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विश्व ध्यान दिवस (वर्ल्ड मेडिटेशन डे) के मौके पर दुनिया भर में प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने संयुक्त राष्ट्र में अपना ऐतिहासिक संबोधन दिया. इस ऐतिहासिक कार्यक्रम में महासभा के अध्यक्ष एच.ई. फिलेमोन यांग, अवर महासचिव अतुल खरे और कई अन्य गणमान्य हस्तियों ने भी शिरकत की. इस अवसर पर श्री श्रीरविशंकर ने कार्यक्रम के दौरान 600 से अधिक उत्साही प्रतिभागियों के लिए एक विशेष सत्र का भी आयोजन किया.
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इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि ध्यान की ये भारतीय प्रथा व्यक्तिगत पूर्ति और आंतरिक शांति के लिए एक साधन के रूप में बेहद महत्वपूर्ण है. ये प्रथा भारत की वसुधैव कुटुंबकम के सभ्यतागत सिद्धांत में निहित है. जिसका मतलब होता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है. उन्होंने इस मौके पर आगे कहा कि आज विश्व ध्यान दिवस पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव में स्वास्थ्य और कल्याण के लिए पूरक दृष्टिकोण के रूप में योग और ध्यान के बीच संबंध को स्वीकार किया गया है.
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वहीं, इस मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने कहा कि ध्यान लोगों के प्रति करुणा और सम्मान पैदा करता है. इस अवसर पर बोलते हुए, अवर महासचिव खरे ने मानसिक स्वास्थ्य और ध्यान के बीच अंतर्निहित संबंध और संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों पर ध्यान के गहरे प्रभाव के बारे में अपनी बात रखी. गुरुदेव श्री श्री रविशंकर ने अपने मुख्य भाषण में ध्यान से जुड़े कई लाभों और आयामों पर प्रकाश डाला.
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आपको बता दें कि 6 दिसंबर 2024 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से 21 दिसंबर को विश्व ध्यान दिवस घोषित करने के प्रस्ताव को अपनाया था. और भारत ने उस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. ऐसे समय में जब दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में संघर्ष का दौरा जारी है उसके बीच में इस संकल्प को अपनाना एक तरह से शांति, शांति और समग्र मानव कल्याण को बढ़ावा देने के महत्व पर प्रकाश डालता है. यह ध्यान की परिवर्तनकारी क्षमता की वैश्विक मान्यता में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर भी है.
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