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This Article is From Aug 14, 2015

'पुलिस ने पापा को थप्पड़ मारा तो मैंने तय किया...' दिल्ली की बस्तियों से सर्वश्रेष्ठ कॉलेज तक का सफर

'पुलिस ने पापा को थप्पड़ मारा तो मैंने तय किया...' दिल्ली की बस्तियों से सर्वश्रेष्ठ कॉलेज तक का सफर
एक एनजीओ ने 30 गरीब बच्चों की उच्च शिक्षा की जिम्मेदारी ली है
नई दिल्ली: कॉलेज का पहला महीना किसी भी फ्रेशर के लिए खास होता है लेकिन दिल्ली के कुछ बच्चों के लिए ये नया सफर सिर्फ उनके लिए ही नहीं, उनके परिवार के लिए भी काफी अहमियत रखता है। ऐसा इसलिए क्योंकि एक डिग्री के लिए इनके परिवार ने अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा है। ग्रेजुएशन की सीढ़ी पर पहला कदम रखने वाले इन बच्चों के माता-पिता मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं। लेकिन एक सम्मानित कॉलेज से पढ़ाई करने की लगन के आगे सारी तकलीफें छोटी लगती हैं।

एनडीटीवी ने ऐसे ही 30 कॉलेज छात्रों से मुलाकात की जो अपनी कॉलेज की पढ़ाई के साथ साथ अपनी फीस की जुगाड़ के लिए पार्ट टाइम नौकरी भी कर रहे हैं। कुछ तो दूतावास में क्लर्क का काम करते हैं तो कुछ रेस्त्रां में खाना परोसते हैं और तब जाकर ये नौजवान लेडी श्री राम जैसे बेहतरीन कॉलेज में पढ़ाई करने के सपने को पूरा कर पाते हैं। इन तीस छात्रों में से किसी के भी घर शौचालय नहीं है, यही नहीं पानी और बिजली का भी आना कम और जाना ज्यादा लगा रहता है।

जीज़स एंड मैरी कॉलेज में पढ़ने वाली सरन्या फर्राटेदार अंग्रेज़ी में अपने घर के बारे में बताती हैं 'हमारे घर सिर्फ हफ्ते में एक बार एक घंटे के लिए ही पानी आता है। इसलिए हमें बस बाल्टियां ले लेकर दौड़ना पड़ता है। उस दिन मैंने अपनी क्लास मिस कर दी क्योंकि पानी कभी भी आ सकता था।' जहां तक क्लास में पढ़ने वाले अमीर बच्चों की बात है तो सन्या का कहना है कि शुरुआत में उन्हें लगता था कि लोग इस बारे में सोचते होंगे लेकिन अब उन्हें नहीं लगता कि किसी को कोई फर्क पड़ता है।

वहीं वेंकटेश्वर कॉलेज में पढ़ने वाले चंदन बताते हैं कि पहले पहल उनके परिवेश की वजह से कॉलेज में कोई उनसे बात नहीं करता था लेकिन जब उन्होंने टॉप किया तो अपने आप ही सब उनकी तरफ खींचे चले आए। चंदन और सरन्या जैसे कई बच्चों के सपनों को आशा जैसे एनजीओ सच करने में लगे हैं लेकिन इन सबके बीच कई परिवार भी ऐसे हैं जिन्हें अपने बच्चे की बेहतर शिक्षा के लिए मना पाना मुश्किल काम है।

जैसे रेखा जिनके अभिभावक आज तक उन्हें कॉलेज भेजने के पक्ष में नहीं हैं। अपने संघर्ष के बारे में बात करते हुए रेखा कहती हैं 'लोगों को समझ नहीं आता कि मैं कॉलेज क्यों जाना चाहती हूं। मेरे मां-बाप राज़ी नहीं है लेकिन मुझे फर्क नहीं पड़ता।' रेखा अपने भाई के साथ छोटे बच्चों को पढ़ाती हैं ताकि वह अपनी दस हज़ार रुपए की ट्यूशन फीस का जुगाड़ कर सके।

ख़ास बात ये है कि इन छात्रों के यही संघर्ष इन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करते हैं जैसे दीपक जिन्होंने उस लम्हे का ज़िक्र किया जब उन्होंने कुछ कर दिखाने की ठान ली थी 'मेरे पापा ठेला लगाते हैं और एक दिन पुलिस वाला उन्हें तंग करने आ गया। पापा के पास सिर्फ 100 रुपए थे और अगर वो ये पैसे पुलिस को दे देते तो हम रात का खाना नहीं खा पाते। पुलिसवाले ने पापा को थप्पड़ मारा, बस उसी दिन मैंने तय कर लिया कि मुझे कुछ बनकर दिखाना है।'

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