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This Article is From Aug 04, 2017

बेगम को 'अजी-सुनती हो' कहने के खिलाफ अफगानिस्‍तान में उठी आवाज

अफगान समाज में महिलाओं का नाम लेना एक तरह से गुस्‍सा जाहिर करना माना जाता है और यदा-कदा इसको अपमान के रूप में भी लिया जाता है.

बेगम को 'अजी-सुनती हो' कहने के खिलाफ अफगानिस्‍तान में उठी आवाज
फाइल फोटो
कट्टरपंथ की आग से सुलगते अफगानिस्‍तान में बदलाव की आहट भी सुनने को मिल रही है. वैसे तो इस मुल्‍क में महिलाओं के नाम लेने का चलन नहीं है. उनको किसी की बेगम, बहन, बेटी या मां के रूप में ही संबोधित किया जाता है. इस मामले में खास बात यह है कि अफगान समाज में महिलाओं का नाम लेना एक तरह से गुस्‍सा जाहिर करना माना जाता है और यदा-कदा इसको अपमान के रूप में भी लिया जाता है. अब इसके खिलाफ अफगानी महिलाओं ने आवाज उठानी शुरू दी है. वे चाहती हैं कि वे अपने नाम से जानी-पहचानी जाएं. 

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समाचार एजेंसी रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अफगान कानून के तहत जन्‍म प्रमाणपत्र में मां का नाम भी दर्ज नहीं होता है. इन सबके खिलाफ बदलाव की मांग अफगान समाज के भीतर से ही उठी है. सोशल मीडिया में अफगानिस्‍तान की महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं ने #WhereIsMyName से एक अभियान शुरू किया है. इस अभियान के माध्‍यम से महिलाएं इस व्‍यवस्‍था में बदलाव की मांग कर रही हैं. उनका कहना है कि उनको नाम से संबोधित किया जाना चाहिए. पिछले दिनों शुरू हुए इस हैशटेग अभियान का इस्‍तेमाल 1000 से भी अधिक बार किया जा चुका है.

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गुमनामी की जिंदगी
इस अभियान से जुड़ी महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि अफगानिस्‍तान में महिलाओं के नाम लेने के मामले में ऐसी पुरातनपंथी सोच है कि वे गुमनामी में ही जीवन बसर करती हैं. यहां तक कि अंतिम संस्‍कार के समय भी महिलाओं का नाम नहीं लिया जाता और कब्र के पत्‍थर पर भी उनका नाम नहीं लिखवाया जाता, इसलिए वो मौत के बाद भी गुमनाम ही रहती हैं.

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उल्‍लेखनीय है कि पिछले दो दशकों से अफगानिस्‍तान युद्ध का दंश और तालिबान के संकट से जूझ रहा है. अमेरिकी फौजों ने यहां तालिबान के शासन को तो खत्‍म कर दिया लेकिन इसका प्रभाव अभी भी मौजूद है. युद्ध की विभीषिका झेल रहा अफगानिस्‍तान फिर से पटरी पर लौटने की कोशिश कर रहा है.

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