
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
पेरिस:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जीवाश्म ईंधन के जरिए समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ने वाले विकसित देशों को चेताया है। उन्होंने सोमवार को कहा कि यदि ये देश भारत जैसे विकासशील देशों पर उत्सर्जन कम करने का बोझ स्थानांतरित करेंगे तो यह 'नैतिक रूप से गलत' होगा। मोदी ने 'फाइनेंशियल टाइम्स' के ओपिनियन खंड में लिखा, 'साझी किंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों का सिद्धांत हमारे सामूहिक उपक्रम का आधार होना चाहिए। इसके अलावा कोई भी अन्य सिद्धांत नैतिक रूप से गलत होगा।'
उन्होंने विकसित देशों से कहा कि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अधिक बोझ उठाने के अपने कर्तव्य का निवर्हन करें। ब्रिटेन के प्रमुख दैनिक अखबार में लिखे लेख में मोदी ने कहा, 'कुछ का कहना है कि आधुनिक देशों ने समृद्धि की दिशा में अपना मार्ग जीवाश्म ईंधन के जरिए एक ऐसे समय पर तय किया, जबकि मानवता को इसके असर की जानकारी भी नहीं थी।' यह लेख जलवायु परिवर्तन पर सीओपी21 सम्मेलन की शुरुआत के समय प्रकाशित हुआ है।
ज्यादा जिम्मेदारी उठाएं आधुनिक देश
मोदी ने कहा, 'चूंकि विज्ञान आगे बढ़ गया है और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हैं। ऐसे में वे दलील देते हैं कि अपनी विकास यात्रा की शुरुआत भर करने वालों पर उन देशों की तुलना में कोई कम जिम्मेदारी नहीं है, जो तरक्की के चरम पर पहुंच चुके हैं। हालांकि नई जागरूकता के जरिए आधुनिक देशों को ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए। सिर्फ इसलिए कि तकनीक मौजूद है, इसका यह अर्थ नहीं कि वह संवहनीय और प्राप्य है।'
प्रधानमंत्री ने कहा, 'न्याय की मांग है कि, जितना थोड़ा बहुत कार्बन हम सुरक्षित तौर पर उत्सर्जित कर सकते हैं, उसके तहत विकासशील देशों को विकास की अनुमति होनी चाहिए। कुछ की जीवनशैली के लिए उनके अवसरों को नहीं रोका जा सकता, जो अभी विकास की सीढ़ी के पहले पायदान पर हैं।'
121 सौर-समृद्ध देशों का गठबंधन शुरू करने पर दृढ़
मोदी ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में 121 सौर-समृद्ध देशों का एक गठबंधन शुरू करने की अपनी योजना को दोहराया, जिसका मकसद इसकी जद के बाहर के क्षेत्रों को किफायती सौर उर्जा उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के संबंध में दुनिया से भी हमें यही उम्मीद है।' दुनिया के करीब 150 नेताओं के साथ मोदी भी पेरिस में शुरू हुए जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने आए हैं। इस नए समझौते का मूल ध्येय ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक क्रांति से पहले के तापमान यानी दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तक बनाए रखना है।
राष्ट्रपिता गांधी का किया उल्लेख
मोदी ने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा, 'महात्मा गांधी ने जिस कर्तव्यपरायणता की भावना का आह्वान किया था, उसे ध्यान में रखते हुए हम पेरिस सम्मेलन को लेकर बहुत आशान्वित हैं। हमें ट्रस्टी के तौर पर काम करना चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों का बुद्धिमता से इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम भावी पीढ़ी के लिए एक उन्नत और समृद्ध ग्रह छोड़कर जाएं।' उनका यह बयान अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के उस बयान की पृष्ठभूमि में आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि 30 नवंबर से पेरिस में शुरू होने वाली आगामी जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत एक 'चुनौती' होगा क्योंकि नए परिप्रेक्ष्य में अब यह अधिक चौकस और कुछ अधिक संयमित हो गया है।
भारतीय संस्कृति का दिया उदाहरण
प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण की प्रवृत्ति को रेखांकित करते हुए देश के खुद के पर्यावरणीय संकल्प की व्याख्या की। मोदी ने कहा, 'लोकतांत्रिक भारत दुनिया की सर्वाधिक तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। हम लोग सवा सौ करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं, जिनमें से 30 करोड़ लोगों के पास जल्दी ही ऊर्जा के आधुनिक स्त्रोत उपलब्ध होंगे जबकि नौ करोड़ लोगों तक पेयजल की आपूर्ति हो पाएगी।' उन्होंने कहा, 'हमारी संस्कृति की प्रवृत्ति विकास का एक सतत मार्ग अपनाना है.. पवित्र पेड़ों और देशभर में समुदायों द्वारा वनों को लगाने का यह विचार हमारे प्राचीन ग्रंथों में निहित है।'
किसानों को लेकर जताई चिंता
उन्होंने कहा, 'औद्योगिक युग में विकसित देशों के कारण पैदा हुए जलवायु परिवर्तन का भारत पर भी असर पड़ रहा है। 7,500 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हमारी तटरेखा, 1,300 से अधिक द्वीप, हमारी सभ्यता को बनाए रखने वाले ग्लेशियर और हमारे लाखों गरीब किसानों को लेकर हम भी चिंतित हैं।' उन्होंने कहा, 'हम लोग अपनी भूमिका निभाएंगे। हमलोग इसके लिए दृढ़संकल्प हैं कि 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता में 33 फीसदी की कमी लाई जाएगी और स्थापित बिजली क्षमता का 40 फीसदी गैर जीवाश्म स्त्रोतों से पैदा किया जाएगा।'
उन्होंने विकसित देशों से कहा कि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अधिक बोझ उठाने के अपने कर्तव्य का निवर्हन करें। ब्रिटेन के प्रमुख दैनिक अखबार में लिखे लेख में मोदी ने कहा, 'कुछ का कहना है कि आधुनिक देशों ने समृद्धि की दिशा में अपना मार्ग जीवाश्म ईंधन के जरिए एक ऐसे समय पर तय किया, जबकि मानवता को इसके असर की जानकारी भी नहीं थी।' यह लेख जलवायु परिवर्तन पर सीओपी21 सम्मेलन की शुरुआत के समय प्रकाशित हुआ है।
ज्यादा जिम्मेदारी उठाएं आधुनिक देश
मोदी ने कहा, 'चूंकि विज्ञान आगे बढ़ गया है और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हैं। ऐसे में वे दलील देते हैं कि अपनी विकास यात्रा की शुरुआत भर करने वालों पर उन देशों की तुलना में कोई कम जिम्मेदारी नहीं है, जो तरक्की के चरम पर पहुंच चुके हैं। हालांकि नई जागरूकता के जरिए आधुनिक देशों को ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए। सिर्फ इसलिए कि तकनीक मौजूद है, इसका यह अर्थ नहीं कि वह संवहनीय और प्राप्य है।'
प्रधानमंत्री ने कहा, 'न्याय की मांग है कि, जितना थोड़ा बहुत कार्बन हम सुरक्षित तौर पर उत्सर्जित कर सकते हैं, उसके तहत विकासशील देशों को विकास की अनुमति होनी चाहिए। कुछ की जीवनशैली के लिए उनके अवसरों को नहीं रोका जा सकता, जो अभी विकास की सीढ़ी के पहले पायदान पर हैं।'
121 सौर-समृद्ध देशों का गठबंधन शुरू करने पर दृढ़
मोदी ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में 121 सौर-समृद्ध देशों का एक गठबंधन शुरू करने की अपनी योजना को दोहराया, जिसका मकसद इसकी जद के बाहर के क्षेत्रों को किफायती सौर उर्जा उपलब्ध कराना है। उन्होंने कहा, 'जलवायु परिवर्तन के संबंध में दुनिया से भी हमें यही उम्मीद है।' दुनिया के करीब 150 नेताओं के साथ मोदी भी पेरिस में शुरू हुए जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने आए हैं। इस नए समझौते का मूल ध्येय ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक क्रांति से पहले के तापमान यानी दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तक बनाए रखना है।
राष्ट्रपिता गांधी का किया उल्लेख
मोदी ने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा, 'महात्मा गांधी ने जिस कर्तव्यपरायणता की भावना का आह्वान किया था, उसे ध्यान में रखते हुए हम पेरिस सम्मेलन को लेकर बहुत आशान्वित हैं। हमें ट्रस्टी के तौर पर काम करना चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों का बुद्धिमता से इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम भावी पीढ़ी के लिए एक उन्नत और समृद्ध ग्रह छोड़कर जाएं।' उनका यह बयान अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के उस बयान की पृष्ठभूमि में आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि 30 नवंबर से पेरिस में शुरू होने वाली आगामी जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत एक 'चुनौती' होगा क्योंकि नए परिप्रेक्ष्य में अब यह अधिक चौकस और कुछ अधिक संयमित हो गया है।
भारतीय संस्कृति का दिया उदाहरण
प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण की प्रवृत्ति को रेखांकित करते हुए देश के खुद के पर्यावरणीय संकल्प की व्याख्या की। मोदी ने कहा, 'लोकतांत्रिक भारत दुनिया की सर्वाधिक तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है। हम लोग सवा सौ करोड़ भारतीयों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं, जिनमें से 30 करोड़ लोगों के पास जल्दी ही ऊर्जा के आधुनिक स्त्रोत उपलब्ध होंगे जबकि नौ करोड़ लोगों तक पेयजल की आपूर्ति हो पाएगी।' उन्होंने कहा, 'हमारी संस्कृति की प्रवृत्ति विकास का एक सतत मार्ग अपनाना है.. पवित्र पेड़ों और देशभर में समुदायों द्वारा वनों को लगाने का यह विचार हमारे प्राचीन ग्रंथों में निहित है।'
किसानों को लेकर जताई चिंता
उन्होंने कहा, 'औद्योगिक युग में विकसित देशों के कारण पैदा हुए जलवायु परिवर्तन का भारत पर भी असर पड़ रहा है। 7,500 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हमारी तटरेखा, 1,300 से अधिक द्वीप, हमारी सभ्यता को बनाए रखने वाले ग्लेशियर और हमारे लाखों गरीब किसानों को लेकर हम भी चिंतित हैं।' उन्होंने कहा, 'हम लोग अपनी भूमिका निभाएंगे। हमलोग इसके लिए दृढ़संकल्प हैं कि 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन की तीव्रता में 33 फीसदी की कमी लाई जाएगी और स्थापित बिजली क्षमता का 40 फीसदी गैर जीवाश्म स्त्रोतों से पैदा किया जाएगा।'
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