
पुणे:
क्या आप मुझे ठीक नहीं कर सकते हैं? 76 साल के बापू सुतार ने जब पिछले महीने पुणे के एक अस्पताल में डॉक्टरों से ये पूछा, तब उन डॉक्टरों के पास बेमन से ही इनकी बात मानने के अलावा कोई और चारा नहीं था।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार बापू सुतार के पास भी दूसरा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उनके तीनों बेटे आखों से देख पाने में असमर्थ हैं और उनमें से एक मानसिक तौर पर भी अक्षम।
जीवन एक संघर्ष
बापू और उनकी पत्नी तारा पुणे से 375 किमी दूर महाराष्ट्र के शीरपुर में सालों से अकेले अपने बच्चों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनके तीन-तीन शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के जन्म के बाद उनके नाते-रिश्तेदारों ने भी उनसे संबंध तोड़ लिया था।
और आज जब पूरी दुनिया फादर्स-डे मना रही है तब सुतार दंपत्ति के पास अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने की बहुत सारी वजहें मौजूद हैं।
बापू और तारा के बड़े बेटे 50 वर्षीय राजेंद्र नॉर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी से एमए और बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद शीरपुर के सेन गुरुजी स्कूल में इतिहास पढ़ा रहे हैं और सबसे छोटे 37 साल के गोपाल भी ग्रैजुएशन और एजुकेशन में डिप्लोमा हासिल करने के बाद मालेगांव के नेत्रहीन स्कूल में शिक्षक हैं। जबकि इनके दूसरे बेटे सोमनाम नेत्रहीन होने के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी कमज़ोर हैं और घर पर ही रहते हैं। जबकि इनकी बेटी लता शादीशुदा हैं और पुणे में रहती हैं।
बेटों को दिलाई शिक्षा
राजेंद्र और गोपाल ने अपने शिक्षा की शुरुआत नेत्रहीन बच्चों के स्कूल से की थी लेकिन बाद में अच्छे मार्क्स आने के बाद वे रेगुलर स्कूलों में शिफ्ट हो गए।
67 वर्षीय तारा कहती हैं कि, ‘मुझे नहीं पता कि हमारे बच्चे नेत्रहीन क्यों पैदा हुए, हम कई डॉक्टरों के पास गए लेकिन असफल रहे, इसके बाद भी हम दृढ़ थे कि हमारे बच्चे पढ़ेंगे’।
और इसके साथ ही इस दंपत्ति के संघर्ष की शुरुआत हो गई, आज भी बापू सुबह 7 बजे अपने स्कूटर से गोपाल को बस स्टॉप छोड़ते हैं जहां से वो आगे तीन घंटे यात्रा कर मालेगांव स्थित अपने स्कूल जाते हैं जहाँ वो शिक्षक हैं।
सुबह 11 बजे बापू बड़े बेटे राजेंद्र को बस स्टॉप छोड़ते हैं जहाँ से 12 किमी की यात्रा कर शीरपुर के किसान विद्या प्रसारक संस्थान जाते हैं और इतिहास पढ़ाते हैं।
वापिस लौटने पर दोनों भाई बारी-बारी से अपने पिता को कॉल करते हैं ताकि वे बस स्टॉप आकर उन्हें वापिस स्कूटर पर घर ले जाऐं।
पटरी पर लौटी जिंदगी
इस दौरान बापू की धर्मपत्नी तारा के दिन की शुरुआत परिवार के लिए खाना बनाने और मंझले बेटे सोमनाथ के दैनिक दिनचर्या में उनकी मदद करने से होती है।
लेकिन, जब लगा कि ज़िंदगी पटरी पर लौट रही थी, तभी बाबू सुतार की कमर ने उनका साथ छोड़ दिया....जब ज्य़ादातर डॉक्टरों ने उनकी बढ़ती उम्र के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन करने से इंकार कर दिया, तब बापू पुणे के संचेती अस्पताल के चीफ़ स्पाईन सर्जन डॉ. केतन खुरजेकर के पास पहुंचे।
बापू सुतार के बार-बार आग्रह पर डॉ केतन ने कहा, ‘मैंने उन्हें पीठ और कमर की दर्द के लिए दवाइयां और रेस्ट लेने की सलाह दी है। उनकी स्पाईन कैनाल इतनी सिकुड़ गई है कि स्पाईनल कॉर्ड और नसें ठीक तरह से साँस नहीं ले पा रही हैं। उसमें इलेक्ट्रिक सिग्नल का नॉर्मल फ्लो पूरी तरह से बंद है। हालांकि ये कोई असाधारण समस्या नहीं है लेकिन उनकी उम्र के कारण हमने उन्हें उनकी दिनचर्या, दवाइयों और कसरत में बदलाव की सलाह दी है।’
बापू को डॉक्टरों का साथ लेकिन बापू सुतार की कहानी सुनने के बाद डॉ खुरजेकर की टीम ने उनकी मदद करने की पूरी कोशिश की और उनका माईक्रोस्कोप असिस्टेड सर्जरी करने का फैसला किया और तीन दिनों के बाद बापू सुतार अपने पांव पर चलने लगे। डॉक्टर खुरजेकर ने सुतार को फिलहाल खुद पर ज्य़ादा भार देने से मना किया है।
पुणे में बापू की बेटी लता और उनके पति प्रकाश ने बापू का इलाज करवाया और उनकी देखभाल की। लता के बेटे प्रफुल्ल के अनुसार, ‘हमने हमारे तीनों मामा से भी पुणे शिफ्ट होने को कहा है लेकिन वे कहते हैं कि उनकी रोजी-रोटी शीरपुर में ही है।’
राजेंद्र चाहते हैं कि वे भी सामान्य लोगों की तरह एक सुखी जीवन जीएं और घर बसाएं, वे कहते हैं कि क्या हमें ज़रा भी खुश होने का अधिकार नहीं है ?
क्या कोई भी लड़की हमसे शादी करने को तैयार नहीं है, अगर वो शारीरिक तौर पूरी तरह स्वस्थ न हो या आंशिक तौर पर नेत्रहीन भी हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, ये कहना है बापू सुतार और तारा के सबसे छोटे बेटे गोपाल का।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार बापू सुतार के पास भी दूसरा कोई विकल्प नहीं था क्योंकि उनके तीनों बेटे आखों से देख पाने में असमर्थ हैं और उनमें से एक मानसिक तौर पर भी अक्षम।
जीवन एक संघर्ष
बापू और उनकी पत्नी तारा पुणे से 375 किमी दूर महाराष्ट्र के शीरपुर में सालों से अकेले अपने बच्चों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि उनके तीन-तीन शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के जन्म के बाद उनके नाते-रिश्तेदारों ने भी उनसे संबंध तोड़ लिया था।
और आज जब पूरी दुनिया फादर्स-डे मना रही है तब सुतार दंपत्ति के पास अपनी उपलब्धियों पर गर्व करने की बहुत सारी वजहें मौजूद हैं।
बापू और तारा के बड़े बेटे 50 वर्षीय राजेंद्र नॉर्थ महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी से एमए और बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद शीरपुर के सेन गुरुजी स्कूल में इतिहास पढ़ा रहे हैं और सबसे छोटे 37 साल के गोपाल भी ग्रैजुएशन और एजुकेशन में डिप्लोमा हासिल करने के बाद मालेगांव के नेत्रहीन स्कूल में शिक्षक हैं। जबकि इनके दूसरे बेटे सोमनाम नेत्रहीन होने के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी कमज़ोर हैं और घर पर ही रहते हैं। जबकि इनकी बेटी लता शादीशुदा हैं और पुणे में रहती हैं।
बेटों को दिलाई शिक्षा
राजेंद्र और गोपाल ने अपने शिक्षा की शुरुआत नेत्रहीन बच्चों के स्कूल से की थी लेकिन बाद में अच्छे मार्क्स आने के बाद वे रेगुलर स्कूलों में शिफ्ट हो गए।
67 वर्षीय तारा कहती हैं कि, ‘मुझे नहीं पता कि हमारे बच्चे नेत्रहीन क्यों पैदा हुए, हम कई डॉक्टरों के पास गए लेकिन असफल रहे, इसके बाद भी हम दृढ़ थे कि हमारे बच्चे पढ़ेंगे’।
और इसके साथ ही इस दंपत्ति के संघर्ष की शुरुआत हो गई, आज भी बापू सुबह 7 बजे अपने स्कूटर से गोपाल को बस स्टॉप छोड़ते हैं जहां से वो आगे तीन घंटे यात्रा कर मालेगांव स्थित अपने स्कूल जाते हैं जहाँ वो शिक्षक हैं।
सुबह 11 बजे बापू बड़े बेटे राजेंद्र को बस स्टॉप छोड़ते हैं जहाँ से 12 किमी की यात्रा कर शीरपुर के किसान विद्या प्रसारक संस्थान जाते हैं और इतिहास पढ़ाते हैं।
वापिस लौटने पर दोनों भाई बारी-बारी से अपने पिता को कॉल करते हैं ताकि वे बस स्टॉप आकर उन्हें वापिस स्कूटर पर घर ले जाऐं।
पटरी पर लौटी जिंदगी
इस दौरान बापू की धर्मपत्नी तारा के दिन की शुरुआत परिवार के लिए खाना बनाने और मंझले बेटे सोमनाथ के दैनिक दिनचर्या में उनकी मदद करने से होती है।
लेकिन, जब लगा कि ज़िंदगी पटरी पर लौट रही थी, तभी बाबू सुतार की कमर ने उनका साथ छोड़ दिया....जब ज्य़ादातर डॉक्टरों ने उनकी बढ़ती उम्र के कारण उनकी रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन करने से इंकार कर दिया, तब बापू पुणे के संचेती अस्पताल के चीफ़ स्पाईन सर्जन डॉ. केतन खुरजेकर के पास पहुंचे।
बापू सुतार के बार-बार आग्रह पर डॉ केतन ने कहा, ‘मैंने उन्हें पीठ और कमर की दर्द के लिए दवाइयां और रेस्ट लेने की सलाह दी है। उनकी स्पाईन कैनाल इतनी सिकुड़ गई है कि स्पाईनल कॉर्ड और नसें ठीक तरह से साँस नहीं ले पा रही हैं। उसमें इलेक्ट्रिक सिग्नल का नॉर्मल फ्लो पूरी तरह से बंद है। हालांकि ये कोई असाधारण समस्या नहीं है लेकिन उनकी उम्र के कारण हमने उन्हें उनकी दिनचर्या, दवाइयों और कसरत में बदलाव की सलाह दी है।’
बापू को डॉक्टरों का साथ लेकिन बापू सुतार की कहानी सुनने के बाद डॉ खुरजेकर की टीम ने उनकी मदद करने की पूरी कोशिश की और उनका माईक्रोस्कोप असिस्टेड सर्जरी करने का फैसला किया और तीन दिनों के बाद बापू सुतार अपने पांव पर चलने लगे। डॉक्टर खुरजेकर ने सुतार को फिलहाल खुद पर ज्य़ादा भार देने से मना किया है।
पुणे में बापू की बेटी लता और उनके पति प्रकाश ने बापू का इलाज करवाया और उनकी देखभाल की। लता के बेटे प्रफुल्ल के अनुसार, ‘हमने हमारे तीनों मामा से भी पुणे शिफ्ट होने को कहा है लेकिन वे कहते हैं कि उनकी रोजी-रोटी शीरपुर में ही है।’
राजेंद्र चाहते हैं कि वे भी सामान्य लोगों की तरह एक सुखी जीवन जीएं और घर बसाएं, वे कहते हैं कि क्या हमें ज़रा भी खुश होने का अधिकार नहीं है ?
क्या कोई भी लड़की हमसे शादी करने को तैयार नहीं है, अगर वो शारीरिक तौर पूरी तरह स्वस्थ न हो या आंशिक तौर पर नेत्रहीन भी हो तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, ये कहना है बापू सुतार और तारा के सबसे छोटे बेटे गोपाल का।
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