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This Article is From Jun 29, 2015

जानें क्या है 'ग्रीस संकट' और दुनिया पर क्या रहेगा इसका असर

जानें क्या है 'ग्रीस संकट' और दुनिया पर क्या रहेगा इसका असर
एथेंस: जनवरी 2013 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रीस के पास दुनिया की सबसे बड़ी मर्चेंट नेवी है और दुनिया के 15.17 फीसदी जहाज अकेले ग्रीस के पास हैं। लेकिन आज यह देश जबरदस्त संकट में घिरा हुआ है।

ग्रीस के यूरो जोन में बने रहने की कोशिशें लगातार नाकाम होती नजर आ रही हैं। यूरोपियन सेंट्रल बैंक ने भी ग्रीस में आपात फंडिंग बढ़ाने से साफ इनकार कर दिया है। इसके अलावा ग्रीस के सभी बैंक अगले 7 दिनों तक बंद रहेंगे और एटीएम से भी 60 यूरो से ज़्यादा निकालने पर रोक लगा दी गई है।

हालांकि फिलहाल ऑनलाइन बैंकिंग पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है, लेकिन फॉरेन ट्रांसफर रोक दिया गया है। बता दें कि मंगलवार 30 जून तक 1.6 अरब यूरो यानी 1.7 अरब डॉलर चुकाने की डेडलाइन है। अगर ग्रीस भुगतान नहीं करता है तो उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाएगा।

ग्रीस में संकट गहराने से दुनियाभर के बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है, भारत में भी सप्ताह के पहले कारोबारी दिन बाजारों ने भारी गिरावट के साथ दिन की शुरुआत की। सेंसेक्स में 500 से भी ज्यादा अंकों की गिरावट दर्ज की गई, जबकि निफ्टी भी 150 अंक नीचे कारोबार करता नजर आया।

जापान का बाजार निक्केई करीब 2 प्रतिशत तक टूटा। उधर डॉलर के मुकाबले यूरो एक महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। जानकारों का कहना है कि ग्रीस की तरफ से कैपिटल कंट्रोल एक सरप्राइज मूव है। डिफॉल्ट के लिए 20 जुलाई अहम दिन होगा।

जानकारों के मुताबिक यूरो जोन से ग्रीस के निकलने का कोई बड़ा आर्थिक प्रभाव नहीं पड़ेगा और लंबी अवधि में इसका भारत पर भी कोई खास असर नहीं पड़ेगा। शॉर्ट टर्म में इसका कुछ असर पड़ने की आशंका जरूर है। जानकारों का कहना है कि अगर ग्रीस ने मंगलवार को आईएमएफ में पैसे जमा नहीं भी किए तो वह डिफॉल्टर घोषित नहीं होगा, डिफॉल्टर की घोषणा के लिए 20 जुलाई अहम दिन होगा।

जानकारों का यह भी मानना है कि जर्मनी नहीं चाहेगा कि ग्रीस यूरो जोन से बाहर चला जाए। कुछ जानकारों का मानना है कि ग्रीस के हालात और भी ज्यादा खराब हो सकते हैं।

ग्रीस की अर्थव्यवस्था के बारे में ये सब जानते हैं आप?
  • ग्रीस सकल घरेलू उत्पाद के लिहाज से दुनिया की 43वीं और क्रय शक्ति के मामले में 51वीं बड़ी अर्थव्यवस्था है।
  • साल 2013 की विश्वबैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 28 सदस्यों वाले यूरोपीय यूनियन में ग्रीस की अर्थव्यवस्था 13वें नंबर पर है।
  • जीडीपी के लिहाज से प्रति व्यक्ति आय के मामले में ग्रीस का दुनिया में 37वां और खर्च करने की क्षमता के अनुसार प्रति व्यक्ति आय में ग्रीस का 40वां स्थान है।
  • ग्रीस को एक विकसित अर्थव्यवस्था माना जाता है और 2012 के राष्ट्रीय आंकड़ों के अनुसार यह 80 फीसदी से ज्यादा सेवा क्षेत्र व करीब 16 फीसदी उद्योगों पर निर्भर है।
  • खास बात ये भी है कि पर्यटन और शिपिंग को यहां उद्योग में शामिल किया गया है।
  • 1 जनवरी 2013 की रिपोर्ट के अनुसार ग्रीस के पास दुनिया की सबसे बड़ी मर्चेंट नेवी है और दुनिया के 15.17 फीसदी जहाज अकेले ग्रीस के पास हैं।
  • अकेले 2013 में ही 17.9 मिलियन यानी 1 करोड 79 लाख पर्यटकों ग्रीस पहुंचे।
  • पर्यटकों की आमद के मामले में ग्रीस का यूरोपियन यूनियन में छठा स्थान है जबकि दुनिया में सोलहवां स्थान है।

जानें क्या है ग्रीस संकट...
  • ग्रीस के डिफॉल्ट होने की नींव 1999 में यहां आए विनाशकारी भूकंप को भी कहा जा सकता है। इस भूकंप में देश का ज्यादातर हिस्सा तबाह हो गया था और लगभग 50,000 इमारतों का पुनर्निर्माण करना पड़ा था। यह सारा काम सरकारी धन खर्च करके किया गया।
  • यूरो जोन से जुड़ना भी ग्रीस की भारी भूल मानी जा रही है। हालांकि ग्रीस यूरो जोन से जुड़ने वाला पहला देश नहीं था, लेकिन उसने 2001 में ऐसा किया। यूरो जोन में आने से उसे कर्ज मिलने में आसानी होने वाली थी। लेकिन उसका यह फैसला उसके लिए भारी पड़ता दिख रहा है।
  • 2004 के ओलिंपिक खेलों के लिए ग्रीस ने यूरो जोन से बड़ी मात्रा में कर्ज लिया था। माना जाता है कि सरकार ने ओलिंपिक के सफल आयोजन के लिए अनापशनाप खर्च किया, जिसके कारण मौजूदा संकट पैदा हुआ है। ओलिंपिक के लिए सिर्फ सात साल के दौरान ही लगभग 12 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए गए।
  • ग्रीस का राजकोषीय घाटा बहुत ज्यादा बढ़ गया था, लेकिन तत्कालीन सरकार ने खातों में हेराफेरी करके आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था। 2009 में सत्ता में आयी नई सरकार ने इसका खुलासा किया। उस समय ग्रीस पर उसकी जीडीपी की तुलना में 113 फीसदी कर्ज था और यह यूरो जोन में सबसे ज्यादा था। एथेंस ओलिंपिक के समापन के कुछ महीनों के भीतर ही यूरो जोन को यह सच्चाई मालूम चल गई कि ग्रीस सरकार ने अपने खातों में हेरफेर की थी। यूरो जोन के सदस्यों को 2004 से ही उस पर शक था।
  • आंकड़ों में हेराफेरी की बात सामने आने के कारण ग्रीस पर भरोसे का संकट पैदा हो गया, इसके चलते इस संकटग्रस्त देश को कर्ज देने वाले देशों की संख्या काफी कम हो गई। इस दौरान यहां ब्याज दरें 30 फीसदी के स्तर पर पहुंच गई।
  • मई 2010 में यूरो जोन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने ग्रीस को डिफॉल्ट से बचाने के लिए 10 अरब यूरो का राहत पैकेज दिया। यही नहीं जून 2013 तक उसकी वित्तीय जरूरतें भी पूरी कीं। ग्रीस के सामने सुधारों को लागू करने की शर्तें भी रखी गई थीं।
  • सख्त आर्थिक सुधारों को देखते हुए उसे दूसरा राहत पैकेज दिया गया। ग्रीस को दूसरे मौके में 130 अरब यूरो का पैकेज दिया गया। इसके साथ भी सुधारों की शर्तें जुड़ी हुई थीं।
  • भारी सुस्ती और राहत पैकेज की शर्तों को लागू करने में देरी के कारण दिसंबर, 2012 में ऋणदाता आखिरी चरण में कर्ज राहत देने को राजी हो गए। आईएमएफ ने भी उसे सहयोग दिया और जनवरी 2015 से मार्च 2016 तक ग्रीस को 8.2 अरब यूरो का कर्ज सहयोग मिला।
  • अभी ग्रीस की अर्थव्यवस्था कुछ रफ्तार पकड़ ही रही थी कि संसदीय चुनाव के बाद वामपंथी सिरिजा पार्टी इन वादों के साथ सत्ता में आ गई कि सरकार बनते ही बेलआउट की शर्तों को ठुकरा दिया जाएगा। इससे जनता की मुश्किलें और बढ़ गईं। यूरो जोन के देशों ने एक बार फिर ग्रीस को राहत देते हुए टेक्निकल एक्सटेंशन दिया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। ग्रीस के सामने फिर से नई मुसीबत है और दुनिया ग्रीस संकट से उबरने की दुआ कर रही है।

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