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This Article is From Jan 08, 2016

पाकिस्तान बढ़ा रहा है गिलगित-बाल्टिस्तान का संवैधानिक दर्जा, भारत उठा सकता है आपत्ति

पाकिस्तान बढ़ा रहा है गिलगित-बाल्टिस्तान का संवैधानिक दर्जा, भारत उठा सकता है आपत्ति
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (फाइल फोटो : AFP)
इस्लामाबाद: पाकिस्तान अपने कब्ज़े वाले गिलगित-बाल्टिस्तान का संवैधानिक दर्जा बढ़ा रहा है ताकि वह इस सामरिक क्षेत्र से होकर गुज़रने वाले 46 अरब डॉलर की लागत वाले आर्थिक गलियारे पर चीन की चिंताओं को दूर कर सके। हालांकि अंदाज़ा लगाया जा रहा है कि इस कदम से भारत की त्योरियां चढ़ सकती हैं।

उत्तरी इलाके में स्थित यह क्षेत्र चीन के साथ एक मात्र अहम संपर्क मुहैया करवाता है। यह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) के मुख्य मार्ग पर स्थित है और यह गलियारा पश्चिमी चीन को दक्षिण पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से सड़कों के नेटवर्क, राजमार्ग, रेल और निवेश स्थल के जरिए जोड़ता है। एक अधिकारी ने बताया कि निवेश पर चीनी चिंताओं को दूर करने की एक योजना पर एक समिति काम कर रही है।

संविधान में पर्वतीय क्षेत्र का ज़िक्र
दरअसल, भारत ने पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर से होकर यह गलियारा बनाए जाने पर ऐतराज जताया था। अधिकारी ने कहा 'एक प्रस्ताव क्षेत्र का दर्जा बढ़ाने का है लेकिन यह पूर्ण प्रांत के स्तर से कुछ कम होगा। इस क्षेत्र का जिक्र संविधान में किया जाएगा और इसका संसद में प्रतिनिधित्व होगा।’ यदि यह प्रस्ताव लागू हो गया तो पर्वतीय क्षेत्र का पहली बार पाकिस्तान के संविधान में जिक्र होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक यह नया दर्जा है जिसका दूरगामी असर हो सकता है। कश्मीर पर पाकिस्तान के पारंपरिक रूख में यह बदलाव है और भारत के साथ इससे तकरार के भी बढ़ने की संभावना है।

आज़ाद कश्मीर और गिलगित बाल्टिस्तान, इन दो हिस्सों में पीओके विभाजित है। इन दोनों क्षेत्रों की अपनी विधानसभाएं हैं और तकनीकी रूप से यह पाकिस्तान संघ का हिस्सा नहीं है। पाकिस्तान कश्मीर के लिए एक विशेष मंत्री और संयुक्त परिषदों के जरिए उनका शासन करता है। अंदरूनी तौर पर दोनों क्षेत्र व्यापक रूप से स्वतंत्र हैं लेकिन विदेश मामले और रक्षा पाकिस्तान के सख्त नियंत्रण में है। पारंपरिक रूप से पाकिस्तान कहता रहा है कि कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है और इसके दर्जे के बारे में संयुक्त राष्ट्र के 1948-49 के प्रस्ताव के तहत जनमत संग्रह से फैसला होना चाहिए।

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