
दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी को 2022 तक कोविड-19 (Covid-19) का टीका संभवत: नहीं मिल पाएगा. ‘द बीएमजे' में बुधवार को प्रकाशित अध्ययन में यह बताया गया है और सचेत किया गया है कि टीका वितरित करना, उसे विकसित करने जितना ही चुनौतीपूर्ण होगा. इसी पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में अनुमान जताया गया है कि दुनियाभर में 3.7 अरब वयस्क कोविड-19 का टीका लगवाना चाहते हैं, जो खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में मांग के अनुरूप आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष और न्यायसंगत रणनीतियां बनाने की महत्ता को रेखांकित करता है.
ये अध्ययन दर्शाते हैं कि वैश्विक कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम की संचालनात्मक चुनौतियां टीका विकसित करने से जुड़ी वैज्ञानिक चुनौतियों जितनी ही मुश्किल होंगी. अमेरिका में ‘जॉन्स हॉप्किन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ' के अनुसंधानकर्ताओं ने कहा, ‘‘यह अध्ययन बताता है कि अधिक आय वाले देशों ने किस प्रकार कोविड-19 टीकों की भविष्य में आपूर्ति सुनिश्चित कर ली है, लेकिन शेष दुनिया में इनकी पहुंच अनिश्चित है.''
उन्होंने कहा कि टीकों की आधी से अधिक खुराक (51 प्रतिशत) अधिक आय वाले देशों को मिलेंगी, जो दुनिया की आबादी का 14 प्रतिशत हैं और बाकी बची खुराक कम एवं मध्यम आय वाले देशों को मिलेंगी, जबकि वे दुनिया की जनसंख्या का 85 प्रतिशत से अधिक हैं. अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी को 2022 तक कोविड-19 का टीका संभवत: नहीं मिल पाएगा और यदि सभी टीका निर्माता अधिकतम निर्माण क्षमता तक पहुंचने में सफल हो जाए, तो भी 2022 तक दुनिया के कम से कम पांचवें हिस्से तक टीका नहीं पहुंच पाएगा.
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तीन महीने पहले भी ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि दुनिया की 13 फीसदी आबादी वाले धनी देशों के समूह ने कोरोना वायरस के 50 फीसदी टीके की खुराक खरीद ली है. एनालिटिक्स कंपनी एयरफिनिटी द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर गैर-सरकारी संगठन ने मौजूदा समय में परीक्षण के अंतिम दौर से गुजर रहे पांच वैक्सीन की उत्पादक कंपनियां, फार्मास्यूटिकल्स और खरीदार देशों के बीच हुए सौदों का विश्लेषण किया था.
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