवस है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है. रख्माबाई राऊत औपनिवेशिक भारत में प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला डॉक्टर थीं.
रख्माबाई राऊत का जन्म मुंबई में 22 नवंबर, 1864 को हुआ था. उनकी शादी महज 11 वर्ष की उम्र में 19 साल के 'दादाजी भिकाजी' से हो गई थी. उस समय बाल विवाह आम बात थी.
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रख्माबाई राऊत की मां ने भी बाल विवाह को झेला था. जब वह 14 साल की थीं, तब उनकी शादी कर दी गई थी. 15 साल की उम्र में उन्होंने रख्माबाई को जन्म दिया और सिर्फ 17 साल की उम्र में वह विधवा हो गईं. रख्माबाई अपने विवाह के बाद पति के साथ नहीं रहती थीं. उन्होंंने अपने माता-पिता के घर में ही रह कर पढ़ाई जारी रखी. फिर जल्द ही उन्होंने फैसला लिया कि वो शादी के बंधन में नहीं रहना चाहती हैं.
इसी के चलते मार्च 1884 में दादाजी भिकाजी ने अपनी पत्नी पर पति के वैवाहिक अधिकारों को पुनर्स्थापित करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की कि रख्माबाई आकर उनके साथ रहें. अदालत ने रख्माबाई को अधिकारों का पालन करने अन्यथा जेल जाने के लिए कहा. रख्माबाई ने स्वाभाविक रूप से इनकार कर दिया. उन्होंने तर्क दिया कि वह यह शादी नहीं मानती, क्योकि वह उस उम्र में अपनी सहमति नहीं दे पाईं थीं. इस तर्क को किसी भी अदालत में इससे पहले कभी नहीं सुना गया था. रख्माबाई ने अपने तर्कों से 1880 के दशक में प्रेस के माध्यम से लोगों को इस पर ध्यान देने पर विवश कर दिया. इस प्रकार रमाबाई रानडे और बेहरामजी मालाबारी सहित कई समाज सुधारकों की जानकारी में यह मामला आया.
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आखिरकार, दादाजी ने शादी को भंग करने के लिए एक मुद्रा के रूप में मौद्रिक मुआवजा स्वीकार किया. इस समझौते के कारण रख्माबाई को जेल जाने से बचा लिया गया. इस मामले के बाद रख्माबाई ने डॉक्टर के रूप में प्रशिक्षिण लिया, जिसके परिणामस्वरूप रख्माबाई ने डॉक्टरी जगत में अपना सफल 35 वर्षीय योगदान दिया. वह अपनी डॉक्टरी में सफल होने के बाद रुकीं नहीं इसके बाद वह बाल विवाह के खिलाफ लिख कर समाज सुधारक का कार्य भी करती रहीं. रख्माबाई एक सक्रिय सामाज सुधारक थीं. उनकी मृत्यु 91 वर्ष की आयु में 25 सितंबर, 1955 को हुई थी.
रख्माबाई राऊत का जन्म मुंबई में 22 नवंबर, 1864 को हुआ था. उनकी शादी महज 11 वर्ष की उम्र में 19 साल के 'दादाजी भिकाजी' से हो गई थी. उस समय बाल विवाह आम बात थी.
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रख्माबाई राऊत की मां ने भी बाल विवाह को झेला था. जब वह 14 साल की थीं, तब उनकी शादी कर दी गई थी. 15 साल की उम्र में उन्होंने रख्माबाई को जन्म दिया और सिर्फ 17 साल की उम्र में वह विधवा हो गईं. रख्माबाई अपने विवाह के बाद पति के साथ नहीं रहती थीं. उन्होंंने अपने माता-पिता के घर में ही रह कर पढ़ाई जारी रखी. फिर जल्द ही उन्होंने फैसला लिया कि वो शादी के बंधन में नहीं रहना चाहती हैं.
इसी के चलते मार्च 1884 में दादाजी भिकाजी ने अपनी पत्नी पर पति के वैवाहिक अधिकारों को पुनर्स्थापित करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की कि रख्माबाई आकर उनके साथ रहें. अदालत ने रख्माबाई को अधिकारों का पालन करने अन्यथा जेल जाने के लिए कहा. रख्माबाई ने स्वाभाविक रूप से इनकार कर दिया. उन्होंने तर्क दिया कि वह यह शादी नहीं मानती, क्योकि वह उस उम्र में अपनी सहमति नहीं दे पाईं थीं. इस तर्क को किसी भी अदालत में इससे पहले कभी नहीं सुना गया था. रख्माबाई ने अपने तर्कों से 1880 के दशक में प्रेस के माध्यम से लोगों को इस पर ध्यान देने पर विवश कर दिया. इस प्रकार रमाबाई रानडे और बेहरामजी मालाबारी सहित कई समाज सुधारकों की जानकारी में यह मामला आया.
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आखिरकार, दादाजी ने शादी को भंग करने के लिए एक मुद्रा के रूप में मौद्रिक मुआवजा स्वीकार किया. इस समझौते के कारण रख्माबाई को जेल जाने से बचा लिया गया. इस मामले के बाद रख्माबाई ने डॉक्टर के रूप में प्रशिक्षिण लिया, जिसके परिणामस्वरूप रख्माबाई ने डॉक्टरी जगत में अपना सफल 35 वर्षीय योगदान दिया. वह अपनी डॉक्टरी में सफल होने के बाद रुकीं नहीं इसके बाद वह बाल विवाह के खिलाफ लिख कर समाज सुधारक का कार्य भी करती रहीं. रख्माबाई एक सक्रिय सामाज सुधारक थीं. उनकी मृत्यु 91 वर्ष की आयु में 25 सितंबर, 1955 को हुई थी.
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