यह ख़बर 22 मई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

किफायत का राग गाती सरकार ने विज्ञापनों में खर्चे 58 करोड़...

खास बातें

  • आरटीआई से यह जानकारी मिली है कि बीते तीन साल में पुण्यतिथियों पर दिए जाने वाले विज्ञापनों पर ही केंद्र सरकार 58 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है।
नई दिल्ली:

मौजूदा यूपीए सरकार के मंगलवार को तीन साल पूरे हो गए। कमरतोड़ महंगाई के बीच एक तरफ तो सरकार फिजूलखर्ची रोकने और किफायत करने की बात कर रही है, लेकिन सच तो यह है कि सरकार की अपनी फिजूलखर्ची कम नहीं हुई है। सोमवार को ही राजीव गांधी की 21वीं पुण्यतिथि पर अखबार सरकारी विज्ञापनों से भरे रहे। बीते तीन सालों में ही सरकार ने विज्ञापनों पर 58 करोड़ रुपये फूंक डाले हैं।

एनडीटीवी को एक आरटीआई से यह जानकारी मिली है कि बीते तीन साल में पुण्यतिथियों पर दिए जाने वाले विज्ञापनों पर ही केंद्र सरकार 58 करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इनमें 15.23 करोड़ रुपये महात्मा गांधी से जुडे विज्ञापनों पर खर्च किए गए। अंबेडकर के विज्ञापनों पर 12.81 करोड़ रुपये खर्च हुए। राजीव गांधी से जुड़े विज्ञापनों पर 11.6 करोड़ रुपये खर्च किए गए। जवाहरलाल नेहरू से जुड़े विज्ञापनों पर 7.2 करोड़ का खर्च आया और इंदिरा गांधी के विज्ञापनों पर 4.9 करोड रुपये खर्च किए गए।

बीते पांच साल मे सरकार की आमदनी बस 36 फीसदी बढ़ी है और वित्तीय घाटा 312 फीसदी बढ़ चुका है। कुछ वक्त पहले वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने सरकारी खर्चों में कुछ कटौतियों का ऐलान भी किया है।

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इनमें विदेश यात्रओं पर पाबंदी, सेमिनारों और सम्मेलनों के बजट में 10 फीसदी की कटौती, पांच सितारा होटलों में बैठकों पर रोक, रक्षा के अलावा वाहनों की ख़रीद पर रोक जैसी तरकीबें शामिल हैं, लेकिन इन चीज़ों पर रोक लगी तो क्या हुआ, सरकार के पास फ़िज़ूलख़र्ची करने के और रास्ते हैं।