इस्लामाबाद:
पाकिस्तान सरकार मुंबई हमले के मामले में अहम गवाहों से जिरह की अनुमति के लिए भारत को पत्र लिखेगी। इससे पहले पाकिस्तान की एक अदालत ने मामले में सबूत एकत्रित करने भारत गए एक न्यायिक आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।
संघीय जांच एजेंसी के विशेष अभियोजक मोहम्मद अजहर चौधरी ने कहा कि पाकिस्तान सरकार कानूनी जरूरतें पूरी करने के लिए भारतीय गवाहों से जिरह के संबंध में भारत के अधिकारियों को पत्र लिखेगी।
2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने के आरोपी सात पाकिस्तानी संदिग्धों पर मुकदमा चला रही आतंकवाद रोधी अदालत ने मार्च में भारत का दौरा करने वाले आयोग की रिपोर्ट को गैर-कानूनी कहकर खारिज कर दिया था।
न्यायाधीश चौधरी हबीब-उर-रहमान ने कहा था कि अगर भारत और पाकिस्तान गवाहों से जिरह के लिए तैयार हो जाते हैं तो एक और आयोग को मुंबई भेजा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अभियोजक पाकिस्तानी आरोपियों के खिलाफ चार भारतीय गवाहों के बयानों का इस्तेमाल तभी कर सकते हैं जब भारतीय अधिकारी बचाव पक्ष के वकीलों को गवाहों से जिरह की अनुमति दें।
न्यायिक आयोग की 800 पन्नों की रिपोर्ट अदालत में पेश करने वाले विशेष अभियोजक चौधरी ने डॉन अखबार को बताया कि आयोग की रिपोर्ट को दरकिनार करने से आरोपियों को फायदा होगा क्योंकि अभियोजन पक्ष चार अहम गवाहों के बयानों को इस्तेमाल नहीं कर सकता। चौधरी की दलील है कि अगर सात आरोपियों को छोड़ दिया जाता है तो इसके लिए मुंबई में आयोग के कामकाज पर निगरानी रखने वाले भारतीय न्यायाधीश एसएस शिंदे जिम्मेदार होंगे क्योंकि शिंदे ने कानून का और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की संबंधित धाराओं का पालन नहीं किया।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीश शिंदे ने अभियोजक उज्ज्वल निकम के अनुरोध पर भारतीय गवाहों से जिरह से मना किया था। वकील रियाज अकरम चीमा ने कहा कि बचाव पक्ष के वकील अब भी गवाहों से जिरह के लिए भारत जाना चाह रहे हैं।
उन्होंने कहा, आतंकवाद निरोधक अदालत ने हमारी याचिका को मंजूर किया जिसमें मुंबई गए आयोग की कार्यवाही पर कई आपत्तियां जताई गईं और इससे वाकई बचाव पक्ष का मामला मजबूत हुआ। लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर जकिउर रहमान लखवी के वकील ख्वाजा हरीश अहमद ने दलील दी कि बचाव पक्ष के वकील और अभियोजक भारतीय गवाहों से जिरह कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इन गवाहों से जिरह नहीं करने देना पाकिस्तान और भारत दोनों की आपराधिक प्रक्रिया संहिताओं के प्रावधानों के विरुद्ध है।
भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच एक सहमति के मद्देनजर पाकिस्तान के आयोग को मुंबई हमलों के गवाहों से जिरह नहीं करने दी गयी थी।
संघीय जांच एजेंसी के विशेष अभियोजक मोहम्मद अजहर चौधरी ने कहा कि पाकिस्तान सरकार कानूनी जरूरतें पूरी करने के लिए भारतीय गवाहों से जिरह के संबंध में भारत के अधिकारियों को पत्र लिखेगी।
2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों की साजिश रचने और उन्हें अंजाम देने के आरोपी सात पाकिस्तानी संदिग्धों पर मुकदमा चला रही आतंकवाद रोधी अदालत ने मार्च में भारत का दौरा करने वाले आयोग की रिपोर्ट को गैर-कानूनी कहकर खारिज कर दिया था।
न्यायाधीश चौधरी हबीब-उर-रहमान ने कहा था कि अगर भारत और पाकिस्तान गवाहों से जिरह के लिए तैयार हो जाते हैं तो एक और आयोग को मुंबई भेजा जा सकता है।
उन्होंने कहा कि अभियोजक पाकिस्तानी आरोपियों के खिलाफ चार भारतीय गवाहों के बयानों का इस्तेमाल तभी कर सकते हैं जब भारतीय अधिकारी बचाव पक्ष के वकीलों को गवाहों से जिरह की अनुमति दें।
न्यायिक आयोग की 800 पन्नों की रिपोर्ट अदालत में पेश करने वाले विशेष अभियोजक चौधरी ने डॉन अखबार को बताया कि आयोग की रिपोर्ट को दरकिनार करने से आरोपियों को फायदा होगा क्योंकि अभियोजन पक्ष चार अहम गवाहों के बयानों को इस्तेमाल नहीं कर सकता। चौधरी की दलील है कि अगर सात आरोपियों को छोड़ दिया जाता है तो इसके लिए मुंबई में आयोग के कामकाज पर निगरानी रखने वाले भारतीय न्यायाधीश एसएस शिंदे जिम्मेदार होंगे क्योंकि शिंदे ने कानून का और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की संबंधित धाराओं का पालन नहीं किया।
उन्होंने कहा कि न्यायाधीश शिंदे ने अभियोजक उज्ज्वल निकम के अनुरोध पर भारतीय गवाहों से जिरह से मना किया था। वकील रियाज अकरम चीमा ने कहा कि बचाव पक्ष के वकील अब भी गवाहों से जिरह के लिए भारत जाना चाह रहे हैं।
उन्होंने कहा, आतंकवाद निरोधक अदालत ने हमारी याचिका को मंजूर किया जिसमें मुंबई गए आयोग की कार्यवाही पर कई आपत्तियां जताई गईं और इससे वाकई बचाव पक्ष का मामला मजबूत हुआ। लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर जकिउर रहमान लखवी के वकील ख्वाजा हरीश अहमद ने दलील दी कि बचाव पक्ष के वकील और अभियोजक भारतीय गवाहों से जिरह कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इन गवाहों से जिरह नहीं करने देना पाकिस्तान और भारत दोनों की आपराधिक प्रक्रिया संहिताओं के प्रावधानों के विरुद्ध है।
भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच एक सहमति के मद्देनजर पाकिस्तान के आयोग को मुंबई हमलों के गवाहों से जिरह नहीं करने दी गयी थी।
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