
सभी लंबित मुद्दों पर ‘गंभीर वार्ता’ की इच्छा जताने वाले पाकिस्तान ने आज कहा कि भारत का यह रुख कानूनीतौर पर तर्कसंगत नहीं है कि 1972 का शिमला समझौता कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के पूर्व के प्रस्तावों के स्थान पर है।
विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तसनीम असलम ने साप्ताहिक संवाददाता सम्मेलन में कहा, मुझे समझ नहीं आता कि कैसे एक देश यह निर्णय कर सकता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव अब वैध नहीं है। उन्होंने प्रश्न किया कि एक द्विपक्षीय समझौता, जो संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की जगह लेने की बात नहीं करता है, कैसे ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों की जगह ले सकता है।’
प्रवक्ता ने कहा, कानूनी प्रकिया यह है कि ‘यदि पाकिस्तान, भारत और कश्मीरी, कश्मीर के मुद्दे पर किसी सहमति पर पहुंचते हैं तो उन्हें उस प्रक्रिया की पुष्टि के लिए प्रस्ताव पारित कराने की खातिर वापस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् जाना होगा। उन्होंने कहा, इसलिए इस तर्क का कोई कानूनी आधार नहीं है। प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान सभी लंबित मुद्दों को सुलझाने के लिए ‘गंभीर वार्ता’ चाहता है।
भारत की विदेश सचिव सुजाता सिंह के इस बयान पर कि भारत कश्मीरी मुद्दे को सुलझाने का उत्सुक है, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तसनीम असलम ने स्वागत किया है। सिंह ने भारत की यात्रा पर गए पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ बातचीत में यह बात कही थी।
तसनीम ने कहा, हमने भारत में (सिंह के साथ) बातचीत की खबरें देखी हैं। हम इस बयान का स्वागत करते हैं। हम इस स्वीकृति का स्वागत करते हैं। पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए बार-बार विश्व समुदाय को उससे जोड़ने का प्रयास किया है, लेकिन भारत ने हमेशा कहा है कि शिमला समझौते में पाकिस्तान की स्वीकृति के अनुसार यह द्विपक्षीय मामला है। दोनों देशों के बीच 1971 के युद्ध के बाद शिमला समझौता हुआ था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पाकिस्तानी समकक्ष जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच दो जुलाई 1972 को शिमला समझौता हुआ था। इसमें सेना को हटाने और युद्ध बंदियों के आदान-प्रदान पर सहमति बनी थी।
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