'ट्री मैन' अबुल बजंदर के अब तक कम से कम 16 ऑपरेशन किए जा चुके हैं
ढाका:
पूरे शरीर पर मौजूद पेड़ की छाल जैसे मस्सों की वजह से 'वृक्ष मानव' (ट्री मैन) के नाम से मशहूर बांग्लादेशी अबुल बजंदर दुनिया की दुर्लभतम बीमारियों में से एक का शिकार रहा है, लेकिन अब वह जल्द ही ठीक होकर घर लौट पाएगा. उसकी बीमारी पिछले साल डॉक्टरों की नज़र में आई थी, और अब तक उसके हाथों और पैरों से कम से कम 16 बार किए गए ऑपरेशनों में पांच किलोग्राम मस्से निकाले जा चुके हैं.
अबुल बजंदर का कहना है, "मैं अपनी बेटी के पालन-पोषण को लेकर बहुत चिंतित रहता था, और उम्मीद करता हूं, यह बीमारी लौटकर न आए..."
गौरतलब है कि एपिडर्मोडिसप्लासिया वेरुसीफॉरमिस (epidermodysplasia verruciformis) नामक इस बीमारी से दुनियाभर में सिर्फ चार लोग पीड़ित हैं, जिनमें से अतीत में रिक्शा चलाता रहा अबुल बजंदर भी एक है. इस बेहद दुर्लभ जेनेटिक बीमारी को 'ट्रीमैन डिज़ीज़' (वृक्ष मानव रोग) भी कहा जाता है, जिसकी वजह से अबुल अपनी तीन-वर्षीय बेटी को गोद में उठा भी नहीं पाता था.
अबुल बजंदर का मुफ्त इलाज कर रहे ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी को-ऑर्डिनेटर सामंता लाल सेन ने कहा, "अबुल बजंदर का इलाज मेडिकल साइंस के इतिहास में शानदार मील के पत्थर के रूप में दर्ज किया जाएगा..."
सामंता लाल सेन के अनुसार, "हमने उसके शरीर से मस्सों को निकालने के लिए कम से कम 16 ऑपरेशन किए... उसके हाथ और पैर अब लगभग ठीक हैं... अब उसके हाथों के आकार को ठीक करने के लिए दो बार छोटे-छोटे ऑपरेशन किए जाएंगे, और अगले 30 दिन क भीतर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी..."
डॉ सेन का मानना है कि अगर मस्से दोबारा नहीं उग आते हैं, तो अबुल बजंदर दुनिया का पहला शख्स होगा, जो इस बीमारी के बाद ठीक हो पाया. पिछले ही साल एक इंडोनेशियाई नागरिक की इसी दुर्लभ जेनेटिक बीमारी की वजह से मौत हो गई थी.
ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दाखिल अबुल बजंदर ने कहा कि उसे इस बीमारी की वजह से जो दर्द होता था, वह 'नाकाबिल-ए-बर्दाश्त' होता था.
पट्टी बंधे हाथ दिखाते हुए अबुल ने कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था, मैं अपनी बच्ची को अपने हाथों में कभी उठा पाऊंगा... लेकिन अब मैं बहुत अच्छा महसूस करता हूं... अब मैं अपनी बेटी को अपनी गोद में बिठा सकता हूं, उसके साथ खेल सकता हूं... अब तो घर लौटने का इंतज़ार करना भी मुश्किल हो रहा है..."
बांग्लादेश के दक्षिणी तटीय जिले खुलना के एक गांव में रहने वाले अबुल बजंदर की बीमारी के बारे में स्थानीय तथा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इतनी ख़बरें छापी जा चुकी हैं कि अब उसे बच्चा-बच्चा जानने लगा है.
अपनी पत्नी हलीमा खातून से अबुल की पहली मुलाकात के वक्त तक उसे यह बीमारी नहीं हुई थी, लेकिन हलीमा के माता-पिता की मर्ज़ी के खिलाफ हुई उनकी शादी से पहले उसे इस बीमारी ने जकड़ लिया. अब उसके परिवार के तीनों लोग एक साल पहले हुए उसके पहले ऑपरेशन के बाद से अस्पताल में ही रह रहे हैं.
ड्यूटी डॉक्टर नूरुन नाहर का कहना है, "वह (अबुल बजंदर) शायद अस्पताल में सबसे लंबे अरसे तक रहने वाला और सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला मरीज़ है..."
अबुल बजंदर ने शुरू में सोचा था कि ये मस्से उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने उसके हाथों और पैरों को पूरी तरह ढक लिया, और वह काम करने से लाचार हो गया. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद अब वह दुनियाभर से मिले दान की रकम से छोटा-मोटा व्यापार करने का इरादा रखता है.
अबुल बजंदर का कहना है, "मैं अपनी बेटी के पालन-पोषण को लेकर बहुत चिंतित रहता था, और उम्मीद करता हूं, यह बीमारी लौटकर न आए..."
गौरतलब है कि एपिडर्मोडिसप्लासिया वेरुसीफॉरमिस (epidermodysplasia verruciformis) नामक इस बीमारी से दुनियाभर में सिर्फ चार लोग पीड़ित हैं, जिनमें से अतीत में रिक्शा चलाता रहा अबुल बजंदर भी एक है. इस बेहद दुर्लभ जेनेटिक बीमारी को 'ट्रीमैन डिज़ीज़' (वृक्ष मानव रोग) भी कहा जाता है, जिसकी वजह से अबुल अपनी तीन-वर्षीय बेटी को गोद में उठा भी नहीं पाता था.
अबुल बजंदर का मुफ्त इलाज कर रहे ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्लास्टिक सर्जरी को-ऑर्डिनेटर सामंता लाल सेन ने कहा, "अबुल बजंदर का इलाज मेडिकल साइंस के इतिहास में शानदार मील के पत्थर के रूप में दर्ज किया जाएगा..."
अबुल ने बताया, "अब मैं अपनी बेटी को अपनी गोद में बिठा सकता हूं..."
सामंता लाल सेन के अनुसार, "हमने उसके शरीर से मस्सों को निकालने के लिए कम से कम 16 ऑपरेशन किए... उसके हाथ और पैर अब लगभग ठीक हैं... अब उसके हाथों के आकार को ठीक करने के लिए दो बार छोटे-छोटे ऑपरेशन किए जाएंगे, और अगले 30 दिन क भीतर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी जाएगी..."
डॉ सेन का मानना है कि अगर मस्से दोबारा नहीं उग आते हैं, तो अबुल बजंदर दुनिया का पहला शख्स होगा, जो इस बीमारी के बाद ठीक हो पाया. पिछले ही साल एक इंडोनेशियाई नागरिक की इसी दुर्लभ जेनेटिक बीमारी की वजह से मौत हो गई थी.
ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल में दाखिल अबुल बजंदर ने कहा कि उसे इस बीमारी की वजह से जो दर्द होता था, वह 'नाकाबिल-ए-बर्दाश्त' होता था.
दुनियाभर में इस बीमारी से अबुल बजंदर समेत सिर्फ चार लोग पीड़ित हैं
पट्टी बंधे हाथ दिखाते हुए अबुल ने कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था, मैं अपनी बच्ची को अपने हाथों में कभी उठा पाऊंगा... लेकिन अब मैं बहुत अच्छा महसूस करता हूं... अब मैं अपनी बेटी को अपनी गोद में बिठा सकता हूं, उसके साथ खेल सकता हूं... अब तो घर लौटने का इंतज़ार करना भी मुश्किल हो रहा है..."
बांग्लादेश के दक्षिणी तटीय जिले खुलना के एक गांव में रहने वाले अबुल बजंदर की बीमारी के बारे में स्थानीय तथा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इतनी ख़बरें छापी जा चुकी हैं कि अब उसे बच्चा-बच्चा जानने लगा है.
अपनी पत्नी हलीमा खातून से अबुल की पहली मुलाकात के वक्त तक उसे यह बीमारी नहीं हुई थी, लेकिन हलीमा के माता-पिता की मर्ज़ी के खिलाफ हुई उनकी शादी से पहले उसे इस बीमारी ने जकड़ लिया. अब उसके परिवार के तीनों लोग एक साल पहले हुए उसके पहले ऑपरेशन के बाद से अस्पताल में ही रह रहे हैं.
ड्यूटी डॉक्टर नूरुन नाहर का कहना है, "वह (अबुल बजंदर) शायद अस्पताल में सबसे लंबे अरसे तक रहने वाला और सबसे ज़्यादा पसंद किया जाने वाला मरीज़ है..."
अबुल बजंदर ने शुरू में सोचा था कि ये मस्से उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने उसके हाथों और पैरों को पूरी तरह ढक लिया, और वह काम करने से लाचार हो गया. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद अब वह दुनियाभर से मिले दान की रकम से छोटा-मोटा व्यापार करने का इरादा रखता है.
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