वाशिंगटन:
एक पूर्व शीर्ष अमेरिकी राजनयिक का कहना है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने जा रहे नवाज शरीफ भले ही भारत के साथ संबंध सुधारने के लिए गंभीर प्रतीत हो रहे हों, लेकिन शक्तिशाली सेना के समर्थन के बिना शायद वह ज्यादा कुछ नहीं कर सकेंगे।
भारत-पाक संबंधों को सुधारने के लिए लाहौर से मिल रहे सकारात्मक संकेतों के बारे में पूछने पर पाकिस्तान के पूर्व अमेरिकी राजदूत कैमरन मंटेर ने कहा कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि शरीफ सेना के साथ अपने संबंध कैसे बनाते हैं?
उन्होंने कहा, मेरे विचार से ऐतिहासिक कारणों के चलते कई भारतीयों के मन में पाकिस्तानी सेना को लेकर संदेह ही नजर आता है। वॉशिंगटन स्थित प्रख्यात अमेरिकी विचार समूह ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स’ द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में मंटेर ने कहा, नवाज के साथ सकारात्मक तरीके से काम करते हुए पाकिस्तानी सेना इन आशंकाओं को दूर करने के लिए कदम उठा सकती है। उन्होंने कहा, लेकिन मुझे लगता है कि जब तक (शरीफ और सेना) भारत के प्रति व्यापक पहल नहीं करते तब तक उनके लिए सीमाएं बनी रह सकती हैं।
मंटेर अक्तूबर 2010 से जुलाई 2012 तक इस्लामाबाद में अमेरिकी राजदूत थे। यह वह समय था, जब रेमंड डेविस मामले, ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारने तथा अमेरिकी बलों के सीमा पार से हुए हमले में 26 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत जैसी कुछ घटनाओं के कारण दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को कई बार झटका लगा था। इस्लामाबाद में प्रवास के दौरान मंटेर ने लाहौर में कई बार शरीफ बंधुओं से मुलाकात की थी।
मंटेर ने कहा, जब भी मैंने नवाज और उनके भाई शहबाज से बात की, हर बार वीजा प्रक्रिया और सीमा पार सामान ले जाने की क्षमता में सुधार को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत हुई और इस सिलसिले में उठाए गए कदमों के आर्थिक प्रभाव पर अच्छी तरह ध्यान दिया गया।
उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि नवाज इसके बड़े समर्थक हैं। वैसे अहम सवाल यही होगा कि अभी नवाज को सेना के साथ कैसे रिश्ते बनाने की जरूरत है। ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स’ में भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के लिए वरिष्ठ फेलो डेनियल मर्की ने कहा कि नवाज शरीफ, उनके सत्तारूढ़ गठबंधन और उनकी पार्टी को दो अलग-अलग दिशाओं में खींचा जा रहा है।
उनके अनुसार, एक ओर तो वह भारत के साथ रिश्ते सुधारने, भारत के साथ स्थिरता और भारत के साथ व्यापार चालू करने की बात करते हैं। यह नवाज और उनकी पार्टी का सकारात्मक पक्ष है। उन्होंने कहा, वहीं दूसरी ओर शरीफ पंजाब में कुछ कठोर विचारधारा वाले संगठनों से जुड़े हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वह जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा के कारण उत्पन्न हो रही समस्याओं से सचमुच निपटने की कोशिश करेंगे या फिर वह अपनी 1990 के दशक की उस छवि से दूर होंगे, जब उन्होंने परमाणु परीक्षण कर डाला था।
अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा, वह एक बार में यह दोनों बातों को कैसे कर पाएंगे। उनके लिए संतुलन बना कर काम करना निश्चित रूप से बहुत मुश्किल होगा।
भारत-पाक संबंधों को सुधारने के लिए लाहौर से मिल रहे सकारात्मक संकेतों के बारे में पूछने पर पाकिस्तान के पूर्व अमेरिकी राजदूत कैमरन मंटेर ने कहा कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि शरीफ सेना के साथ अपने संबंध कैसे बनाते हैं?
उन्होंने कहा, मेरे विचार से ऐतिहासिक कारणों के चलते कई भारतीयों के मन में पाकिस्तानी सेना को लेकर संदेह ही नजर आता है। वॉशिंगटन स्थित प्रख्यात अमेरिकी विचार समूह ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स’ द्वारा आयोजित एक गोष्ठी में मंटेर ने कहा, नवाज के साथ सकारात्मक तरीके से काम करते हुए पाकिस्तानी सेना इन आशंकाओं को दूर करने के लिए कदम उठा सकती है। उन्होंने कहा, लेकिन मुझे लगता है कि जब तक (शरीफ और सेना) भारत के प्रति व्यापक पहल नहीं करते तब तक उनके लिए सीमाएं बनी रह सकती हैं।
मंटेर अक्तूबर 2010 से जुलाई 2012 तक इस्लामाबाद में अमेरिकी राजदूत थे। यह वह समय था, जब रेमंड डेविस मामले, ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मारने तथा अमेरिकी बलों के सीमा पार से हुए हमले में 26 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत जैसी कुछ घटनाओं के कारण दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को कई बार झटका लगा था। इस्लामाबाद में प्रवास के दौरान मंटेर ने लाहौर में कई बार शरीफ बंधुओं से मुलाकात की थी।
मंटेर ने कहा, जब भी मैंने नवाज और उनके भाई शहबाज से बात की, हर बार वीजा प्रक्रिया और सीमा पार सामान ले जाने की क्षमता में सुधार को लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत हुई और इस सिलसिले में उठाए गए कदमों के आर्थिक प्रभाव पर अच्छी तरह ध्यान दिया गया।
उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि नवाज इसके बड़े समर्थक हैं। वैसे अहम सवाल यही होगा कि अभी नवाज को सेना के साथ कैसे रिश्ते बनाने की जरूरत है। ‘काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशन्स’ में भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के लिए वरिष्ठ फेलो डेनियल मर्की ने कहा कि नवाज शरीफ, उनके सत्तारूढ़ गठबंधन और उनकी पार्टी को दो अलग-अलग दिशाओं में खींचा जा रहा है।
उनके अनुसार, एक ओर तो वह भारत के साथ रिश्ते सुधारने, भारत के साथ स्थिरता और भारत के साथ व्यापार चालू करने की बात करते हैं। यह नवाज और उनकी पार्टी का सकारात्मक पक्ष है। उन्होंने कहा, वहीं दूसरी ओर शरीफ पंजाब में कुछ कठोर विचारधारा वाले संगठनों से जुड़े हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वह जमात-उद-दावा, लश्कर-ए-तैयबा के कारण उत्पन्न हो रही समस्याओं से सचमुच निपटने की कोशिश करेंगे या फिर वह अपनी 1990 के दशक की उस छवि से दूर होंगे, जब उन्होंने परमाणु परीक्षण कर डाला था।
अमेरिकी विशेषज्ञ ने कहा, वह एक बार में यह दोनों बातों को कैसे कर पाएंगे। उनके लिए संतुलन बना कर काम करना निश्चित रूप से बहुत मुश्किल होगा।
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