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This Article is From Jun 29, 2017

मानव तस्करी को लेकर अमेरिका ने भारत को दी खराब रैंकिंग

साल 2014 में आई फिल्म 'मर्दानी' में अभिनेत्री रानी मुखर्जी एक ऐसी महिला ऑफिसर का रोल निभाती दिखीं थीं जो देह व्यापार के धंधे में धकेली जा चुकीं बच्चियों को बचाती हैं.

मानव तस्करी को लेकर अमेरिका ने भारत को दी खराब रैंकिंग
मानव तस्करी की प्रतीकात्मक तस्वीर
वाशिंगटन: अमेरिका ने यह कहते हुए भारत को एक बार फिर मानव तस्करी से जुड़ी अपनी सालाना रिपोर्ट में टियर-2 में डाला है कि भारत इस समस्या को खत्म करने के लिए न्यूनतम मानकों पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता. अमेरिकी विदेश विभाग ने मानव तस्करी से जुड़ी अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा कि भारत इस समस्या को खत्म करने के लिए न्यूनतम मानकों पर पूरी तरह खरा नहीं उतरता. हालांकि उसने साथ ही कहा कि भारत ऐसा करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है. अमेरिकी कांग्रेस द्वारा अधिकृत रिपोर्ट में कहा गया, 'पिछले रिपोर्ट में जिस अवधि को शामिल किया गया था, उसकी तुलना में इस बार सरकार ने प्रयास तेज किए हैं और भारत अब भी टियर-2 में ही है.'

डेढ़ साल की नौकरी में 500 से ज्यादा बच्चों को मां-बाप से मिलवाया

साल 2014 में आई फिल्म 'मर्दानी' में अभिनेत्री रानी मुखर्जी एक ऐसी महिला ऑफिसर का रोल निभाती दिखीं थीं जो देह व्यापार के धंधे में धकेली जा चुकीं बच्चियों को बचाती हैं. मुंबई में आरपीएफ की एक रियल 'मर्दानी' पुलिस ऑफिसर हैं, एक साल की नौकरी में 432 बच्चों को बचा चुकी हैं. छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर इन दिनों ड्यूटी करने वाली 32 वर्षीय सब इंस्पेक्टर का नाम रेखा मिश्रा है. सेंट्रल रेलवे के मुंबई डिविजन में रेलवे पुलिस ने पिछले 2016 में 1150 बच्चों को बचाया था, जिसमें रेखा मिश्रा ने अकेले 434 बच्चों को बचाने में मदद कीं. इतना ही नहीं 2017 के शुरुआती तीन महीनों में 100 से ज्यादा बच्चों को बचा चुकी हैं. उन्होंने बताया कि सीएसटी से बचाए गए बच्चों में या तो वे किसी वजह से परिवार से बिछुड़ गए थे या वे किसी मानव तस्कर गैंग के शिकार थे.
 
 
 

देश के व्यस्ततम रेलवे स्टेशनों में से एक सीएसटी पर रेखा मिश्रा रोजाना करीब 12 घंटे ड्यूटी करती हैं. इस दौरान उनकी नजरें उन्हें ढूंढती हैं जो डरे सहमे हुए दिखते हैं. ऐसे में ज्यादातर मामलों में उन्हें बच्चे ही मिलते हैं.

रेखा मिश्रा उत्तर प्रदेश इलाहाबाद शहर की रहने वाली हैं. उनकी पढ़ाई-लिखाई भी वहीं से हुई है. वह कहती हैं उनके पिता सुरेंद्र नारायण सेना से रिटायर हो चुके हैं और तीन भाई अभी भी सेना में नौकरी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके मां-पिता बचपन से ही बच्चों से लगाव रखने की सीख देते रहे. शायद यही वजह है कि वह पुलिस की नौकरी में भी बच्चों को बचाने की भरसक कोशिश करती हैं.
इनपुट: भाषा

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