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This Article is From Nov 30, 2015

मानवता और पर्यावरण में खोए संतुलन को वापस बनाने की जरूरत : पीएम मोदी

मानवता और पर्यावरण में खोए संतुलन को वापस बनाने की जरूरत : पीएम मोदी
पीएम मोदी
पेरिस: पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर आयोजित समिट में भारतीय पैवेलियन के उद्घाटन मौके पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्षों का आह्वान किया और कहा कि मानवता और पर्यावरण में खोए संतुलन को वापस बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दुनिया को इस मामले को तुरंत गंभीरता से लेना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमें अपने ग्लेशियरों की चिंता करनी चाहिए। पीएम मोदी ने उम्मीद जताई कि पेरिस समिट से इस समस्या का कुछ हल निकलना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि यहां जो भी फैसला होगा वह हमारे विकास पर असर डालेगा। हमें एक बराबरी का और स्थाई समझौते की उम्मीद है।

इस मौके पर उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने कहा था कि दुनिया में सबकी जरूरतें पूरी हो सकती हैं लेकिन लालच नहीं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि 2030 तक हमारी ऊर्जा जरूरतों का 40 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा से पूरी होगा।

जलवायु परिवर्तन को एक बड़ी वैश्विक चुनौती बताते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए व्यापक, न्यायसंगत और दीर्घकालिक समझौते पर सहमति के लिए दुनिया को इसे अत्यावश्यक मानते हुए काम करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से इतर एक बेबाक उद्बोधन में मोदी ने जीवनशैली में बदलाव की भी वकालत की ताकि धरती पर बोझ कम हो। उन्होंने कहा कि कुछ की जीवनशैली से विकासशील देशों के लिए अवसर समाप्त नहीं होने चाहिए।

मोदी ने ग्रीन-हाउस गैस उत्सर्जन से लड़ने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दर्शाने वाले एक विशेष भारतीय पवेलियन का यहां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन स्थल पर उद्घाटन करते हुए कहा, 'जलवायु परिवर्तन एक बड़ी वैश्विक चुनौती है। लेकिन यह हमारी बनाई हुई नहीं है।'

उन्होंने सम्मेलन से निकलने वाले परिणाम को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा, 'हम चाहते हैं कि दुनिया अत्यावश्यक आधार पर काम करे। हम पेरिस में एक व्यापक, न्यायसंगत और दीर्घकालिक समझौता चाहते हैं।' प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में और 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' अखबार के सोमवार के संस्करण में विचार वाले हिस्से में लिखे एक लेख, दोनों ही जगह जीवनशैली में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया।

उन्होंने पवेलियन में उपस्थित श्रोताओं से कहा, 'और, मैं जीवनशैली में बदलाव का भी आह्वान करुंगा, ताकि हम अपनी धरती पर बोझ कम कर सकें। हमारे प्रयासों की स्थाई सफलता हमारे रहने और सोचने के तरीके पर निर्भर करेगी।' मोदी ने अपने लेख में लिखा, 'कुछ की जीवनशैली से उन कई देशों के लिए अवसर समाप्त नहीं होने चाहिए जो अब भी विकास की सीढ़ी पर पहले पायदान पर हैं।'

प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित देशों को चेतावनी भी दी कि अगर वे उत्सर्जन कम करने का बोझ भारत जैसे विकासशील देशों पर डालते हैं तो यह 'नैतिक रूप से गलत' होगा और विकासशील देशों को भी अपनी अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति के लिए कार्बन दहन का अधिकार है। उन्होंने कहा कि भारत की प्रगति हमारी नियति और हमारी जनता का अधिकार है। लेकिन हमें जलवायु परिवर्तन से लड़ने में भी अगुवाई करनी चाहिए।

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ भारतीय प्रधानमंत्री ने पवेलियन के विभिन्न स्टॉलों का मुआयना किया और बाद में पर्यावरण संरक्षण पर एक पुस्तक का विमोचन किया। जावड़ेकर ने कहा, 'हमारा पवेलियन जलवायु परिवर्तन से लड़ने की हमारी प्रतिबद्धता दर्शाता है।' पवेलियन में भारत द्वारा अपनाए गए अनुकूलन उपायों पर फिल्में भी दिखाई जाएंगी।

अधिकारियों ने कहा कि यहां स्क्रीन पर लगातार करीब 40 फिल्में चलती रहेंगी, जिनमें अनुकूलन पर करीब 21 जीबी सूचना होगी। यहां आने वाले दर्शकों को इस संबंध में जानकारी देने के लिए टच स्क्रीन भी लगाए गए हैं कि भारत ने चार क्षेत्रों में अनुकूलन उपाय किस तरह अपनाये हैं जिनमें मन्नार की खाड़ी में प्रवालभित्ति का संरक्षण, लद्दाख में ग्लेशियर का संरक्षण, अहमदाबाद में ग्रीष्म कार्रवाई योजना शामिल हैं।

मोदी ने भारतीय पवेलियन में अपने भाषण में कहा कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी की वजह से जलवायु परिवर्तन होता है जो जीवाश्म ईंधन से संचालित एक औद्योगिक काल की समृद्धि और प्रगति से हुई है।

उन्होंने कहा कि भारत ने जलवायु परिवर्तन की समस्या पैदा नहीं की है, उसके बाद भी वह इसके दुष्परिणामों का सामना करता है, जिनमें किसानों को खतरे, मौसम प्रवृत्तियों में बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता शामिल है।

मोदी ने कहा कि विकसित देशों की प्रतिबद्धता की सीमा और उनकी कार्रवाई की शक्ति कार्बन स्पेस के संगत होनी चाहिए।

जलवायु परिवर्तन सम्मेलन को 'ऐतिहासिक' करार देते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत के भविष्य के नाते सम्मेलन का बहुत महत्व है। उन्होंने कहा, 'विकसित देशों को आकांक्षा और उम्मीद के बीच रहने वाले लोगों के साथ संसाधनों और प्रौद्योगिकी को साझा करना चाहिए। इसका यह भी मतलब होगा कि विकासशील दुनिया अपने विकास पथ पर कार्बन की हल्की छाप छोड़ने का प्रयास करेगी।'

प्रधानमंत्री ने कहा, 'हम चाहते हैं कि दुनिया का संकल्प ऐसी स्थितियां बनाने के प्रयासों से मेल खाए, जिनमें हम सफल हो सकें। क्योंकि हमारी चुनौती दबाव डाल रही है, इसलिए हमारे प्रयास अत्यावश्यक स्तर पर होने चाहिए।' उन्होंने कहा कि सम्मेलन के आखिर में होने वाले समझौते में मानवता और प्रकृति के बीच संतुलन बहाल होना चाहिए। हमें विरासत में क्या मिला और हम क्या छोड़ेंगे, इसके बीच भी संतुलन बहाल होना चाहिए।

मोदी ने कहा, 'इसका मतलब ऐसी साझेदारी होगा जिसमें पसंद की सुविधा और प्रौद्योगिकी की क्षमता रखने वाले अपने कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने के लिए सामंजस्य करेंगे।' प्रधानमंत्री ने कहा कि पर्यावरण पर भारत के नेतृत्व में 1975 में स्टॉकहोम में हुए कॉप सम्मेलन से लेकर 2009 में कोपेनहेगन में हुए सम्मेलनों में भारत के नेताओं और सरकारों का दृष्टिकोण शामिल रहा है।

उन्होंने कहा, 'हम अपने राष्ट्रीय प्रयास को पूरी तरह नए स्तर पर ले जा रहे हैं। और हम अपनी अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को तेज कर रहे हैं। इसलिए हम अपनी प्रतिबद्धता के साथ पेरिस आए हैं, लेकिन हम उम्मीद के साथ भी आए हैं।' इस मौके पर मोदी ने कहा, 'हम जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की रूपरेखा के समझौते के तहत बातचीत साझेदारी की भावना के साथ करते हैं, जो समान और साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिए। मैं जीवनशैली में बदलाव के लिए भी आह्वान करुंगा, ताकि हम अपनी धरती पर बोझ कम कर सकें। हमारे प्रयासों की दीर्घकालिक सफलता हमारे रहने और सोचने के तरीके पर निर्भर करेगी।'

इनपुट : भाषा से

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