
Google आज गूगल डूडल के जरिए चिपको आंदोलन की 45वीं सालगिरह मना रहा है.
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Google आज गूगल डूडल के जरिए चिपको आंदोलन की 45वीं सालगिरह मना रहा है.
1970 के दशक में इस आंदोलन की शुरुआत हुई.
लोग पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक या लिपट जाते थे.
इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन इसलिए पड़ा क्योंकि लोग पेड़ों को बचाने के लिए उनसे चिपक या लिपट जाते थे और ठेकेदारों को उन्हें नही काटने देते थे. 1974 में शुरु हुये विश्व विख्यात 'चिपको आंदोलन' की प्रणेता गौरा देवी थी. गौरा देवी 'चिपको वूमन' के नाम से मशहूर हैं.
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1973 के अप्रैल महीने में ऊपरी अलकनंदा घाटी के मंडल गांव में इसकी शुरूआत हुई और धीरे-धीरे पूरे उत्तरप्रदेश के हिमालय वाले जिलों में फैल गया. बाद में चंडी प्रसाद भट्ट, गोबिंद सिंह रावत, वासवानंद नौटियाल और हयात सिंह जैसे जागरूक लोग भी शामिल हो गए. इस आंदोलन में बिश्नोई समाज का बड़ा हाथ था. जोधपुर का महाराजा ने जब पेड़ों को काटने का फैसला सुनाया तो बिशनोई समाज की महिलाएं पेड़ से चिपक गई थीं और पेड़ों को काटने नहीं दिया था.
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क्या है बिश्नोई समाज
बिश्नोई समाज का नाम भगवान विष्णु के नाम पर पड़ा है. यहां के लोग पर्यावरण की पूजा करते हैं. इस समाज के ज्यादातर लोग जंगल और राजस्थान के रेगिस्तान के पास रहते हैं. ये लोग हिंदू गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान को मानते हैं. वे बीकानेर से थे. बता दें, प्रसिद्ध वन संरक्षण आंदोलन जिसको चिपको मूवमेंट भी कहा जाता है, इसमें बिश्नोई समाज का बड़ा हाथ था.
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