रूस (Russia) के विरोध के बावजूद NATO ने स्वीडन (Sweden) और फिनलैंड (Finland) को अपने सबसे नए सदस्यों के तौर पर मंजूरी देने की प्रक्रिया मंगलवार को शुरू कर दी. नाटो के 30 देशों ने फिनलैंड और स्वीडन को सदस्यता की देने की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी है. सैन्य गठबंधन के प्रमुख जेन्स स्टोल्टेनबर्ग (Jens Stoltenberg) ने कहा, यह यूक्रेन में रूस के युद्ध (Ukraine War) के खिलाफ एक अहम कदम होगा. स्टोल्टेनबर्ग ने स्वीडन और फिनलैंड के विदेश मंत्रियों के साथ एक ज्वाइंट प्रेस स्टेटमेंट में पत्रकारों से कहा, "यह फिनलैंड और स्वीडन के लिए एक अच्छा दिन है और NATO के लिए भी एक अच्छा दिन है."
उन्होंने आगे कहा, "32 देशों के साथ हम पहले से अधिक मजबूत होंगे और हमारे लोग भी ऐसे समय सुरक्षित रहेंगे जब हम कई दशकों बाद सबसे बड़ा सुरक्षा संकट देख रहे हैं."
नाटो के सेक्रेट्री जनरल नाटो के 30 देशों के राजनायिकों के साथ होने वाली एक बैठक से पहले ये बयान दे रहे थे. इस बैठक में दोनों नॉर्डिक देशों को नाटो में शामिल करने के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए जाने की उम्मीद है. इससे सहयोगी देसों के पास उनकी सदस्यता की पुष्टि करने का एक महीने से भी अधिक समय होगा.
स्वीडन की विदेश मंत्री एन लिंडे ने कहा, "हम अपने सहयोगियों से नाटो में शामिल होने को लेकर मिल रहे समर्थन के प्रति कृतज्ञ हैं."
उन्होंने आगे कहा, " हमें भरोसा है कि हमारी सदस्यता से नाटो मजबूत होगा और यूरो-एटलांटिक क्षेत्र में स्थिरता आएगी."
फरवरी में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद स्वीडन और फिनलैंड ने एक साथ घोषणा की थी कि वो सैन्य गुट-निरपेक्षता छोड़ कर नाटो में शामिल होने जा रहे हैं.
मैड्रिड में पिछले हफ्ते हुए नाटो सम्मेलन में इन दोनों देशों को आमंत्रित करने के कदम का स्वागत किया गया था. तुर्की को इसे लेकर कुछ आपत्तियां थीं लेकिन तुर्की को इसके लिए कुछ रियायतें दीं गईं और अमेरिका ने तुर्की को भरोसा दिया कि वो तुर्की को नए लड़ाकू विमान देगा. तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तयैप एर्दोगान ने स्वीडन और फिललैंड पर कुर्दिश चरमपंथियों की सुरक्षित पनाह होने और आतंक को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था.
उन्होंने ये मांग भी की थी कि 2019 में तुर्की की सेना की तरफ से सीरिया पर किए गए हमले के विरोध में तुर्की पर लगाए गए हथियारों के प्रतिबंध भी हटाए जाएं. लेकिन एर्दोगान ने नाटो की नींद यह कह कर उड़ा दी थी कि वो अब भी स्वीडन और फिनलैंड की दावेदारी रोक सकता है अगर उससे किए गए वादे पूरे नहीं किए गए. इनमें से कुछ वादे सार्वजनिक नहीं किए गए हैं जिनमें संभावित प्रत्यपर्ण संधि शामिल हो सकती है.
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